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फ‍िल्‍म सुपर-30 के र‍ियल हीरो आनंद ने की द‍िल की बात, बच्‍चों को द‍िए ये खास ट‍िप्‍स Lucknow News

जागरण कार्यालय पहुंचे सुपर-30 के जनक आनंद कुमार साझा किए अपने जीवन संघर्ष और फिल्म के अनुभव। कहा कमाई नहीं बच्चों को प्रेरित करना है सुपर-30 फिल्म का मकसद।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 19 Jul 2019 03:28 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jul 2019 08:18 AM (IST)
फ‍िल्‍म सुपर-30 के र‍ियल हीरो आनंद ने की द‍िल की बात, बच्‍चों को द‍िए ये खास ट‍िप्‍स Lucknow News

लखनऊ, (दीप चक्रवर्ती)। शिक्षक बनने के टूटे हुए सपनों के टुकड़ों से एक शख्स ने नई सीढ़ी बनाई। गुरबत की गारद में टिकी यह सीढ़ी कामयाबी के आसमान पर खुलती थी। इस सोपान पर उन्होंने उन बच्चों को आगे बढ़ाया, जिनके एक पांव में निर्धनता और दूसरे पैर में तिरस्कार की बेडिय़ां थीं। उन्हें लक्ष्य दिखाया, संघर्ष का मार्ग बताया और सफलता के फलक पर आज ऐसे सैकड़ों बच्चे उड़ान भर रहे हैं।

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वह सीढ़ी है सुपर-30 और उसे बनाने वाला शख्स है आनंद कुमार। शिक्षा की दुनिया में आनंद कुमार का नाम परिचय का मोहताज नहीं। जो नहीं जानते थे वे अब फिल्म सुपर-30 से उन्हें जानने लगे। आनंद का जीवन संघर्षों और सफलताओं का ऐसा कोलाज है, जिस पर फिल्म बनना लाजमी था। फिल्म बनी। लोग पसंद भी कर रहे हैं। वे जब जागरण कार्यालय आए तो तफ्सील से अपनी जीवनयात्रा सुनाई और फिल्म बनने से लेकर लोगों की प्रतिक्रिया प्राप्ति तक के अनुभव साझा कर गए।

कैंब्रिज के बुलावे से पापड़ बेचने तक
आनंद कुमार ने बताया कि उनके शोध जब कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में प्रकाशित हुए तो वहां से बुलावा आ गया। हवाई यात्रा के पैसे नहीं थे, राज्य सरकार से मदद मांगी। नहीं मिली। सपना टूट गया। घर के माली हालात अच्छे नहीं थे। मां पापड़ बनाती थी, हम दोनों भाई बेचते थे। 

यूं हुई सुपर-30 की शुरुआत
पापड़ बेचते हुए साल भर बीत गया। एक दिन खिन्न होकर भाई प्रणव ने कहा, आपके अध्यापक बनने के सपने का क्या हुआ। कैंब्रिज नहीं जा सके तो क्या, यहां पढ़ाने में क्या हर्ज है। बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे ख्याति फैलने लगी तो बच्चे बढऩे लगे। बच्चे निर्धन थे, इसलिए उनके खाने-पीने और रहने की व्यवस्था भी हमने ही की। संसाधनों का हिसाब लगाया तो पाया कि अधिकतम तीस बच्चों को पढ़ा सकते हैं। बस यहीं से सुपर-30 की नींव पड़ गई।

अपने शिष्यों पर है गर्व
एक सवाल हुआ कि जिन बच्चों को आपने कामयाबी का मार्ग दिखाया, क्या उनमें से कोई आपकी राह पर चलने को आगे नहीं आया? इस पर उन्होंने कहा, बहुत से बच्चे मेरे काम को आगे बढ़ाने के लिए नौकरी छोडऩे को तैयार हो गए, लेकिन मैंने ही मना किया। फिर भी कई बच्चे अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं। बनारस की निधि झा, कानपुर की शिवांगी गुप्ता, इलाहाबाद के ब्रजेश के अलावा शुभम, अनूप जैसे तमाम बच्चे हैं जो कई बच्चों को पढ़ा रहे हैं। अपने शिष्यों पर मुझे गर्व है।

किरदार को लेकर ऋतिक में गजब की प्यास थी
आनंद ने बताया, लेखक संजीव दत्ता फिल्म निर्देशक अनुराग बासु को एक दिन मेरे पास लेकर आए। कहा, आपकी कहानी पर फिल्म बनाना चाहते हैं। बातचीत बढऩे लगी। तय हुआ कि फिल्म बनेगी। ऋतिक रोशन का नाम आने पर शंका हुई कि वे उनकी साधारण काया और बोलचाल के लहजे के साथ न्याय कर सकेंगे कि नहीं। उनमें किरदार के प्रति जो प्यास देखी तो निश्चिंत हो गया कि ऋतिक सही चुनाव हैं।

छात्रा पर भी बन चुकी है फ्रेंच फिल्म
उन्होंने बताया कि निधि ने आइआइटी से पासआउट किया और आज बड़ी कंपनी में काम कर रही है। उस पर एक फ्रेंच निर्देशक ने फिल्म बनाई है। फिल्म इतनी कामयाब हुई कि पेरिस की गली-गली में निधि और फिल्म के पोस्टर लगे हुए थे।

लोगों को प्रेरित कर रही है फिल्म
फिल्म पर अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि जैसी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उससे अभिभूत हूं। लोगों, खासकर बच्चों को प्रेरणा मिल रही है। कई लोगों ने कहा है कि फिल्म देखकर लौटी बच्ची ने स्मार्ट फोन को दूर रख दिया। साधन संपन्न बच्चे भी प्रेरित हो रहे हैं कि उन्हें संसाधनों का पूरा इस्तेमाल करना चाहिए। फिल्म की कामयाबी इससे नहीं आंकी जाएगी कि इसने कितनी कमाई की, बल्कि लोगों को कितनी प्रेरणा मिली यही इसकी सफलता का मापदंड होगा।

राजस्थान व बिहार के बाद यूपी में भी टैक्स फ्री है फिल्म
उन्होंने बताया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात हुई है। उन्होंने यूूपी में भी फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है। इससे ज्यादा लोगों तक फिल्म का संदेश पहुंच सकेगा। राजस्थान और बिहार में फिल्म पहले से ही टैक्स फ्री हो चुकी है।

स्मार्टफोन न दें बच्चों को
आनंद का मानना है कि बच्चों को स्मार्ट फोन नहीं देना चाहिए। इससे उनकी रचनात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सुपर-30 में बच्चों के चुनाव का भी मुख्य आधार यही होता है कि उसकी सोच कितनी उन्नत है। साथ ही कहा कि बच्चों पर 99 प्रतिशत पाने का दबाव नहीं बनाना चाहिए। इससे उनका आत्मविश्वास डिगता है। भारतीय शिक्षा जगत की गिरती गुणवत्ता भी उन्हें चिंतित करती है। अंत में उन्होंने सभी से फिल्म देखने की अपील की।


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