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संस्कृतियों के गुलदस्ते से कला गुलजार

कला संसार : पल्लवित हो रहीं कथक, भरतनाट्यम, लोक नृत्य, मणिपुरी और ओडिसी नृत्य विधाएं, लड़कियों के साथ-साथ लड़कों में भी शास्त्रीय नृत्य के प्रति रुझान

By JagranEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 02:55 PM (IST)Updated: Sat, 25 Aug 2018 03:05 PM (IST)
संस्कृतियों के गुलदस्ते से कला गुलजार
संस्कृतियों के गुलदस्ते से कला गुलजार

लखनऊ (दुर्गा शर्मा)। नृत्य के रूप में शहर में संस्कृतियों का गुलदस्ता सज रहा है। कथक के गढ़ में भरतनाट्यम, लोक नृत्य, मणिपुरी और ओडिसी नृत्य विधाएं पल्लवित हो रही हैं। कथक संग विभिन्न नृत्य विधाएं कदमताल कर विविधता में एकता पिरो रही हैं। सिर्फ लड़कियां ही नहीं लड़के भी इसे समान भाव से ले रहे हैं। शास्त्रीय नृत्य के रंग बिरंगे फूलों की महक से शहर की शाम गुलजार है। घुंघरुओं की झंकार, तेज पदचाप

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अलका यादव, कथक

अलीगंज निवासी अलका सात साल से कथक कर रही हैं। बताती हैं, बचपन से ही नृत्य के शौक ने प्रशिक्षण की दिशा तय की। महज कुछ घंटों का अभ्यास नहीं साधना का नाम कथक है। घुंघरुओं की झंकार और सीधे दिलों पर दस्तक देते पदचाप कथक का आधार हैं। जब तक पसीना न बहे तत्कार ठीक नहीं होती। निरंतर अभ्यास अंगों में लोच लाता है। तीखे नैन-नख्श बातें करते हैं। नजाकत और नफासत लखनऊ के कथक की पहचान है। लखनऊ के कथक के बिना शास्त्रीय नृत्य का सफर अधूरा है। नृत्य और भाव प्राण तत्व

मंजुल रंजन, भरतनाट्यम

टीवी देखकर डांस करने की ललक पैदा हुई। बॉलीवुड डांस करती थी फिर दो साल लोक नृत्य सीखा। उसके बाद भरतनाट्यम सीखना शुरू किया। आठ साल से भरतनाट्यम कर रही हूं। इसे सबसे प्राचीन नृत्य माना जाता है। देवदासियों द्वारा विकसित इस दक्षिण भारतीय नृत्य शैली में भावों के जरिए कहानी कहने की कला खास होती है। इसमें इतिहास भी समाहित होता है। भरतनाट्यम में दो प्रमुख भाग होते हैं- पहला नृत्य और दूसरा अभिनय। इसमें शारीरिक प्रक्रिया को भी तीन भागों में बांटा जाता है- समभंग, अभंग और त्रिभंग। होलिका महोत्सव और जन्माष्टमी आदि के अवसर पर मंच पर भरतनाट्यम की प्रस्तुति दी है। पहचान के साथ मान-सम्मान

सोम्बित सरकार (शिंजिनी), ओडिसी नृत्य

मंच पर ओडिसी नृत्य करते सोम्बित सरकार को देखकर कोई इनकी असली पहचान को जान नहीं सकता। ओडिसी नृत्य विधा ने इन्हें समाज में स्वीकार्यता की नई पहचान के साथ ही मान-सम्मान भी दिलाया। सोम्बित बताते हैं, कथक और भरतनाट्यम सीखा है। यू ट्यूब पर वीडियो के जरिए ओडिसी नृत्य के प्रति आकर्षण जगा। कोलकाता जाकर गुरु सुविकाश मुखर्जी जी से ओडिसी नृत्य का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। चार साल से ओडिसी नृत्य कर रहा हूं। सोम्बित बताते हैं, 15 साल की उम्र में पहली नृत्य प्रस्तुति शान-ए-अवध में दी थी, पुरुष की वेशभूषा में प्रस्तुति को कोई खास सराहना नहीं मिली। डेढ़ साल पहले महिला के रूप में नृत्य प्रस्तुति दी, जिसे खासा सराहा गया। तब से महिलाओं की तरह ही वेश धर ओडिसी नृत्य कर रहे हैं। कहते हैं, नृत्य भावनाएं व्यक्त करने का बेहतर माध्यम है। नृत्य के जरिए लोगों की सोच बदलनी है। ओडिसी नृत्य की आकर्षक वेशभूषा और लास्य भाव खास है। मनोरंजन संग फिट भी रखता नृत्य

डॉ. शालिनी पांडेय, मणिपुरी नृत्य

फिजियोथेरेपिस्ट शालिनी ने भरतनाट्यम में विशारद पूरा करने के बाद मणिपुरी नृत्य में पुन: विशारद कर रही हैं। शालिनी बताती हैं, बचपन से ही भारतीय शास्त्रीय नृत्य और संगीत में रुचि रही हैं। सबसे पहले भरतनाट्यम सीखना शुरू किया था। इसके बाद अलग-अलग भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैलियों को जानने की जिज्ञासा जगी। शालिनी का मानना है कि हमारे शास्त्रीय नृत्यों की विभिन्न मुद्राएं एवं अंग संचालन सिर्फ मनोरंजन नहीं हमारे शारीरिक रूप से फिट भी रखते हैं। मणिपुरी नृत्य पूर्ण रूप से लास्य भावों पर आधारित है जो कि नर्तन के अति सौम्य स्वरूप को प्रस्तुत करता है। प्रदेशों की लोक शैलियों से होते रूबरू

अंकित सिंह पाल, लोक नृत्य

कुछ ललक टीवी ने जगाई और कुछ आस-पास के लोगों को देखकर रुचि हुई। हिप-हॉप और बॉलीवुड डांस से शुरुआत हुई। 2006 से नियमित प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया। मेरा रुझान देखते हुए जो कोरियोग्राफर सीखा रहे थे उन्होंने साथ में त्रिपुरा चलने को कहा। 2011 में त्रिपुरा पहुंचा और वहां सीखने के साथ-साथ सिखाने का भी सिलसिला शुरू हो गया। ढाई साल यहां रहने के बा 11 महीने देहरादून में रहकर डांस वर्कशॉप किए। वहां समझ आया कि शास्त्रीय और लोक नृत्य सीखना भी जरूरी है। 2014 में वापस लखनऊ आया। कथक सीखना शुरू किया। उसके साथ लोक नृत्य का प्रशिक्षण लेना भी शुरू कर दिया। कथक और लोक नृत्य साथ में चल रहे हैं। लोक नृत्य में लखनऊ की 'धोबिया घाट' नृत्य शैली खास है। अब तक 'घूमर', 'पंजाब का गिद्दा', 'नागालैंड का नागा', 'तमिलनाडु का कुम्मी', 'बुंदेलखंड का सैरा', 'गुजरात का गरबा', 'आसाम का बिहू' और 'मणिपुर का करताली' लोक नृत्य सीखा है।


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