90 फीसद कैंसर मरीज सामान्य चिकित्सक से करा रहे इलाज
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के यूपीकॉन कार्यक्रम में स्वास्थ्य संबंधित विषयों पर हुई चर्चा।
लखनऊ, जेएनएन । प्रदेश में कैंसर विशेषज्ञों की कमी है। केवल प्रदेश के दो मेडिकल कॉलेजों में डीएम अंकोलॉजिस्ट हैं। जबकि हर साल दो लाख नये कैंसर के मरीज आ रहे हैं। इसमें 90 फीसद मरीज कैंसर विशेषज्ञों से नहीं बल्कि सर्जन और स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों से इलाज करवा रहे हैं। यह जानकारी कैंसर सर्जन डॉ.मनोज श्रीवास्तव ने आइएमए-यूपीकॉन की दो दिवसीय प्रदेश स्तरीय सम्मेलन में दी।
चिकित्सक की सलाह से लें एंटी डिप्रेसेंट दवा
मनोचिकित्सक डॉ.अलीम सिद्दीकी ने बताया कि अगर 15 दिन से ज्यादा लगातार मन उदास हो। कोशिशों के बावजूद भी व्यक्ति इससे उबर न पा रहा हो। आत्महत्या के विचार आ रहे हों। ये डिप्रेशन के लक्षण हैं। नॉर्मल डिप्रेशन एंटी डिप्रेसेंट दवा और काउंसिलिंग से ठीक हो जाता है। एंटी डिप्रेसेंट दवाओं से दो तिहाई मरीज ठीक हो जाते हैं, केवल एक तिहाई मरीजों में दोबारा दवाओं की जरूरत पड़ती है।
हार्ट अटैक का डेढ़ घंटे में हो मैनेजमेंट
हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ.राकेश सिंह ने बताया कि हार्ट अटैक पडऩे के एक से डेढ़ घंटे के बीच मरीज की एंजियोग्राफी होनी चाहिए। एंजियोप्लास्टी समय रहते नहीं होती है तो इससे उसकी हृदय की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और जल्दी मौत भी हो सकती है।
केवल 10 से 20 फीसद लोगों को होती है आइवीएफ की जरूरत
अजंता हॉस्पिटल की डॉ.गीता खन्ना ने बताया कि देश में 15 फीसद आबादी इंफर्टिलिटी से पीडि़त है। इसमें से केवल 10 से 20 फीसद दंपत्तियों में आइवीएफ (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन)और इंटर साइटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन (आइसीएसआइ) तकनीक की जरूरत होती है। वहीं 60 फीसद लोग केवल दवाओं से ठीक हो जाते हैं, बाकी 20 फीसद को आयूआइ तकनीक से इलाज करना पड़ता है।