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राष्ट्रीय जल नीति बनाने पर मोदी सरकार गंभीर

लखनऊ। विश्व पानी संकट को देखते मोदी सरकार राष्ट्रीय जल नीति बनाने को लेकर गंभीर है। इसी के

By Edited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 09:48 AM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 09:48 AM (IST)
राष्ट्रीय जल नीति बनाने पर मोदी सरकार गंभीर

लखनऊ। विश्व पानी संकट को देखते मोदी सरकार राष्ट्रीय जल नीति बनाने को लेकर गंभीर है। इसी के तहत संसदीय समिति देश भ्रमण कर जल संसाधनों का अध्ययन कर रही है और एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर लोकसभा में प्रस्तुत करेगी। समिति में लोकसभा के 20 तो राज्यसभा के 10 सांसद हैं। समिति आज वाराणसी में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण कर गहन मंथन करेगी।

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संसदीय टीम आज वाराणसी में है। यह आज वाराणसी के दीनापुर स्थित सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का निरीक्षण करने वाली है। इससे पूर्व जल निगम, जलकल, नगर निगम, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई, केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों संग बैठक की। यहां पहुंची संसदीय समिति में 10 सांसद व केंद्र सरकार के आधा दर्जन अधिकारी शामिल हैं। यहां से पहले समिति अहमदाबाद में जल संसाधन का अध्ययन करने गई थी। समिति का अगला दौरा उत्तराखंड में होगा। इस संदर्भ में कल हुई बैठक से पूर्व संसदीय समिति के सभापति सांसद हुकुम सिंह ने बताया कि भू-जल पर निर्भरता व जल प्रदूषण बड़ी चुनौती है।

जल प्रदूषण से कैंसर रोग

सभापति ने कहा कि गंगा समेत देश की अन्य नदियां बहुत प्रदूषित हो गई हैं। इनके निर्मलीकरण में बड़ी बाधा सीवरेज योजनाओं का विफल होना है। सच्चाई है कि 70 प्रतिशत सीवर का मलजल नदियों में मिल रहा है जो नदी के साथ भू-जल को भी प्रदूषित कर रहा है। वर्तमान में जो सीवरेज योजनाएं क्रियान्वित हैं उनका हाल भी बुरा है। महज 30 प्रतिशत ही मलजल शोधन हो रहा है। कल-कारखाना संचालक भी इस दिशा में गंभीर नहीं हैं जबकि नियमानुसार उनको सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने का आदेश है वहीं खेतों में उर्वरक का इस्तेमाल भी भू-जल को प्रदूषित कर रहा है। यही वजह है कि कैंसर जैसी बीमारियां लोगों को तेजी से जकड़ रही हैं।

भू-जल पर अधिक निर्भरता, चिंता

उन्होंने भू-जल पर अधिक निर्भरता पर चिंता जाहिर की। कहा कि गांव में 80 प्रतिशत तो शहर में 50 प्रतिशत भू-जल पर निर्भरता है। ऐसा ही हाल रहा तो एक दिन पानी का संकट खड़ा हो जाएगा। उन्होंने कहा कि देश की सभी नदियां प्रदूषित हो गई हैं इसलिए उसे निर्मल करने के बाद पेयजल स्रोत के तौर पर विकसित किया जा सकता है। उन्होंने प्राकृतिक संपदा के रूप में बारिश के पानी को बताया। कहा कि बिना उपयोग के बारिश का पानी बह जाता है। यदि इसका संचयन किया जाए तो पानी संकट से निबटा जा सकता है।


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