Terrorism in Lucknow: अनजान चेहरों से 'अनजान' रहना भी खतरे की घंटी, सरकारी जमीनों पर बनी अवैध बस्तियों में कौन रह रहा; पुलिस को जानकारी नहीं
वह हमारी बोली नहीं समझते हैं और हम आप उनकी बोली नहीं समझ पाते हैं। बस ऐसे ही काम चलता रहता है। ये अनजान चेहरे हम आप से घुल-मिल गए हैं। सुबह से दोपहर तक हमारे घरों के इर्दगिर्द रहने वाले इन अनजान चेहरों से खुफिया तंत्र भी अनजान है।
लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। वह हमारी बोली भी नहीं समझते हैं और हम आप भी उनकी बोली नहीं समझ पाते हैं। बस, ऐसे ही काम चलता रहता है। ये अनजान चेहरे हम आप से घुल-मिल गए हैं। सुबह से लेकर दोपहर तक हमारे घरों के इर्दगिर्द रहने वाले इन अनजान चेहरों से खुफिया तंत्र भी सालों से अनजान है। सरकारी जमीनों पर बस्तियां बनाकर रहते हैं और समय-समय पर इन बस्तियों में रहने वाले चेहरे भी बदल जाते हैं। देश में आतंकवाद की कई घटनाओं में चर्चा में आए रोङ्क्षहग्या समुदाय के लोगों के भी इन बस्तियों में रहने की आशंका कई बार जताई जा चुकी है लेकिन पुलिस और खुफिया तंत्र हमेशा से मौन बना रहा। कोई ठोस जांच न होने से इनकी संख्या इस कदर बढ़ती जा रही है कि ट्रांस गोमती इलाके से जुड़ी कॉलोनियों के आसपास इसका डेरा है।
हमला भी कर चुके हैंः जानकीपुरम विस्तार में सरकारी जमीनों पर बस्तियां बनाकर रह रहे अनजान चेहरों ने यहां के निवासियों पर हमला तक बोल दिया था। करीब साढ़े तीन साल पहले यह लोग धार्मिक चबूतरा बनाने का विरोध होने पर तलवारों से लैस होकर रात भर पूरी कॉलोनी में हंगामा काटते रहे थे लेकिन, पुलिस कोई कड़ी कार्रवाई नहीं कर पाई थी। बस, उन्हें वहां से हटा दिया गया था। कालोनी के निवासियों ने तो इन लोगों पर रोङ्क्षहग्या होने तक के आरोप लगाए थे। अब ये लोग मडिय़ावं के आगे मिर्जापुर पुलिया से सटे एक खेत, तिवारी पुर, शुक्ला चौराहे और भिठौली रेलवे क्रासिंग के पास डेरा जमाए हुए हैं। बीती मार्च में जम्मू में रोङ्क्षहग्याओं की बस्तियों में प्रशासनिक कार्रवाई के बाद भी लखनऊ पुलिस के कोई सक्रियता नहीं दिखी थी। जानकीपुरम विस्तार जनकल्याण आवासीय समिति के अध्यक्ष पंकज तिवारी कहते हैं कि खाली जमीनों पर अवैध तरह से रह लोगों की गतिविधियां हमेशा से ही संदिग्ध रही है और तमाम बार पुलिस को पत्र देने के बाद कार्रवाई तो दूर उनकी जांच तक नहीं हो पाई है। यह पार्षद चुनाव में मतदान तक करते देखे गए हैं।
असमी या कोई औरः नगर निगम के ठेकेदार शहर की सफाई व्यवस्था जिनसे करा रहे हैं, उसे वह असमी कहते हैं। ये लोग घरों से कूड़ा उठान से सड़कों की सफाई तक करते हैं। ये लोग अपने को असम के बारपेटा शहर का निवासी बताते हैं और वहां की आइडी भी दिखाते हैं। हालांकि लखनऊ पुलिस और खुफिया तंत्र इनकी गहराई से पड़ताल करने में हमेशा से नाकाम रही है।
इनके कई ठेकेदार हैंः शहर में अवैध तरह से घरों से कूड़ा उठान से लेकर सड़कों की सफाई करा रहे कई ठेकेदार इन्हें यहां लाते हैं। पूरी गृहस्थी के साथ ये लोग यहां आते हैं और ठेकेदार पहले से ही किसी खाली जमीन को तलाश करके रखता है। जहां उन्हें बसा दिया जाता है। ठेकेदार कूड़ा बटोरने के बाद उससे निकले कबाड़ को भी बेचता है और घरों से कूड़ा उठाने का शुल्क भी वसूलते हैं। मुनाफे का धंधा होने के कारण शहर में ऐसे कई ठेकेदार खड़े हो गए हैं। मडिय़ावं, गुडंबा, जानकीपुरम, अलीगंज, विकास नगर, खुर्रमनगर इंदिरानगर, गोमतीनगर, डालीबाग, आशियाना और कानपुर रोड एलडीए कॉलोनी में इन अजनबी चेहरों की भरमार है।
मवैया में भी दस साल से ठिकाना हैः आपने देखा होगा कि कुछ लड़कियां आपके सामने खड़ी हो जाती है और कहती हैं कि कश्मीर में बाढ़ आ गई है। कुछ मदद कर दीजिए। कई साल से यह बाढ़ से हुए नुकसान की बात कहकर मदद मांग रही हैं। इनका परिवार मवैया के गढ़ी कनौरा में रहता है। यहां पर टेंट लगाकर ये लोग एक दशक से रह रहे हैं। खुद को कश्मीरी बताने वाले इन लोगों पर एलआइयू की नजर रहती है और उनकी रिपोर्ट भी तैयार होती है। इसमे कुछ ङ्क्षहदू भी हैं, जो धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बन चुके हैं। तमाम बार यह सवाल खड़े हो चुके हैं कि आखिर कश्मीर से आए लोग यहां किस मकसद से रह रहे हैं। एलआइयू से जुड़े लोगों का कहना है कि उन्हें हटाने को लेकर जिला पुलिस को पत्र भी भेजा जा चुका था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। इनको संरक्षण भी एक स्थानीय निवासी ने दे रखा है।