अंतरिक्ष में बढ़ेगा भारत का दबदबा, स्पेस जाने वाले यात्रियों की सेहत का रखा जाएगा ध्यान; UP के इस स्टार्टअप की पहल
गगनयान मिशन अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर अंतरिक्ष में जाने वाला है। माना जा रहा है कि इसके बाद स्पेस टूरिज्म तेजी से आगे बढ़ेगा। कई कंपनियां इस पर काम भी कर रही हैं। ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत सही रखने के लिए उत्तर भारत का पहला मेडिकल स्टार्टअप ब्लू ओशन अंतरिक्ष में दवाइयों का क्लीनिकल ट्रायल करने जा रहा है।
विवेक राव, जागरण, लखनऊ। भारत अंतरिक्ष में महाशक्ति बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। पिछले दिनों चेन्नई के एक स्टार्टअप अग्निकुल कासमास ने इतिहास रचते हुए अग्निबान राकेट का निर्माण किया। यह राकेट गैस और लिक्विड फ्यूल के मिश्रण का उपयोग करने वाला पहला भारतीय राकेट है। इसी कड़ी में अब ब्लू ओशन स्टार्ट-अप ने अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य का ध्यान रखने की ओर कदम बढ़ाया है।
बता दें कि गगनयान मिशन अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर अंतरिक्ष में जाने वाला है। माना जा रहा है कि इसके बाद स्पेस टूरिज्म तेजी से आगे बढ़ेगा। कई कंपनियां इस पर काम भी कर रही हैं। ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों की सेहत सही रखने के लिए उत्तर भारत का पहला मेडिकल स्टार्टअप ब्लू ओशन अंतरिक्ष में दवाइयों का क्लीनिकल ट्रायल करने जा रहा है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सहयोग से जुलाई से सितंबर के बीच में क्लीनिकल ट्रायल के लिए सेटेलाइट लांच होगा। इसके जरिये स्पेस में कमांड सेंटर बनेगा। जहां अंतरिक्ष में दवाइयों के इंसान पर प्रभाव अध्ययन होगा।
ब्लू ओशन स्टार्टअप डा. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय लखनऊ के मेरठ स्थित इंक्यूबेशन सेंटर एमआइईटी से जुड़ा है। मेडिकल क्षेत्र का यह स्टार्टअप वेलनेस, माइक्रो रोबोटिक्स और नैनो टेक्नोलाजी में कार्य कर रहा है। अंतरिक्ष में क्लीनिक ट्रायल की ओर स्टार्टअप ने कदम बढ़ाया है।
अभी स्टार्टअप के संस्थापक अपार गुप्ता ने इसे लेकर बेंगलुरू में इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ के साथ बैठक की है। उन्होंने बैठक में अपने प्रोजेक्ट का प्रजेंटेशन भी दिया। वहीं, इसरो प्रमुख ने भी इसे लेकर उत्सुकता दिखाई और इसे परियोजना में शामिल कर लिया है।
अपार ने बताया कि इसरो के पीएसएलवी राकेट के साथ रेडिएशन शील्डिंग एक्सपेरिमेंटल माड्यूल में दवाओं का सैंपल अंतरिक्ष में ट्रायल के लिए भेजा रहा है। इसमें दवाओं के चार मालिक्यूल को इंसानों के टिश्यू के साथ रखा जाएगा। यह दो माह तक अंतरिक्ष में रहेगा।
अंतरिक्ष में दवाओं के इंसान के टिश्यू पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया जाएगा। स्पेस में ऐसे कई जीवित बैक्टीरिया भी हैं, जिसकी वजह से अंतरिक्ष में दवाओं का असर धरती के मुकाबले अलग रहता है। दो महीने तक अंतरिक्ष में भेजी गई दवाओं का मानव टिश्यू पर जो भी असर पड़ेगा। उसके आधार पर ही भविष्य में दवाओं के मालिक्यूल में बदलाव किया जाएगा।
धरती पर जो दवा इंसानों के लिए उपयोगी है, संभव है कि अंतरिक्ष में उसका असर उतना नहीं हो। अंतरिक्ष में क्लीनिकल ट्रायल करने के बाद नैनो सेटेलाइट के माध्यम से दवाओं को अंतरिक्ष यात्रियों तक आसानी से पहुंचाया जा सकेगा। उन्होंने बताया ट्रायल के लिए पांच दवाओं के मालिक्यूल को भेजा जा रहा है।
इसको स्पेस लाइफ नाम दिया गया है। जिस माड्यूल में इसे सेटेलाइट के माध्यम से भेजा जा रहा है, उसका वजन करीब साढ़े चार किलो है। इस पूरी परियोजना के डायरेक्टर वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. पवन गोयनका ने भी इसमें उत्साह दिखाया है। उन्होंने अंतरिक्ष की उड़ान में इसे महत्वपूर्ण बताया है।
विश्व में पहली बार क्लीनिकल ट्रायल
मेडिकल स्टार्टअप कंपनी ब्लू ओशन और हैदराबाद की स्पेस कंपनी टैक मी टू स्पेस के साथ इसरो के सहयोग से अंतरिक्ष में क्लीनिकल ट्रायल होने जा रहा है। ब्लू ओशन के संस्थापक अपार गुप्ता के अनुसार, विश्व में पहली बार स्पेस में क्लीनिकल ट्रायल होगा। इस क्लीनिकल ट्रायल में दवा के प्रभाव को देखने के बाद उसके अनुसार जरूरी बदलाव करके फार्मा कंपनी के सहयोग से दवाएं तैयार कराई जाएंगी। आने वाले समय में स्पेस में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए दवाएं स्पेस में ही नैनो सेटेलाइट से पहुंचाई जाएंगी।