मोदी की काशी यूपी के चुनाव में भी 'दिव्य काशी-भव्य काशी' का भर रही ओज, जानें- इस बार क्या है समीकरण
UP Vidhan Sabha Election 2022 मोदी की काशी यूपी के चुनाव में दिव्य काशी-भव्य काशी का ओज भर रही है। योगी सरकार ने काशी को विकास की प्रयोगशाला बनाया। 2017 तक काशी में कुछ निर्माण कार्य बस शुरू ही हो सके थे। आज विकास से कोई पक्ष अछूता नहीं है।
वाराणसी [अशोक सिंह]। देश की सांस्कृतिक राजधानी अब अपने विकास माडल को लेकर ख्यात हो चली है। यही कारण है कि मोदी की काशी यूपी के चुनाव में भी 'दिव्य काशी-भव्य काशी' का ओज भर रही है। योगी सरकार ने काशी को विकास की प्रयोगशाला बनाया। 2017 तक काशी में कुछ निर्माण कार्य बस शुरू ही हो सके थे। आज विकास से कोई पक्ष अछूता नहीं है। विश्वनाथ मंदिर के आसपास के 400 भवनों को खरीद कर रिकार्ड समय में भव्य-नव्य श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का निर्माण हुआ। रिंग रोड, फोर लेन सड़कें बनीं, शहर की सड़कें, गलियां, कुंड, तालाब, पार्क, सीवर ट्रीटमेंट प्लांट, अस्पताल, स्कूल, कालेज के काम हुए। कैंसर संस्थान, ट्रामा सेंटर, ट्रेड फैसीलिटेशन सेंटर और अंतरराष्ट्रीय स्तर के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर की सौगात मिली।
जातीय और धार्मिक समीकरण रहते हैं प्रभावी : मोदी लहर और विकास कार्य के बीच भी जातीय व धार्मिक समीकरण प्रभावी हैं। उत्तरी सीट मुस्लिम बाहुल्य है तो वैश्य व राजपूतों का प्रभाव भी है। दक्षिणी में मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में है तो ब्राह्मण निर्णायक। कैंट में कायस्थ और सेवापुरी में पटेल, भूमिहार की संख्या प्रभावी है। रोहनियां-पिंडरा में पटेल व भूमिहार, शिवपुर में पटेल व राजभर तो अजगरा में सभी जातियों के मतदाता हैं।
दक्षिणी विस सीट में ही विश्वनाथ धाम, पर राह नहीं आसान : पिछली बार दक्षिणी विधानसभा सीट से डा.नीलकंठ तिवारी गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी डा. राजेश मिश्र को मुश्किल से हरा पाए थे। धर्मार्थ कार्य राज्यमंत्री डा.नीलकंठ के क्षेत्र में ही विश्वनाथ धाम है, मगर इस बार यह सीट आसान नहीं होगी।
पूरा वेतन विकास कार्य के नाम, फिर भी नाखुशी : शहरी विधानसभा क्षेत्र उत्तरी से जीतकर रवींद्र जायसवाल राज्य मंत्री बने। पूरा वेतन विकास कार्यों के नाम किया। उत्तरी क्षेत्र में विकास कार्य भी खूब हुए, मगर कुछ स्थानीय लोग राज्य मंत्री पर सवाल खड़े करते हैं। हालांकि शहरी क्षेत्र में भाजपा की पकड़ मजबूत मानी जाती है।
बिरादरी को जोड़ने की जिम्मेदारी : ग्रामीण क्षेत्र की शिवपुर सीट से जीते भाजपा के अनिल राजभर कैबिनेट मंत्री बने। सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर के इस्तीफे के बाद उनका विभाग भी अनिल को मिला। उन्होंने पार्टी से राजभर समाज को जोड़ने के लिए काफी काम किया। इस बार सुभासपा का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ है इसलिए अनिल राजभर को अपने समाज के लोगों को मतदान केंद्रों तक लाने की बड़ी जिम्मेदारी है।
गठबंधन के बाद भी हारी कांग्रेस : कैंट सीट पर तीन दशक से श्रीवास्तव परिवार का कब्जा है। 2017 में भाजपा प्रत्याशी सौरभ श्रीवास्तव रिकार्ड 58.29 प्रतिशत वोट पाकर जीते। यहां कांग्रेस को 31.3 प्रतिशत मत मिले। सौरभ ने क्षेत्र में जनता के बीच उपस्थिति दर्ज कराई और काम किया। इसके साथ ही वाराणसी में केंद्र सरकार की ओर से कराए गए विकास कार्यों के साथ वह चुनाव में होंगे।
भाजपा ने दोबारा छीन लिया पिंडरा : वामपंथ का गढ़ कोलअसला सीट जिसकी पहचान अब पिंडरा के नाम से है। यहां 1996 में अजय राय ने वामपंथी नेता कामरेड ऊदल से इस सीट को छीना। तब अजय राय भाजपा में थे। 2017 में कांग्रेस के टिकट पर अजय राय चुनाव लड़े और भाजपा के डा. अवधेश सिंह से हार गए। रोहनियां सीट पर सुरेंद्र नारायण सिंह ने 51.28 प्रतिशत वोट प्राप्त कर सपा के महेंद्र सिंह पटेल को हराया।
सहयोगियों ने नहीं किया निराश : भाजपा ने दो सीटें सहयोगियों को दी थी। सेवापुरी से अपना दल के नीलरत्न पटेल ने सपा के मंत्री रहे सुरेंद्र पटेल को हराया। अजगरा सुरक्षित सीट पर सुभासपा के कैलाश नाथ सोनकर ने सपा के लालजी सोनकर को मात दी थी।