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मिशन 2019: उत्तर प्रदेश में अब सवर्णों को लुभाने चली भाजपा

उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव में सहयोगी समेत 73 सीटें जीतने वाली भाजपा के रणनीतिकार सवर्णों की नाराजगी दूर करने पर केंद्रित हो गए हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 14 Dec 2018 12:04 PM (IST)Updated: Fri, 14 Dec 2018 12:04 PM (IST)
मिशन 2019: उत्तर प्रदेश में अब सवर्णों को लुभाने चली भाजपा

लखनऊ [आनन्द राय]। छत्तीसगढ़, राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की पराजय के पीछे कारण तो कई गिनाए जा रहे हैं लेकिन, एक प्रमुख वजह एससी-एसटी एक्ट में संशोधन भी माना जा रहा है। केंद्र सरकार के इस फैसले से सवर्णों में देशव्यापी नाराजगी बढ़ी और भाजपा के लोग भी इसका विरोध करते नजर आए। अब 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा दलितों-पिछड़ों के साथ ही सवर्णों का दिल जीतने के लिए अभियान चलाएगी।

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उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव में सहयोगी समेत 73 सीटें जीतने वाली भाजपा के रणनीतिकार सवर्णों की नाराजगी दूर करने पर केंद्रित हो गए हैं। बलिया में बैरिया से भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने कल दो टूक कह दिया 'सवर्णों को नाराज कर भाजपा सत्ता में नहीं आ सकती।' यह अकेली सुरेंद्र सिंह की आवाज नहीं है। पिछड़ों को भी यह फैसला रास नहीं आया। भाजपा के और भी नेता हैं जो अब यह कहने लगे हैं।

निगम, निकायों में समायोजन

लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने में करीब दो माह का समय बचा है, इसलिए उससे पहले ही संगठन और सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर समायोजन के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साहवद्र्धन करेगी। सरकार में निगम, बोर्ड, निकायों में बहुत से पद खाली हैं। कुछ आयोगों को छोड़ दें सरकार ने अभी तक समायोजन किया नहीं है। अधिसूचना जारी होने से पहले निगम और बोर्डों में समायोजन होगा। इसके अलावा 16 नगर निगम, 199 नगर पालिका परिषद और 438 नगर पंचायतों में पार्षदों का मनोनयन भी होना है। कुछ महत्वपूर्ण कार्यकर्ताओं को संगठन में भी पद दिए जाएंगे। इनमें पिछड़ों के साथ सवर्णों को भी भरपूर महत्व मिलेगा।

सवर्ण समीकरण पर जोर

भाजपा को 2014 के लोकसभा चुनाव में उप्र में 42.3 फीसद जबकि 2017 के विधानसभा चुनाव में करीब 40 फीसद मत मिले। इतना बड़ा वोट हासिल करने में भाजपा इसलिए कामयाब हुई क्योंकि सवर्ण बहुत तेजी से भाजपा के पक्ष में खड़े हुए। उधर, पिछड़ों के बीच मोदी तुरुप का इक्का साबित हुए। केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष बनाकर विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी और इसमें भी सफलता मिली। दलितों में भी गैर जाटव मसलन, धोबी, खटिक, पासी, वाल्मीकि, धानुक, कोरी आदि जातियों को सहेजने में भाजपा सफल रही। पहली बार मत प्रयोग करने वाले 18 से 22 वर्ष के युवा भी कारगर साबित हुए। अब भाजपा फिर से उसी तरह के समीकरण बनाने में जुटेगी।

क्या कोई बड़ा कदम!

2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा की सफलता की एक वजह सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी भी बनी। इसके बाद मोदी की लहर 2014 की तरह चलने लगी। भाजपा ने बसपा, सपा और अन्य छोटे दलों के दिग्गजों को भी तोडऩे की मुहिम चलाई और कई बड़े नेता भाजपा के पाले में आ गए। एक बार फिर ऐसी ही मुहिम चलाने पर विचार शुरू है। राम मंदिर को लेकर भी सरकार बड़ी पहल कर सकती है। 


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