अफ्रीकी वैरिएंट को पकडऩे के लिए होगी जीन सिक्वेंसिंग, लखनऊ के केजीएमयू में प्रयास तेज
African variants of Coronavirus विशेषज्ञों ने दी लोगों को पहले से अधिक सतर्क रहने की सलाह। केजीएमयू में नए वैरिएंट की जांच के लिए जीन सिक्वेसिंग का प्रयास तेज। सभी प्रमुख केंद्रों के 10 फीसद नमूनों की जीन सिक्वेसिंग शुरू कर दी गई है।
लखनऊ, (धर्मेन्द्र मिश्रा)। कोरोना की दूसरी लहर के लिए विशेषज्ञ वायरस के नए-नए वैरिएंट को अहम वजह मान रहे हैं। अभी तक देश के विभिन्न राज्यों में यूके, ब्राजील व अफ्रीकी इत्यादि नए वैरिएंट के केस सामने आ चुके हैं। इसे लेकर विभिन्न राज्यों को अलर्ट भेजा जा चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार कोरोना का अफ्रीकी वैरिएंट अधिक संक्रामक है। यह आरटीपीसीआर से स्क्रीनिंग में पकड़ नहीं आता, जबकि यूके वैरिएंट की आरटीपीसीआर से स्क्रीनिंग हो रही थी। बाद में पुष्टि के लिए इसकी जीन सिक्वेसिंग कराई जाती थी। अब अफ्रीकी वैरिएंट समेत दूसरे म्यूटेंट को पकडऩे के लिए सभी प्रमुख केंद्रों के 10 फीसद नमूनों की जीन सिक्वेसिंग शुरू कर दी गई है।
केजीएमयू में माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्षा प्रो. अमिता जैन ने बताया कि जीन सिक्वेंसिंग तेज करने की तैयारी शुरू कर दी गई है। जल्द ही यहां भी 10 फीसद नमूनों की सिक्वेंसिंग की जाएगी। यह जेनेटिक कोड का खाका तैयार करने की एक प्रक्रिया है। इसमें वायरस के नए वैरिएंट की पहचान आसानी से हो जाती है। एसजीपीजीआइ में माइक्रोबायोलॉजी की विभागाध्यक्षा डॉ. उज्जवला घोषाल ने बताया कि कोरोना के नए म्यूटेंट स्पाइक प्रोटीन में बदलाव के कारण अधिक संक्रामक हो जाते हैं। यूके, ब्राजील व अफ्रीकन वैरिएंट में यह देखा गया है कि अफ्रीकन वैरिएंट अन्य की तुलना में अधिक संक्रामक है। अफ्रीकी वैरिएंट आरटीपीसीआर की जांच में पकड़ नहीं आता। इसलिए इनकी जीन सिक्वेंसिंग कराई जा रही है।
'जिस तरह से लाकडाउन के दौरान लोग सतर्क थे, अब उससे भी ज्यादा सतर्कता जरूरी है। घर से कहीं भी बाहर जाने पर मास्क लगाएं व शारीरिक दूरी का पालन करें। बेवजह किसी वस्तु को नहीं छुएं। जिनको मौका मिल रहा है, वह वैक्सीन अवश्य लगवाएं। -डॉ. विक्रम सिंह, चिकित्साध्यक्ष लोहिया संस्थान
'जो लोग पहले संक्रमित नहीं हुए थे, दूसरी लहर में वही अधिक संक्रमित हो रहे हैं। हालांकि जो एक बार संक्रमित हो चुके हैं, उनको भी यह वायरस दोबारा संक्रमित कर रहा है, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या नए लोगों की तुलना में काफी कम है। - डॉ. उज्जवला घोषाल, विभागाध्यक्ष एसजीपीजीआइ