घोड़ों की रेस पर ब्रेक के बाद अब अवध पोलो कप भी रद, 100 साल पहले हुई थी शुरुआत
1912 में इंडियन पोलो एसोसिएशन कप कराने वाला देश का पहला शहर था लखनऊ।
लखनऊ, [निशांत यादव]।जिस लखनऊ में अविभाजित भारत का पहला इंडियन पोलो एसोसिएशन कप (इंडियन ओपन) टूर्नामेंट हुआ था। उस शहर में छह साल बाद एक बार फिर से पोलो पर ग्रहण लग गया। वर्ष 2012 से लगातार आयोजित हो रहा प्रतिष्ठित अवध पोलो कप इस साल नहीं होगा। जबकि रेसकोर्स में ब्रिटिश दौर से होने वाली रेस भी बंद कर दी गई। विजय विधाता जैसे घोड़ों की तैयारियां धरी रह गईं।
अवध पोलो कप का शुभारंभ 1912 के बाद पहली बार वर्ष 2012 में मध्य कमान मुख्यालय की ओर से किया गया था। इस टूर्नामेंट में सेना की कैवेलरी से लेकर कई यूनिटों की टीमें लगातार बढ़ रही थीं। वर्ष 2018 के दिसंबर माह में अवध पोलो कप प्रस्तावित था। स्थानीय स्तर पर सेना ने सूर्या खेल परिसर को संवारा और पोलो की तैयारियां पूरी कीं। मध्य कमान मुख्यालय स्तर से पोलो कप को पहले लंबित रखा गया। इसके बाद मुख्यालय ने अवध पोलो कप रद करने का निर्णय ले लिया। इस कप के आयोजन का मुख्य उद्देश्य लखनऊ में इस खेल को बढ़ावा देना और स्कूली बच्चों में रुचि बढ़ाना था।
ऐसे शुरू हुआ लखनऊ में पोलो
घोड़ों पर सवार होकर गेंद को पाले में डालकर स्कोर करने वाला यह रोमांचक खेल लखनऊ में भी खूब बढ़ा। यहां 1912 के दौरान दो पोलो ग्राउंड थे। एक ला मार्टीनियर कॉलेज और दूसरा छावनी स्थित पोलो ग्राउंड (अब सूर्या ऑफिसर्स क्लब)। माना जाता है कि पोलो की शुरुआत पर्शिया में पांचवीं सदी में हुई थी। इसके बाद भारत में यह गिलगिट, लद्दाख, चित्राल और मणिपुर में खेला जाने लगा। बाद में मुगलों ने पोलो को आगे बढ़ाया। जबकि ब्रिटिश दौर में पोलो का वर्तमान प्रारूप तैयार किया गया।
और रेस का भी अंत
सन 1880 में लखनऊ रेसकोर्स क्लब में घोड़ों की रेस शुरू हुई थी। सन 1990 से 1997 के बीच घोड़ों की कमी से रेस बंद करनी पड़ी थी। इसके बाद फिर से सेना ने प्रयास किया और रेस शुरू की। किन्टायर के बाद अब भी यहां विजय विधाता, सुपर डुपर, ड्रिम डील जैसे कई शानदार घोड़े हैं। यह देश का एकमात्र एंटी क्लॉक रेसकोर्स का ट्रैक है।