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CoronaVirus: ‘चक्कर’ में डाल देगा चमगादड़ का जूठा फल, UP में मौजूद 16 प्रजातियों में तीन घातक

CoronaVirus विश्व में करीब 1300 जबकि देश में 100 से 120 तरह की चमगादड़ की प्रजातियां पाई जाती हैं। रोशनी होगी पास तो दूर होगा चमगादड़ धुएं से भी भागता है।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Mon, 20 Apr 2020 11:20 AM (IST)Updated: Mon, 20 Apr 2020 03:40 PM (IST)
CoronaVirus: ‘चक्कर’ में डाल देगा चमगादड़ का जूठा फल, UP में मौजूद 16 प्रजातियों में तीन घातक

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। CoronaVirus: कोरोना वायरस के चलते चर्चा में आए चमगादड़ के प्रति लोगों में दिलचस्पी बढ़ गई है। वैज्ञानिकों की पड़ताल से केरल में पता चला कि चमगादड़ ने निपाह वायरस का प्रकोप बढ़ाने में मदद की तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैज्ञानिकों की पड़ताल पर अपनी मोहर लगाकर इस स्तनधारी जीव से सतर्क रहने की चेतावनी दी है।

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यह रात्रिचर स्तनधारी प्राणी रोशनी से दूर भागता है। विश्व में चमगादड़ की करीब 1300 प्रजातियां पाई जाती हैं जबकि देश में 100 से 120 तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। सूबे में इसकी 16 प्रजातियां मिलती हैं, इनमें से तीन प्रजातियां फल खाने वाली होती हैं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर वी.एलांगोवन ने बताया कि यह जंतु बस्ती से दूर सुनसान स्थान पर रहता है। पर्यावरण में आए बदलाव और प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ की वजह से ये वन क्षेत्र से बस्ती में आने लगे हैं। प्रदेश में पाई जाने वाली 16 में से मात्र तीन प्रजातियां हैं, जो मनुष्य के लिए घातक हैं।

तीनों ही फलदार पेड़ों के आसपास पाई जाती हैं। जमीन से करीब 25 से 30 फीट ऊपर पर रहने वाले इस स्तनधारी जंतु से संक्रमण होने की बात तो सामने आई है, लेकिन कोरोना जैसे वायरस के फैलने की बात अब तक मेरे शोध में नहीं मिली है। चमगादड़ द्वारा खाए गए फल को खाने से संक्रमण होता है। इससे मनुष्य के शरीर में खुजलाहट, उल्टी, चक्कर आना, घबराहट जैसे लक्षण हो सकते हैं। इसलिए जीव के काटे फल खाने से बचें। शोध के दौरान कई बार चमगादड़ ने मेरे ऊपर हमला और काट लिया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसे में बिना शोध के चमगादड़ को कठघरे में खड़ा करना अनुचित है।

मनुष्य के संपर्क में आने पर घबराहट में काटता है चमगादड़

प्रोफेसर वी.एलांगोवन ने बताया कि चमगादड़ मनुष्य को नुकसान नहीं पहुंचाता। फल खाने वाले प्रजाति के चमगादड़ कभी-कभी बस्ती में आ जाते हैं, मनुष्य के संपर्क में आने या रोशनी से घबराने की वजह से वह काट लेते हैं। रोशनी में उन्हें दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन मनुष्य के मुकाबले एक लाख गुना ज्यादा आवाज सुनने की क्षमता होती है। ऐसे में घबराहट में मनुष्य पर हमला करते हैं। शोध में पता चला कि राजधानी के दो सबसे बड़े क्षेत्र मोहनलालगंज रेलवे स्टेशन, काकोरी और ऐशबाग कब्रिस्तान में एक हजार से दो हजार के बीच चमगादड़ रहते हैं। डीएफओ आरके सिंह के मुताबिक मूसाबाग में भी इनकी संख्या काफी है। बस्ती में जल्दी नहीं आते, ऊंचे पेड़ों पर ही इनका ठिकाना होता है। इसके दांत बहुत तेज और नुकीले होते हैं। चमगादड़ अन्य जीवों का खून पीता है। यह ऐसी जगहों पर ज्यादा पाए जाते हैं जहां गंदगी रहती है।

चमगादड़ से जुड़े रोचक तथ्य

  • एक चमगादड़ एक घंटे में 600 खटमल का शिकार कर सकता है। यही नहीं यह जीव एक घंटे में 1500 छोटे कीड़े-मकोड़े भी खा सकता है।
  • यह एक ऐसा जीव है जो किसानों के करोड़ों रुपये बचा सकता है।
  • यह जीव प्रकृति लिए बेहद हितकारी होता हैं। उदाहरण के तौर पर चमगादड़ पेड़ पौधों के बीजों व फलों को खाकर उनके बीज जंगल में फैलाते चलते हैं, जिससे वन क्षेत्र विकसित होता है।
  • चमगादड़ स्तनधारी जीवों में पाया जाने वाला एकमात्र ऐसा जीव है जो उड़ सकता हैं।
  • आमतौर पर मनुष्य बस्ती से दूर रहने वाले कुछ प्रजातियों के चमगादड़ केवल खून पीते हैं और इन्हें पिशाच चमगादड़ कहा जाता है।
  • एक पिशाच चमगादड़ एक दिन में अपने वजन के बराबर खून पी सकता है।
  • आपको जानकर आश्चर्य होगा चमगादड़ हमेशा उल्टा लटक कर सोते हैं
  • विश्व में अमेरिका ही एकमात्र ऐसा देश है जहां सर्वाधिक मात्र में चमगादड़ पाए जाते हैं।
  • एक अनुमान के मुताबिक भूरा चमगादड़ लगभग 40 वषों तक जीवित रह सकता है।
  • विश्व में पाई जाने वाली कुल स्तनधारी प्रजातियों में लगभग 20 फीसद आबादी चमगादड़ों की है
  • चमगादड़ अंडे न देकर सीधे बच्चों को जन्म देते है।
  • वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार पाया गया है कि चमगादड़ों की उत्पत्ति डायनासोरों के समय से रही है अर्थात यह जीव लगभग 6 से 10 करोड़ साल पहले भी अस्तित्व में था।

नुकसान पहुंचाने वाली श्रेणी में शामिल है यह जीव

पूर्व प्रमुख वन संरक्षक डॉ.आरएल सिंह के मुताबिक, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में चमगादड़ को मनुष्य को नुकसान पहुंचाने वाले जंतु के रूप में शामिल किया गया है। इसे मारने के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। एक सर्वे में यह भी पाया गया कि गर्मी के मौसम में चमगादड़ खीरे में लगने वाले कीड़े को खाकर किसानों के करोड़ों रुपये बचाने में भी सहयोग करता है। हालांकि अधिनियम में कौवे को चमगादड़ की श्रेणी में रखा है, लेकिन अब इसे संरक्षित करने मांग उठने लगी है, लेकिन चमगादड़ को लेकर अभी कुछ नहीं बोला जा रहा है।


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