कवियों के किस्सों से फिजा मुस्कराई, हंसगुल्लों ने लखनऊ की धड़कने बढ़ाई
कवि सम्मेलन में हास्य कवि और अभिनेता शैलेश लोढ़ा ने जिंदगी के पुराने दिन याद दिलाए। लखनऊ में ठहाकों से भरी एक रात, दैनिक जागरण के साथ।
लखनऊ[प्रियम वर्मा]। अदब भी वही था नजाकत भी पुरानी सी.। बदली थी बस वो शाम। कुछ अलग सी, मस्तानी सी। ये महफिल सजी थी कविताओं और कवियों के किस्सों से और फिजा मुस्करा रही थी ठहाकों भरे किस्सों से। मौका था दैनिक जागरण व ओमैक्स द्वारा लोहिया पार्क का एम्फी थियेटर में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का। मंच पर एक से एक देश के दिग्गज कवि मौजूद थे। खूबसूरत प्रस्तुति पर दाद देने सामने थे शहर के आम व खास लोग। दैनिक जागरण आपके सामने उनकी कुछ खास रचनाएं पेश कर रहा हैं। डॉ. सुरेश अवस्थी ने माइक संभालते ही शहर के नाम ये दो जुमले किए। पहला था अदब पर.
एक कानपुर के व्यक्ति ने लखनऊ वाले से पूछा कि आपके यहा बल्ब लगाना कितने लोगों का काम है। हमारे यहा तो दो ही लगते हैं। एक बल्ब लगाने और दूसरा नीचे स्टूल संभालने के लिए। सामने से जवाब आया कि हमारे यहा दस लगते हैं। पूछा क्यों, तो कहते हैं कि एक बल्ब लगाता है और बाकी नौ दाद देते हैं। वाह क्या बल्ब लगा है। दूसरे में बताया कि लखनऊवाले फंसते नहीं हैं.
किसी शहर में डिलिवरी के लिए एक डॉक्टर साहब लखनऊ से गए थे। लड़के होने पर कोड वर्ड था गाजर और लड़की होने पर मूली., पर यहा तो लड़का-लड़की दोनों हुए। डॉक्टर साहब क्या करते। अदब जो बरकरार रखना था, पर लखनवी फंसते नहीं। डॉक्टर ने तरीका निकाला। बाहर आकर कहा, मुबारक हो सलाद हुआ है। फिर शुरू हुआ मुख्य कार्यक्रम का कारवा। महफिल लूटने के लिए पेश हुआ हंसगुल्ला
राजेंद्र पंडित ने मुखातिब होते ही हंसगुल्ला देते हैं कि हलवाई जब पहली मिठाई बनाता है तो भट्टी में डालता है। फिर .चलो नीम के नीचे. से बचपन की पुरानी गलियों को ठहाकों से भर देते हैं। वहीं, पद्मश्री सुरेंद्र दुबे ने संजीदा लाइनों को महफिल के हवाले करते हुए कहा- नदी-नाले या पहाड़ पर मजहबी दंगों पर, या अयोध्या के पंडों पर, पूरी धरती राम की है, तो किस टुकड़े पर राम का नाम लिखूं। आप बोलिए भाई साहब, किस पर कविता लिखू।
जगदीश सोलंकी की कविता से महफिल और हुई जवान
तालियों की गडगडाहट के बीच जगदीश सोलंकी ने अपनी कुछ पंक्तियां पेश की। बुलंद आवाज में उन्होंने कहा- मा तेरी दुआ के दम से, आचल की हवा के दम से, बर्फीली चट्टानों पर बारूद को उगाया है, परिंदा भी जहा पर, पर नहीं मार सके, उस जगह जाकर भी तिरंगा फहराया है.। जब महफिल बनी इश्क की जुबां
मुमताज नसीम ने दिल लगी पर एक रचना पेश की- आज इकरार कर लिया हमने, खुद को बीमार कर लिया हमने। अब तो लगता है
जान जाएगी, तुमसे जो प्यार कर लिया हमने.। वहीं, सरदार मंजीत सिंह भी पीछे नहीं हटे। इन्होंने कहा- वो दिखती हंसनी सी है, वो कोयल जैसा गाती है। उजाला हर तरफ होता, वो जब भी मुस्कराती है। वो चंपा है चमेली है, वो खुशबू रात रानी सी। है छोटी उम्र, पर बातें वो करती है सियानी सी.।
जंदगी जब से मिली, मुस्कराने लग गई
डॉ. सुरेश अवस्थी- जंदगी जब से मिली, मुस्कराने लग गई। जहनियत लोगों की फिर आसू बहाने लग गई। रोशनी मागी थी मैंने शहर भर के वास्ते, पूरी बस्ती फिर मेरा ही घर जलाने लग गई.। राजेंद्र पंडित- इससे तो पिछली सरकार अच्छी थी। जिसमें जरा सी चापलूसी करने पर यश भारती मिल जाता था। कम से कम मेरे जैसा साहित्यकार, करंट तो नहीं खाता था.।
मुमताज नसीम के मा सरस्वती नमन के साथ हुई शुरूआत
हे सरस्वती मा, हे सरस्वती मा तेरे चरणों में अर्पण मेरे दो जहा। मैं तो हर पल तुम्हारी ही दासी रही। याद करके तुम्हें न उदासी रही।
कार्यक्रम को रोशनी देने मुख्य अतिथि के तौर पर जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा, दैनिक जागरण के संपादक (उत्तर प्रदेश) आशुतोष शुक्ल, स्थानीय संपादक अभिजित मिश्र, जीएम जेके द्विवेदी, एवीपी मार्केटिंग सेंट्रल यूपी के मुदित गुलाटी व जीएम मार्केटिंग लखनऊ कपिल जायसवाल मौजूद रहे।