'खौफ' में रहने वाली पुलिस दे रही बेखौफ जीने का हौसला
सरकारी आवासों के रखरखाव का सालाना बजट प्रस्तावित नहीं। पुलिस आवास निगम भी नहीं देता है कोई भी अनुदान। एसएसपी कार्यालय ने आरटीआइ में दी जानकारी।
लखनऊ[ज्ञान बिहारी मिश्र]। कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना हो या अपराध मुक्त माहौल। हर समय जनता की सुरक्षा के लिए मुस्तैद रहने वाली पुलिस खुद उपेक्षित है। कड़ी मशक्कत के बाद अगर किसी पुलिसकर्मी को आवास मिलता भी है तो वह भी जर्जर। इनके रखरखाव मरम्मत के लिए न तो कोई ठोस व्यवस्था की गई है और न ही उच्चाधिकारी ही गंभीर हैं। ऐसा हम नहीं बल्कि एसएसपी कार्यालय के जनसूचना विभाग का कहना है। हैरत की बात है कि पुलिसकर्मियों के लिए मौजूद आवासों के रखरखाव के लिए कोई सालाना बजट ही प्रस्तावित नहीं है। यही वजह है कि पुलिस लाइन समेत तमाम सरकारी आवासों की स्थिति बदतर है। कई बार हादसे भी हो चुके हैं, लेकिन जिम्मेदारों को कोई फर्क नहीं पड़ा। आम लोगों को बेखौफ होकर रहने का हौसला देने वाले पुलिसकर्मी खुद के परिवार के साथ खौफ में जीते हैं। तेज आधी-पानी अथवा भूकंप आने की स्थिति में जर्जर आवासों की दीवारों में दरारें पड़ जाती हैं। बावजूद इसके खाकी की सुरक्षा पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है।
खास बात यह है कि पुलिस आवास निगम की ओर से भी सरकारी आवासों के लिए कोई अनुदान उपलब्ध नहीं कराया जाता है। एसएसपी कार्यालय में तैनात एसआइ लेखा राजीव सक्सेना ने आरटीआइ के जवाब में यह सूचना उपलब्ध कराई है। बीते पाच वर्षो में सरकारी आवासों के रखरखाव के लिए कोई बजट या अनुदान ही नहीं दिया गया है। ऐसे कैसे करें गुजारा
राजधानी में पुलिसकर्मियों को मिलने वाला मकान किराया भत्ता उनके गुजारे के लिए नाकाफी है। दरअसल, पुलिसकर्मियों को उनके पे-स्केल के हिसाब से भत्ता दिया जाता है। इनमें सिपाही को तकरीबन 1500 सौ तथा दारोगा को 2500 रुपये के करीब मिलता है। ऐसे में जिन पुलिसकर्मियों को सरकारी आवास नहीं मिल पाता है, उन्हें मकान किराया भत्ता से गुजारा करना मुश्किल साबित होता है। आकड़ों के मुताबिक, राजधानी में करीब 1350 पुलिसकर्मियों के लिए आवास बने हुए हैं। इनमें अधिकाश मकानों की हालत बेहद दयनीय है। यही नहीं तकरीबन 3000 से अधिक ऐसे पुलिसकर्मी भी हैं, जिन्हें आवास आवंटित नहीं हुआ है। ऐसे में वह ऊंची दरों के किराए के मकानों में रहने को मजबूर हैं।