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तिहरे हत्याकांड में फांसी की सजा पाया अपीलार्थी हाईकोर्ट से हुआ बाइज्जत बरी

अवैध संबंधों के चलते अपनी सगी मां पत्नी व चार साल के बेटे की हत्या के आरोप में हुई थी सजा।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 09:26 PM (IST)Updated: Wed, 03 Jun 2020 07:58 AM (IST)
तिहरे हत्याकांड में फांसी की सजा पाया अपीलार्थी हाईकोर्ट से हुआ बाइज्जत बरी

लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एक तिहरे हत्याकांड में मौत की सजा पाए अपीलार्थी को मंगलवार को बाइज्जत बरी कर दिया है। अभियुक्त पर सात साल पहले अपनी ही मां, पत्नी व चार साल के बेटे की हत्या का आरोप था। यह फैसला जस्टिस रितुराज अवस्थी व जस्टिस विकास कुंवर श्रीवास्तव की बेंच ने अभियुक्त राम गोपाल सैनी की अपील को मंजूर करते हुए सुनाया था। साथ ही सत्र अदालत अम्बेडकरनगर के अभियुक्त की फांसी की सजा पर मुहर लगाने के लिए भेजे गये संदर्भ को खारिज कर दिया।

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बताते चलें कि अम्बेडकरनगर के टांडा कस्बा निवासी राम गोपाल सैनी की मां, पत्नी व बेटे का शव 19 अप्रैल 2013 की सुबह घर में ही मिला था। घटना के 17 दिनों बाद राम गोपाल सैनी के ससुर राम गोपाल वर्मा ने पुलिस को तहरीर देते हुए आरोप लगाया कि राम गोपाल ने अपने नाजायज संबंधों में आड़े आने के कारण तिहरे हत्याकांड को अंजाम दिया है। पुलिस ने विवेचना के उपरांत अपीलार्थी के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया। जिसके बाद सत्र न्यायालय ने अपीलार्थी को 15 फरवरी 2017 को दोषी करार देते हुए, मृत्यु की सजा सुनाई।

अपीलार्थी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील नागेंद्र मोहन ने परीक्षण अदालत के फैसले केा गलत बताया तथा दलील दी कि निचली अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर सजा सुनायी है जबकि अभियेाजन अपीलार्थी के खिलाफ केस साबित नहीं कर पाया। उन्हेांने दलील दी कि एफआईआर दर्ज करने में 17 दिनों की असाधारण देरी की गई । यह भी कहा गया कि मामले में मुख्य गवाह राम गोपाल वर्मा समेत कई गवाह अपना बयान बदल चुके थे।

वहीं, शासकीय अधिवक्ता ने दलील दी कि अपने ही घर में हुई घटना का स्पष्टीकरण अपीलार्थी नहीं दे सका। दोनों पक्षों की बहस सुनने के उपरांत कोर्ट ने पाया कि घटना की सूचना 19 अप्रैल 2013 की सुबह अपीलार्थी के भांजे द्वारा स्थानीय पुलिस को दी गई थी परंतु स्थानीय पुलिस ने तीन-तीन लोगों की अप्राकृतिक मृत्यु के बावजूद बिना एफआइआर दर्ज किये पंचानामा इत्यादि कर दिया। पुलिस द्वारा मामले की एफआइआर न दर्ज किये जाने पर स्वयं अपीलार्थी ने कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया था। जिसके बाद पुलिस ने उसके ससुर की तहरीर पर उसके ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया।

बेंच ने यह भी पाया कि अपीलार्थी ने सूचनाकर्ता राम गोपाल वर्मा की पुत्री से प्रेम विवाह किया था जिससे नाराज होकर उन्होंने उसके व परिवार के खिलाफ केस कर दिया था। इस केस में उसकी पत्नी ने ही हाई केार्ट में याचिका दायर कर उसकी गिरफतारी पर रेाक लगवायी थी। ऐसे में  सूचनाकर्ता की गवाही निष्पक्ष नहीं कही जा सकती। बेंच ने पाया कि शेष गवाह सूचनाकर्ता के घरवाले ही थे। वहीं बेंच ने यह भी पाया कि पुलिस ने अपीलार्थी से पुलिस कस्टडी में अपराध कुबूल कराया और बाद में सूचनकर्ता व उसके परिवार के लोगेां के बयान पर आरोपपत्र दाखिल कर दिया।


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