बिल्डरों से 'दोस्ती' में यूपी सरकार को 572 करोड़ रुपये का लगाया चूना, CAG रिपोर्ट में खुला खेल
उत्तर प्रदेश आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने निजी विकासकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए सारे नियमों को ही ताख पर रख दिया। सीएजी ने हाईटेक टाउनशिप से जुड़ी अनियमितताएं पकड़ी हैं।
लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने निजी विकासकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए सारे नियमों को ही ताख पर रख दिया। गाजियाबाद में हाईटेक टाउनशिप के डेवलपरों से साठगांठ कर उनसे भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क ही नहीं लिया। यूपी सरकार को इस मामले में 572.48 करोड़ रुपये की चोट पहुंचाने का खेल भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में खुला है।
गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का ऑडिट करते हुए सीएजी ने हाईटेक टाउनशिप से जुड़ी अनियमितताएं पकड़ी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मई 2005 में उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजियाबाद में हाईटेक टाउनशिप के विकास के लिए दो विकासकर्ताओं का चयन किया। तब महायोजना-2001 प्रभावी थी, जिसके अनुसार हाईटेक टाउनशिप के लिए नामित क्षेत्र की भू-उपयोग कृषि था। जुलाई 2005 में सरकार ने महायोजना-2021 अनुमोदित की। उसमें प्रवधान किया गया कि हाईटेक टाउनशिप के लिए चिह्नित भूमि का उपयोग सांकेतिक था, इसलिए विकासकर्ताओं को भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क देना होगा। वर्ष 2006 और 2007 में बनाई गई नीतियों में भी विकासकर्ताओं से भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क लिए जाने की बात शामिल थी।
इसके बाद महायोजना-2021 के संबंध में 23 अप्रैल 2010 को शासनादेश हुआ कि उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 के तहत हाईटेक टाउनशिप के लिए भू-उपयोग सांकेतिक दिखाने का कोई प्रवधान नहीं है। चूंकि गाजियाबाद महायोजना-2021 में जैसा भू-उपयोग दिखाया गया था, उस प्रकार भूमि का उपयोग आवासीय माना जाएगा। अत: इस क्षेत्र पर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क देय नहीं होगा। मई 2017 में ऑडिट के दौरान देखा गया कि आवास एवं शहरी नियोजन विभाग ने विकासकर्ताओं के अनुरोध पर महायोजना में सांकेतिक भू-उपयोग को आवासीय में परिवर्तित कर उन्हें शुल्क से राहत दे दी गई। इस तरह विकासकर्ताओं को अनुचित लाभ दिया गया और प्राधिकरण को 572.48 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
- शासनादेश पर सीएजी का तर्क
- 23 अप्रैल 2010 का आदेश इस तथ्य की अनदेखी करते हुए जारी किया गया था कि महायोजना में प्रस्तावित हाईटेक सिटी का भू-उपयोग मात्र सांकेतिक था। प्राधिकरण का आशय विकासकर्ताओं से भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क वसूल करने के बाद ही भू-उपयोग को कृषि से आवासीय में बदलने का था।
- शासन के विधि विभाग ने अपनी राय में उल्लेख किया कि भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क का न लिया जाना पोस्ट बिड बेनिफिट की श्रेणी में आएगा। यह विशिष्ट अभिमत विधि विभाग के प्रमुख सचिव ने अस्वीकृत कर दिया था।
परिवहन निगम ने सरकार को लगाई 18.31 करोड़ की चपत : परिवहन निगम ने प्रदेश सरकार को 18.31 करोड़ रुपये की चपत लगाई है। निगम ने एसी बसों के यात्रियों पर न तो सेवा कर लगाया और न ही उसकी वसूली की। जबिक सेवा कर अधिनियम में एसी बसों के यात्रियों पर सेवाकर लगाने का प्रावधान है। सीएजी ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है। परिवहन निगम द्वारा यात्रियों से सेवा कर न वसूलने के कारण प्रदेश सरकार के खजाने को 18.31 करोड़ रुपये की हानि हुई है। वहीं, जल निगम द्वारा टिम्बरिंग के कार्य उच्चतर दरों पर स्वीकृत किए। इस कारण ठेकेदार को 4.05 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ हुआ। सीएजी ने इस मामले में कड़ी आपत्ति जताई है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जल निगम ने अस्वीकार्य वृद्धि की अनुमति देकर ठेकेदार को अनुचित लाभ दिया। इस कारण सरकार को 4.05 करोड़ रुपये की हानि हुई।
आवास एवं विकास परिषद को हुआ 15.15 करोड़ का नुकसान : उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद की लापरवाही के कारण उसे 15.15 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सीएजी ने तीन अलग-अलग मामलों में उसकी कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। पहले मामले में परिषद ने टेंडर प्रक्रिया का उल्लंघन किया, इस कारण आवंटियों को उसे 11.38 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति देनी पड़ी। दूसरा मामला भूखंडों की नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य के गलत निर्धारण के कारण उसे 2.17 करोड़ रुपये कम मिले। इसी प्रकार तीसरे मामले में परिषद ने पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त होने के पूर्व ही ठेकेदार को 40.86 करोड़ रुपये का अग्रिम कर दिया। इस कारण परिषद को 1.50 करोड़ रुपये ब्याज की हानि हुई।