अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद ने लखनऊ के PGI में ली अंतिम सांस, झोपड़ी से राजभवन तक का ऐसा रहा सियासी सफर
लखनऊ के पीजीआइ में 19 जनवरी शाम को डीसीएम आइसीयू एसजीपीजीआइ में भर्ती कराया गया था । मल्टी ऑर्गन फेलियर के कारण जीवन रक्षक सहायक उपचारों की आवश्यकता थी। 95 वर्ष के थे पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद ।
लखनऊ, जेएनएन। अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद ने राजधानी के पीजीआइ में मंगलवार की रात करीब 12 बजे अंतिम सांस ली। वह 95 वर्ष के थे। बेहद गंभीर हालत में एक निजी अस्पताल से स्थानांतरित कर दिया गया। 19 जनवरी शाम को डीसीएम आइसीयू, एसजीपीजीआइ में भर्ती कराया गया था। बताया जा रहा है कि मल्टी ऑर्गन फेलियर के कारण जीवन रक्षक सहायक उपचारों की आवश्यकता थी। वहीं, उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने माता प्रसाद के निधन पर शोक व्यक्त किया है। राज्यपाल ने अपने शोक संदेश में दिवंगत आत्मा की शांति की कामना करते हुये शोक संतप्त परिजनों के प्रति हार्दिक संवेदना व्यक्त की है।
जौनपुर के मछलीशहर कस्बे के कजियाना मोहल्ले में 11 अक्टूबर 1925 को खेतिहर मजदूर पिता जगरूप व माता रज्जी देवी के घर पैदा हुए माता प्रसाद का जीवन संघर्षों भरा रहा। जीवन के शुरुआती दिनों में भेदभाव, छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों से इन्हें जूझना भी पड़ा था। हालांकि, धुन के पक्के, मेहनती व लगनशील माता प्रसाद ने संघर्षों, अभावों से झोपड़ी के जीवन से लेकर राजभवन तक सफल व शानदार सफर तय किया। शुरुआती दिनों में सामाजिक बुराइयों का इनके मन पर जो बुरा प्रभाव पड़ा उसका असर इनके साहित्य दर्शन में साफ दिखलाई पड़ा। दलित हित चिंतक माता प्रसाद ने विद्यालयीय शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1946 से 54 तक प्राथमिक व जूनियर विद्यालयों में सहायक अध्यापक, प्रधानाध्यापक के रूप में भी कार्य किया। 1955 में जब इन्होंने कांग्रेस की सदस्यता लेकर राजनीति की ओर रुख किया तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
ऐसा रहा सफर : 1957 से 77 तक वे शाहगंज सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक चुने गए। लंबे अर्से तक लगातार विधायक रहने के बाद 1980 से 1992 तक विधान परिषद के सदस्य रहे। इसी दौरान 1988 में प्रदेश की नारायण दत्त तिवारी सरकार में उन्हें राजस्व मंत्री का ओहदा दिया गया। इन्होंने कांग्रेस में जो अपनी पूरी निष्ठा, ईमानदारी व मेहनत के साथ सेवा दिया था उसका इन्हें सबसे बड़ा इनाम पार्टी ने 21 अक्टूबर 1993 को अरुणाचल प्रदेश का राज्यपाल बना कर दिया। इस तरह से माता प्रसाद का झोपड़ी में संघर्षों के साथ शुरू हुआ जीवन शानदार राजभवन तक पहुंच गया। इन सबके बावजूद माता प्रसाद ने न तो कभी सिद्धांतों से समझौता किया और न ही कभी सादगी छोड़ी। शहर की सड़कों पर रिक्शे पर बैठकर आवागमन करना इनके व्यक्तित्व की विशेषताओं में चार चांद लगाने वाला रहा। लोकगीतों, खंड काव्यों के सफल रचनाकार माता प्रसाद ने दलित मुद्दों पर बीस से अधिक नाटकों की रचना भी की है। इस उपलब्धि पर इन्हें प्रतिष्ठित जुगलकिशोर स्मृति नाट्य पुरस्कार से भी नवाजा गया था। 16 मई 1996 को राज्यपाल पद से मुक्त होने के बाद भी यह कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे। 90 वसंत देखने के बाद 19 जनवरी की आधी रात को लखनऊ स्थित आवास पर इनका निधन हो गया। यह खबर जैसे ही जिले में पहुंची लोग स्तब्ध रह गए। कांग्रेस पार्टी सहित विभिन्न दलों के लोगों, बुद्धिजीवियों व अन्य संगठनों से जुड़े लोगों ने इन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
साहित्यकार के रूप में भी थे प्रसिद्ध : पूर्व राज्यपाल एक साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते रहे। उन्होंने एकलव्य खंडकाव्य, भीम शतक प्रबंध काव्य, राजनीति की अर्थ सतसई, परिचय सतसई, दिग्विजयी रावण जैसी काव्य कृतियों की रचना ही नहीं की वरन अछूत का बेटा, धर्म के नाम पर धोखा, वीरांगना झलकारी बाई, वीरांगना उदा देवी पासी , तड़प मुक्ति की , धर्म परिवर्तन प्रतिशोध , जातियों का जंजाल , अंतहीन बेडिय़ां , दिल्ली की गद्दी पर खुसरो भंगी जैसे नाटक भी रचे। इसके साथ ही राज्यपाल रहते उन्होंने मनोरम, अरुणाचल पूर्वोत्तर भारत के राज्य, झोपड़ी से राजभवन आदि उल्लेखनीय कृतियां लिखी हैं।
संक्षित परिचय
- नाम : माता प्रसाद
- पिता का नाम: जगरूप
- माता का नाम: रज्जी देवी
- जन्म : 11 अक्टूबर 1925
- मृत्यु : 19 जनवरी 2021