Republic Day in Lucknow: 110 साल पुरानी लंदन की 'मैरी वेदर' सेना के जवानों संग करेगी मार्च
Republic Day in Lucknow कुछ समय पहले इसके पुर्जों में खराबी हो गई थी। इसलिए इस वर्ष परेड में शामिल होने की इसकी संभावना कम थी। हालांकि दमकल विभाग के अधिकारी सेना से सेवानिवृत्त अधिकारियों और मैकेनिकों की मदद से इसे फिर तैयार कर दिया है।
लखनऊ [सौरभ शुक्ला]। राजधानी में गणतंत्र दिवस की परेड में मंगलवार को 110 साल पुरानी लंदन की मैरी वेदर (अग्निशमन गाड़ी) फिर शामिल होगी। ब्रॉस बैंड और पाइप बैंड पर बजती देशभक्ति की धुनों पर सेना के जवानों के साथ मार्च करेगी। राजधानी के चौक स्थित फायर स्टेशन पर रंगरोगन के बाद इसे तैयार कर लिया गया है। कुछ समय पहले इसके पुर्जों में खराबी हो गई थी। इसलिए इस वर्ष परेड में शामिल होने की इसकी संभावना कम थी। दमकल विभाग के अधिकारी परेशान थे, क्योंकि मैरी वेदर परेड का अभिन्न अंग होने के साथ ही दर्शकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होती है। हालांकि दमकल विभाग के अधिकारी सेना से सेवानिवृत्त अधिकारियों और मैकेनिकों की मदद से इसे फिर तैयार कर दिया है।
दमकल की दुल्हनियां भी कहते हैं इसे
पूरे देश में यह इकलौती गाड़ी है, जो चालू हालत में है। यह लखनऊ दमकल के पास धरोहर के रूप में रखी गई है। मैरी वेदर को सिर्फ गणतंत्र दिवस की परेड और विंटेज कार रैली में के लिए निकाला जाता है। परेड के बाद फिर इसे चौक स्थित फायर स्टेशन पर कवर से ढककर खड़ा कर दिया जाता है। इसकी देखरेख के लिए एक कर्मचारी की ड्यूटी रहती है। इसका वजन करीब 60 क्विंटल है, जबकि सामान्य दमकल की गाडिय़ां 35 क्विंटल तक होती हैं। यह 60 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से फर्राटा भरती है। इसके पहिए लोहे के हैं, जिन पर रबर लगा है।
ले नहीं जा पाए तो पुर्जे खोल ले गए अंग्रेज
चीफ फायर ऑफिसर विजय कुमार सिंह ने बताया कि 1911 में अंग्रेजी हुकूमत ने लंदन से तीन मैरी वेदर मंगवाया था। एक दिल्ली और दूसरी भोपाल में रखी गई। तीसरी आगरा नगर निगम को दी गई थी। दिल्ली और भोपाल वाली गाड़ी खराब हो गई। आगरा नगर निगम के पास जो गाड़ी थी उसे 1944 में दमकल विभाग के गठन के बाद इसके बेड़े में शामिल कर लिया गया।
बाद में इसे लखनऊ लाया गया। पहले इससे आग बुझाई जाती थी। इसमें हौज पाइप भी लगे हैं। हालांकि अब इसका उपयोग आग बुझाने में नहीं होता। आजादी के बाद अंग्रेज इसे नहीं ले जा सके तो इसके पुर्जे खोल ले गए। उनकी मंशा नहीं थी कि यह भारत में काम न कर सके।