ऊंट, घोड़ा और रथ के साथ नवाबों की नगरी में होली में निकलेगा 'रंगोत्सव' का जुलूस, होगी कवियों की 'चकल्लस'
कोरोना संक्रमण के चलते इसमे खलल न पड़े इसके लिए बुधवार को रंगोत्सव व जुलूस के प्रतिनिधियों ने उपमुख्यमंत्री डा.दिनेश शर्मा से मुलाकात की और अनुमति के निर्देश की मांग की। उपमुख्यमंत्री से मिला आयोजन समिति का प्रतिनिधि मंडल उप मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त को दिए निर्देश।
लखनऊ , जेएनएन। लक्ष्मणनगरी में तहजीब की बात होती है तो चौक के रंगोत्सव का नाम बरबस जेहन में आता है। पारंपरिक होली के रंग को अपने आंचल में पिरोए इस उत्सव का अपना अगल महत्व है। तीन दिवसीय उत्सव के रंगजुलूस में एक ओर जहां होरियारे फाग के साथ जुलूस की शोभा बढ़ाते हैं तो दूसरी ओर रंगोत्सव में उड़ते गुलाल और इत्र की खुशबू पूरे शहर को एकता की खुशबू में समाहित करती है। पहले हाथी भी जुलूस में शामिल होते थे, लेकिन प्रतिबंध के बाद अब ऊंट, घोड़ा, रथ व बैंडबाजे के होरियारों की टोलियां चलती हैं।
28 मार्च को होलिका दहन और 29 को रंगोत्सव जुलूस निकलेगा 30 को चकल्लस होगी
कोरोना संक्रमण के चलते इसमे खलल न पड़े इसके लिए बुधवार को रंगोत्सव व जुलूस के प्रतिनिधियों ने उपमुख्यमंत्री डा.दिनेश शर्मा से मुलाकात की और अनुमति के निर्देश की मांग की। प्रतिनिधि मंडल में चौक होली की बारात से ओम प्रकाश दीक्षित , नामित पार्षद अनुराग मिश्रा अन्नू, चौपटिया होली की बारात से लक्ष्मी कांत पांडेय , ऋद्धि किशोर गौड़, आशीष अग्रवाल और राजा बाजार बारात से संजय रस्तोगी शामिल हए। उप मुख्यमंत्री डा.दिनेश शर्मा तत्काल लखनऊ के मंडलायुक्त रंजन कुमार से बात कर कोरोना संक्रमण की गाइडलाइन के तहत तीनों जलूसों के साथ साथ होली के अन्य परंपरा गत कार्यक्रमों का निर्वाह करने के लिए निर्देशित किया। उप मुख्यमंत्री ने सभी से कोरोना संक्रमण की गाइड लाइन का पालन करने की अपील कि तो प्रतिनिधि मंडल ने आश्वासन दिया कि वह लोग कोरोना की गाइड लाइन का पूरी तरीके से पालन करेंगे और संक्षिप्त रूप से परंपराओं का निर्वाह करेंगे। इसे लेकर शीघ्र ही जिला प्रशासन के साथ बैठक होगी।
होलिकोत्सव समिति के महामंत्री अनुराग मिश्रा 'अन्नूÓ ने बताया कि हिंदू-मुस्लिम एकता का इतिहास समेटे इस जुलूस में नवाब केसर से बने रंगों से होली खेलते थे। आजादी के बाद लोग टेसू और पलाश के फूलों से बने रंगों की होली खेलते लगे। साहित्यसूर्य पं.अमृतलाल नागर, काशीनाथ, लाला रामदास अग्रवाल, वीके टंडन के अलावा गोविंद शर्मा, ओम प्रकाश दीक्षित और विष्णु त्रिपाठी 'लंकेशÓ के साथ ही मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल रहे स्व.लालजी टंडन सहित कई गणमान्य लोगों की भागीदारी से जुलूस खास होता था।
अमृतलाल नागर जी की अपील पर सब बाहर आते थे और कोनेश्वर मंदिर पर हर गली से टोलियां निकलती थीं। सबसे बड़ी खासियत यह है कि जब जुलूस निकला तो मुसलमानों ने होरियारों पर फूल और इत्र का छिड़काव कर स्वागत करना शुरू कर दिया। विष्णु त्रिपाठी ने बताया कि लखनऊ हमेशा से ऐसी जगह रहा है, जहां लोग होली-मुहर्रम-ईद एक साथ मनाते रहे हैं।
एकता भाईचारे का देता है पैगाम
चौक में निकलने वाला होली का जुलूस हिंदू-मुस्लिम एकता का पैगाम देता है। होली की खुमारी में डूबे होरियारों का मुस्लिम समुदाय के लोग स्वागत करते हैं। इस जुलूस ने लोगों के प्रति विश्वास और एकता के भाव भी भरे हैं। पहले भांग का स्वांग, महफिले, मुजरा और तरह-तरह के पकवान होते थे। लोग पान खिलाते और एक दूसरे का स्वागत करते नजर आते थे। जुलूस कोनश्वर चौक से होते हुए अकबरी गेट, केजीएमयू चौराहा होते हुए वापस कोनश्वर चौक पर खत्म होता है। पहले पीतल के बड़े हंडे में टेसू के फूल घोल कर रखे जाते थे। पीतल की बड़ी पिचकारी में रंग भरकर एक-दूसरे को रंगों से सराबोर किया जाता था।
गुड़ की गुझिया और फगुआ है खास
दक्षिण लखनऊ में भी तीन दशक पहले शुरू हुई होली की परंपरा अब एकता और भाईचारे के रूप में स्थापित हो चुकी है। आशियाना परिवार की ओर से द्विवेदी पार्क में गुड़ की गुझिया की खुशबू के साथ पारंपरिक फाग आम और खास दोनों को ही अपने रंग में रंगता है। परिवार के अध्यक्ष आरडी द्विवेदी ने बताया कि आशियाना क्षेत्र में सांस्कृतिक मेले के रूप में इस परंपरा की स्थापना हुई। दक्षिण लखनऊ महोत्सव के साथ इस पर्यावरण के अनुकूल होली की शुरुआत के पीछे मंशा यह थी कि हमारी पुरानी धरोहरों को बचाए रखा जाए। 29 मार्च को एक बार फिर फगुआ के साथ गुड़ की गुझिया व जलेबी का वितरण यहां की होली को खास बनाती है।