Jai Hind: रंग लाई जिंदगी बचाने की जिद, छह साल बाद 'सड़क' पर दिखने लगा प्रयास
Jai Hind कैसरबाग से परिवर्तन चौक इमामबाड़ा चौक अशोक मार्ग महानगर लालबाग भोपाल हाउस समेत नगर के करीब पचास फीसद प्रमुख स्थानों पर रेडियम की पट्टियां चमक रही हैं।
लखनऊ, (नीरज मिश्र)। Jai Hind: सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली रोड इंजीनियरिंग की खामियों को दूर करने के लिए पानी की तरह पैसा बहाया जाता है। लेकिन चंद पैसे की रेडियम पट्टियां और रिफ्लेक्टर जैसी मामूली चीजों को लगाने में कोताही बरती जाती है। नतीजतन बडे़ हादसे सामने आते हैं। डिवाइडर हो या फिर चौराहा अथवा सड़क किनारा, ऐसे कई स्थान है जो दुर्घटना के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं। चंद पैसे से बचाई जा सकती है आमजन की जान को लक्ष्य बना सेफ्टी की इस मामूली किंतु अहम जरूरत की लड़ाई 67 वर्षीय नौजवान बुजुर्ग अशोक कुमार भार्गव ने छेड़ दी। लगातार छह साल चली लड़ाई अब जनवरी 2020 में मुकाम पर आई है। आखिरकार लोनिवि ने शहर के प्रमुख स्थलों पर इसे लगाने का काम शुरू कर दिया। अबतक कैसरबाग से परिवर्तन चौक, इमामबाड़ा, चौक, अशोक मार्ग, महानगर, लालबाग, भोपाल हाउस समेत नगर के करीब पचास फीसद प्रमुख स्थानों पर रेडियम की पट्टियां चमक रही हैं।
दरअसल हादसों के दौरान संवदेना जताने वाले बहुत होते हैं लेकिन आमजन के लिए अपने पास से पैसा खर्च कर फाइल बना सरकारी दफ़्तरों का चक्कर लगाने वाले कम ही दिखते हैं। साल 2015 की बात है जब भार्गव ने चंद पैसे के रिफ्लेक्टर और रेडियम की पट्टियां लगवाने के लिए मुहिम छेड़ दी। देखने में भले ही यह मु्ददा छोटा हो लेकिन हकीकत में मामूली धनराशि की यह चीज लोगों की जान बचाने के लिए काफी अहम है।
बदलते रहे विभाग
लोनिवि के तत्कालीन मुख्य अभियंता से बात की। आश्वासन मिला। पर प्रगति शून्य दिखी। कुछ हफ्तों बाद फिर कार्यालय पहुंच गए। कई फेरे लगाने के बाद बताया गया कि इसका इलाज नगर निगम के पास है। हार नहीं मानीं। पत्राचार का सिलसिला आगे बढ़ता रहा लेकिन यहां भी समस्या का हल नहीं निकला। एक और विभाग एलडीए की इंट्री हुई। यहां भी पत्र और फाइल लिए घूमते रहे। हफ्ता, महीना और साल गुजरते रहे लेकिन डिवाइडर और चौराहों पर इस मामूली सी दिखने वाली चीज पर ठोस पहल नहीं हुई। उसके बाद मंडलायुक्त और जनता अदालत के चक्कर लगाने के बाद भी हल न निकलता देख उन्होंने हौसला नहीं हारा।
मंत्रालय ने सराहा, आखिरकार अब मिला मुकाम
सीएम कार्यालय से पत्राचार को आगे बढ़ाया। धीरे-धीरे फाइल मोटी होती चली गई पर अमल नहीं हुआ। सरकार बदलने के बाद दो मई 2017 में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे नितिन गडकरी को पत्र लिखा। आठ मई को निजी सचिव वैभव डांगे की ओर प्रशंसा के साथ पत्र आया कि यह सिर्फ राजधानी की ही नहीं पूरे देश की समस्या है। इसके लिए जिम्मेदार एजेंसी को पत्र भेजकर कार्यवाही के लिए कह दिया गया है। 28 जुलाई को सहायक कार्यपालक अभियंता नीरव पंजाबी द्वारा महानिदेशक सड़क विकास विभाग की ओर से पत्र आया। बताया गया कि सड़क सड़क सुरक्षा में आपके सुझाव व रुचि सराहनीय है। इसे प्रदेश से संबंधित विभागों के माध्यम से जल्द आगे बढ़ाया जाएगा।
इसके बाद जनवरी, 2019 में रोड सेफ्टी से जुड़े इस कार्य रेडियम पट्टी, रिफ्लेक्टर, रेडियम आइररन रॉड, सफेद पेंट के अलावा तारकोल में पेबस्त कर चमकने वाले टेग लगाने का आश्वासन मिला। इस दौरान भी बजट को लेकर कई माह तक फाइलें दौड़ती रहीं। आखिरकार इस छोटी सी दिखने वाली बड़ी समस्या का हल सामने आया। करीब छह साल की जिद्दोजहद जनवरी 2020 में के बाद मंत्रालय से उनके प्रयास को सराहा गया और अविलंब इस दिशा में कार्रवाई शुरू कराने का ठोस आश्वासन मिला। पत्र के बाद भी समय लगता देख वह स्वयं दिल्ली स्थित मंत्रालय में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के कार्यालय जा पहुंचे और निजी सचिव से मिल अपनी बात रखी।