भर्ती घोटाले में 'बड़ों' को बचाने के लिए जारी किया गलत नोटिस
केजीएमयू के रजिस्ट्रार द्वारा कर्मचारियों को जारी किए गए नोटिस पर सवाल। तीन कर्मचारी उस समय मीटिंग सेल में नहीं थे तैनात, कार्यपरिषद के निर्णय की दी गई थी जानकारी।
लखनऊ, जेएनएन। केजीएमयू में वर्ष 2004-05 में 94 कर्मचारियों की भर्ती में हुए घोटाले का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। दोषियों पर कार्रवाई करने का बढ़ता दबाव देख केजीएमयू प्रशासन ने बड़ों की गर्दन बचाने के लिए गलत नोटिस जारी कर दिया। जिन कर्मचारियों को नोटिस दिया गया, उसमें से तीन मीटिंग सेल में तैनात नहीं थे। इसके अलावा कार्यपरिषद में लिए गए निर्णय कि मामले में दोषियों पर शीघ्र कार्रवाई करने के निर्देश से भी उस समय उच्चाधिकारियों को अवगत करवाया गया था और तत्कालीन रजिस्ट्रार की ओर से नोटिस भी जारी किया गया था।
वर्ष 2004-05 में केजीएमयू में कर्मचारियों के 94 पदों पर हुई भर्ती में बड़े पैमाने पर गड़बडिय़ां पाई गईं। इसकी जांच तत्कालीन मंडलायुक्त लखनऊ प्रशांत त्रिवेदी ने की और भर्ती में अनियमितता के आरोप सही पाए। यह जांच मंडलायुक्त प्रशांत त्रिवेदी द्वारा 21 अप्रैल 2010 को पूरी की गई। इसके बाद 13 मार्च 2012 को शासन ने केजीएमयू को निर्देश दिए कि वह इस मामले में सख्त कार्रवाई करे। फिलहाल वर्ष 2013 में इसे कार्यपरिषद में रखा गया और दोषियों पर कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए गए। बीते दिनों शासन में मामले की शिकायत होने और इस प्रकरण पर हरीश चंद्र प्रताप यादव द्वारा कोर्ट में पीआइएल दाखिले किए जाने के बाद मामले में जवाब तलब किया गया। इसके बाद बीते दिनों रजिस्ट्रार राजेश कुमार राय द्वारा छह कर्मचारियों को नोटिस जारी किया गया।
रजिस्ट्रार ने अपनी नोटिस में लिखा कि मीटिंग सेक्शन में तैनात होने के बावजूद आपने कार्य परिषद के निर्णय को उच्चाधिकारियों को नहीं बताया। फिलहाल रजिस्ट्रार द्वारा जिन कर्मचारियों को नोटिस दिया गया उसमें से तीन कर्मचारी पारुल गुप्ता, राम सहाय व सौरभ मौर्य उस समय मीटिंग सेक्शन में तैनात ही नहीं थे। यही नहीं 20 मई 2013 को कार्यपरिषद के निर्णय के अनुसार भर्ती घोटाले के दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई करने के लिए तत्कालीन रजिस्ट्रार ने पत्र भी जारी किया था। मीडिया इंचार्ज प्रो. संतोष कुमार का कहना है कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।