श्रीहरि के जागरण बाद भी विवाह मुहूर्त के लिये करना होगा इंतजार
शुभ कार्यों के कारक दोनों ग्रहों गुरु-शुक्र के देर से उदय होने के कारण नवंबर व दिसंबर में मिलाकर विवाह की सिर्फ 15 लग्न मिल रही हैं।
वाराणसी (जेएनएन)। क्षीर सागर में शेषशैया पर चार मास से शयनरत प्रभु श्रीहरि कार्तिक शुक्ल एकादशी तदनुसार 31 अक्टूबर को जागेंगे। इस अवसर को श्रद्धालु हरिप्रबोधिनी एकादशी के रूप में मनाएंगे, लेकिन विवाह समेत मांगलिक कार्यों के उनके अरमान फिलहाल अभी नहीं पूरे हो पाएंगे।
गुरु-शुक्र अस्त होने के कारण उन्हें इसके लिए 19 दिन इंतजार करना होगा। ख्यात ज्योतिषाचार्य ऋषि द्विवेदी के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार मास चातुर्मास के नाम से जाने जाते हैं। इस अवधि में प्रभु श्रीहरि क्षीर सागर में शयन करते हैं। सभी तरह के शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। उनके जागरण के साथ चातुर्मास समाप्त होता है और शुभ कार्य भी शुरू हो जाते हैं, लेकिन इस बार हरि प्रबोधिनी एकादशी गुरु अस्त में होगी तो दो नवंबर को भगवान भास्कर के साथ गुरु व शुक्र दोनों तुला राशि में होंगे। दोनों ग्रहों के अस्त होने से शुभ कार्य 19 नवंबर से शुरू होंगे।
व्रत और पूजन विधान : हरि प्रबोधिनी एकादशी को प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर पालनहार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए व्रत को संकल्पित होते हैं। रात में विष्णु सहस्त्रनाम, विष्णु कथा, पुराण आदि का श्रवण व भजन, गायन, वादन के साथ घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़ा तथा वीणा आदि बजा कर शयनरत प्रभु श्रीहरि को जगाना चाहिए। रात में ही पंचोपचार व षोडशोपचार विधि से पूजन करना चाहिए । ऐसा करने से श्रीहरि प्रसन्न होकर व्रतियों को सुख-सौभाग्य व यश का वरदान देते हैं। हरि प्रबोधिनी व्रत व चातुर्मास व्रत पारन एक नवंबर को होगा। इसी दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाएगा।
विष्णु पंचक व्रत : कार्तिक शुक्ल एकादशी 31 अक्टूबर से पांच दिवसीय अर्थात कार्तिक पूर्णिमा तक विष्णु पंचक व्रत का विधान है। इस व्रत के निमित्त काम क्रोधादि त्याग कर ब्रह्मïचर्य धारण कर क्षमा, दया व उदारयुक्त होकर स्वर्ण या रजत लक्ष्मी नारायण मूर्ति वेदी पर स्थापित करना चाहिए। ऋतु फल, मिष्ठान्न, गंध, धूप, फल-नैवेद्य आदि से पूजन, पांच दिन उपवास और पद्म पुराण श्रवण करना चाहिए। पूजन के पांचों दिन क्रमश: प्रभु के हृदय का कमल पुष्प से, कटि प्रदेश का बिल्व पत्र से, घुटनों का केतकी पुष्प से, चरणों का चमेली पुष्प से व संपूर्ण अंगों का तुलसी दल से पूजन करना चाहिए। साथ ही ब्राह्मïणों को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। इससे श्रीहरि व माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख, समृद्धि, सौभाग्य, वैभव का आशीष प्रदान कर अंत में वैकुंठ में स्थान देते हैं।
बना रहेगा गुरु-शुक्र का रोड़ा : हरिप्रबोधिनी एकादशी के साथ ही आगे भी मंगल कार्यों को लेकर गुरु-शुक्र का रोड़ा बना रहेगा। शुभ कार्यों के कारक दोनों ग्रहों के देर से उदय होने के कारण नवंबर व दिसंबर में मिलाकर विवाह की सिर्फ 15 लग्न मिल रही हैं। इसमें नवंबर में 19 से 24 व 28 से 30 और दिसंबर में तीन से पांच व आठ से 10 तक है। इसके बाद पौष कृष्ण द्वादशी तदनुसार 14 दिसंबर को शुक्र दिन में 8.38 बजे पूर्व में फिर अस्त हो जाएंगे। इससे एक बार फिर शादी विवाह वर्जित हो जाएगा। वहीं 16 दिसंबर को सूर्यदेव के धनु राशि में प्रवेश के साथ खरमास आरंभ होगा। मकर संक्रांति भी शुक्रास्त में ही होगी। हर बार मकर के बाद लग्न मुहूर्त आरंभ होते रहे हैं, लेकिन इस बार 24 दिन आगे तक फिर मुहूर्त का इंतजार करना होगा।