Move to Jagran APP

Pitru Paksh 2019 : पितृपक्ष दौरान भूलकर भी न करें यह सब काम

Pitru Paksh 2019 पितृपक्ष पूर्णिमा के साथ शुरू होकर 16 दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होगा है।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 12:44 PM (IST)Updated: Sat, 14 Sep 2019 07:31 AM (IST)
Pitru Paksh 2019 : पितृपक्ष दौरान भूलकर भी न करें यह सब काम
Pitru Paksh 2019 : पितृपक्ष दौरान भूलकर भी न करें यह सब काम

लखनऊ, जेएनएन। पितरों को मुक्ति और उन्हें ऊर्जा देने के लिए श्राद्ध कर्म होता है। आत्मा और मनुष्य के बीच संबंध को जोडऩे वाला समय पितृपक्ष इस वर्ष 14 सितंबर से आरंभ हो रहा है। ऐसी धार्मिक मान्यता है भाद्र शुक्ल पूर्णिमा तिथि को प्रपोष्ठी श्राद्ध के दिन ऋषि मुनियों का तर्पण किया जाता है।

loksabha election banner

पितृपक्ष पूर्णिमा के साथ शुरू होकर 16 दिनों के बाद सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होगा है। इन दिनों में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग अपने पितरों को याद करके उनका श्राद्ध कहते है। पितरों को मुक्ति और उन्हें ऊर्जा देने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते है। इस बार पितृपक्ष 28 सितंबर तक चलेगा।

कौन कहलाते हैं पितर

ऐसे व्यक्ति जो धरती पर जन्म लेने के बाद अब जीवित नहीं है, उन्हें पितर कहते हैं। फिर वह चाहें विवाहित हों, अविवाहित हों, बुजुर्ग हों, स्त्री हो या पुरुष अगर उनकी मृत्यु हो चुकी है, तो उन्हें पितर कहा जाता है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए भाद्रपद महीने के पितृपक्ष में उनको तर्पण दिया जाता है। घर के लोग उनको याद करते हैं।

पंचवली करें

धार्मिक कथाओं के अनुसार श्राद्ध में पिंड दान और तर्पण करने के बाद पंचवली करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। पंचवली के बिना श्राद्ध पूर्ण नहीं होता। गो को पश्चिम दिशा में मुख करके पत्ते पर देना चाहिए। कुत्ते को जमीन पर। कौवा को पृथ्वी पर देवता, मनुष्य, यक्ष आदि को पत्ते पर। कीड़े, मकोड़े और चीटियों को पत्ते पर देना चाहिए।

पितृ पक्ष में पितरों को खुश करें

पितृ पक्ष में 16 श्राद्ध होते हैं और पितरों को खुश किया जाता है । इन दिनों में भूलकर भी कुछ गलतियां नहीं करनी चाहिए, वरना खुशियों में ग्रहण लग सकता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष श्राद्धपक्ष या पितृ पक्ष कहलाता है। इस दौरान मृत्यु प्राप्त व्यक्तिों की मृत्यु तिथियों के अनुसार इस पक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध दो प्रकार के होते हैं। पार्वण श्राद्ध व एकोदिष्ट श्राद्ध। आश्विन कृष्ण के पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहा जाता है। पार्वण श्राद्ध अपहारण में मृत्यु तिथि के दिन किया जाता है। एकोदिष्ट श्राद्ध हमेशा मध्याह्न में किया जाता है।

श्राद्ध पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धासुमन अर्पित करने का महापर्व है। जो श्रद्धा से किया जाए उसे श्राद्ध कहा जाता है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि पितरों को पिंडदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, यश को प्राप्त करने वाला होता है। आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक के समय को श्राद्ध कहते हैं।

पितरों की कृपा से सब प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पितृपक्ष में पितरों को आस रहती है कि हमारे पुत्र पौत्र पिंड दान करके हमें संतुष्ट कर देंगे। इसी आस से पितृलोक से पितर पृथ्वी पर आते हैं। मृत्युतिथि के दिन किए श्राद्ध को पार्वण श्राद्ध कहा जाता है। 13 सितंबर दिन सुबह सात बजकर 34 मिनट पर चतुर्दशी तिथि की समाप्ति है। सात बजकर 35 मिनट पर पूर्णिमा का प्रारंभ होगा, जो कि 14 सितंबर दिन शनिवार को सुबह 10 बजकर 02 मिनट पर समाप्त हो जाएगा। श्राद्ध तर्पण पिंडदान का समय दोपहर का होता है। पूर्णिमा 13 सितंबर दिन शुक्रवार को होगी।

किसी को भी खाली हाथ न जाने दें

श्राद्ध पक्ष में अगर कोई भोजन पानी मांगने आए तो उसे खाली हाथ नहीं जाने दें। मान्यता है कि पितर किसी भी रूप में अपने परिजनों के बीच में आते हैं और उनसे अन्न पानी की चाहत रखते हैं। गाय, कुत्ता, बिल्ली, कौआ इन्हें श्राद्ध पक्ष में मारना नहीं चाहिए। इन्हें खाना देना चाहिए।

भूलकर भी नहीं करें यह सब काम

मांसाहारी भोजन जैसे मांस, मछली, अंडा के सेवन से परहेज करना चाहिए। शराब और नशीली चीजों से बचें। परिवार में आपसी कलह से बचें। ब्रह्मचर्य का पालन करें, इन दिनों स्त्री पुरुष संबंध से बचना चाहिए। नाखून, बाल एवं दाढ़ी मूंछ नहीं बनाना चाहिए। श्राद्ध पक्ष पितरों को याद करने का समय होता है। यह एक तरह से शोक व्यक्त करने का तरीका है। पितृपक्ष के दौरान जो भी भोजन बनाएं उसमें से एक हिस्सा पितरों के नाम से निकालकर गाय या कुत्ते को खिला दें। भौतिक सुख के साधन जैसे स्वर्ण आभूषण, नए वस्त्र, वाहन इन दिनों खरीदना अच्छा नहीं माना गया है, क्योंकि यह शोक काल होता है।

पूर्णिमा का श्राद्ध

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार किसी व्यक्ति की मृत्यु पूर्णिमा को हो तो उसका श्राद्ध भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को करना चाहिए। इसमें दादा-दादी, परदादी और नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए।

भरणी का श्राद्ध

18 सितंबर को चतुर्थी तिथि दिन बुधवार को भरणी नक्षत्र होने के कारण भरणी का श्राद्ध कहा जाता है। भरणी नक्षत्र में पितरों का पार्वण श्राद्ध करने का विशेष महत्व है। नवमी तिथि को सौभाग्यवती स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है।

संन्यासियों का श्राद्ध

संन्यासियों का श्राद्ध पार्वण पद्धति से द्वादशी में किया जाता है। भले ही इनकी मृत्यु तिथि कोई भी क्यों न हो।

मघा का श्राद्ध

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार 26 सितंबर का दिन गुरुवार को मघा नक्षत्र होने के कारण मघा का श्राद्ध होता है। जिनकी जन्मकुंडली में पितृदोष के कारण घर परिवार में और पति पत्नी में क्लेश अशांति हो तो वह शांत हो जाता है। घर में सुख शांति रहती है।

काल मृत्यु वालों का श्राद्ध

वाहन दुर्घटना, सांप के काटने से, जहर के खाने से अकाल मृत्यु के कारण जिसकी मृत्यु हुई हो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि में करना चाहिए। चतुर्दशी तिथि में मरने वालों का श्राद्ध चतुर्दशी में नहीं करना चाहिए। किसी व्यक्ति की मृत्यु पूर्णिमा को हो तो उसका श्राद्ध भाद्र शुक्ल पूर्णिमा को करना चाहिए। इसमें दादा-दादी, परदादी और नाना-नानी का श्राद्ध करना चाहिए। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.