खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक.... मैं लखनऊ हूं
दैनिक जागरण अापको लखनऊ के कुछ अहम हिस्सों से रूबरू करा रहा है।
लखनऊ, [अजय शुक्ला]। पिछले कुछ सालों से एक नई परंपरा ने अंगड़ाई ली है। इसे देखकर कभी उमंग उठती है तो कभी टीस। हर रविवार कुड़ियाघाट से लेकर मनकामेश्वर उपवन, झूलेलाल वाटिका, शहीद स्मारक जैसे घाटों पर उत्साही नौजवान गोमती नदी के किनारों पर फैली गंदगी समेटते, उसे बाहर करते और नदी से दूर करते नजर आते हैं। मन उमंग से भर आता है, यह देखकर। अगले पल ही टीस उठती है जब चंद घंटों या एक-दो दिन में ही तरुणाई की लहरों से उठती यह आशा की किरण फिर गंदगी से धुंधलाने लगती है।
गोमती को आदि गंगा कहा जाता है और मेरा इससे नाता भी आदि काल से रहा है। गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में गवाही दी है कि रावण का अंत कर जब भगवान राम अयोध्या वापस लौटे तो उन्होंने ब्रह्महत्या के दोष निवारण के लिए गोमती में स्नान करने के बाद अयोध्या में पुन: प्रवेश किया था। इसी तरह भरत जब वनवासी भगवान राम को मनाने चित्रकूट गए और लौट रहे थे तो उन्होंने भी गोमती स्नान किया। मानस में वर्णित है-सई उतर गोमती नहाये, चौथे दिवस अवधपुर आये। वाल्मीकि रामायण में भी गोमती का जिक्र है।
राम के अनुज लक्ष्मण ने जब अपनी कर्मभूमि के रूप में मुङो चुना तो उन्होंने भी गोमती तट पर कौंडिल्य ऋषि (कुड़िया घाट) के आश्रम के निकट अपना मुख्य स्थान बनाया और कालांतर में यहीं से मेरा विस्तार शुरू हुआ। मुङो जो गौरव प्राचीन काल से प्राप्त है, उसमें मां आदि गंगा गोमती का आशीर्वाद सवरेपरि है। आज मेरे आंचल में जो कंक्रीट के जंगल उगे हैं, वह भी इसलिए क्योंकि यहां गोमती बहती है, जो इस भूमि को विशिष्ट बनाती है। गोमती के कारण ही मेरी जमीन सदैव उर्वरा रही। एक दौर में जब अकाल पड़ा तो पूरे संयुक्त प्रांत के लिए अन्न जल की व्यवस्था मां गोमती के आशीर्वाद से मेरी ही भूमि से हुई।
एक किंवदंती और ख्यात है। शेखजादों के पराभवकाल में दिल्ली की मुगल सल्तनत ने सआदत अली खां बुरहानुलमुल्क को अवध की जिम्मेदारी देकर भेजा। अवध आते हुए जब वह नाव से गोमती नदी पार कर रहे थे तो एक मछली पानी से निकलकर उनकी गोद में आ गिरी। नाविक ने बताया कि मछली हमारे यहां बहुत शुभ मानी जाती है। इसके बाद उन्होंने मछली को अपना राजकीय चिन्ह बना लिया। बाद में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मछली को अपने राजकीय चिन्ह में शामिल किया।
किस्सा-कोताह ये कि गोमती नदी ने मेरे वजूद को संवारा और मेरे बाशिंदों का भी, लेकिन यह देख टीस भर उठती है कि आज वही गोमती अपने वजूद को बचाने के लिए अपने उन बेटों की ओर देख रही है जिन्हे उसने जीवन दिया है। वह शहर भाग्यशाली कहलाते हैं जहां कोई नदी शहर के बीचोबीच से बहती है। मैं उन भाग्यशाली शहरों में शुमार हूं, लेकिन गोमती के भाग्य में ग्रहण लगा रहता है। गोमती के नाम पर सियासत चमकती है, पैसा बरसता है पर गोमती के आंचल में कूड़ा ठहरता है। गोमती इतनी बेबस कभी न थी। यह एक ऐसी स्वाभिमानी नदी है जिसे सजला होने के लिए पहाड़ी स्रोतों की जरूरत कभी नहीं रही। किसी ग्लेशियर के पिघलने की मोहताजगी नहीं रही। गोमती अपने गर्भ में छिपे भूजल स्रोतों से अनुप्राणित होने वाली नदी है, लेकिन जिन बाशिंदों को उसने अपने जल से जीवन दिया वही उसे कूड़े-करकट से पाट रहे हैं। भूजल स्रोतों को कूड़े की गाद ने ढक दिया है और विडंबना यह कि गोमती को जीवन देने के लिए नहर के पानी का इंजेक्शन देने की नौबत आन पड़ी। सियासत गोमती किनारों को पिकनिक स्पॉट बनाने पर तो तुली है, लेकिन उसकी गाद साफ कराने के लिए पैसे का रोना रोती है। कुड़ियाघाट के पास चार बरस पहले मिट्टी डालकर धारा रोकी गई तो मकसद था गोमती की सूरत संवरेगी, लेकिन अब तक सूरत न बदली।
काश! हर रविवार पानी में उतरकर सफाई की अलख जगाने वाले इन नौजवानों की साध पूरी हो। गोमती को सजला और प्रदूषणमुक्त बनाने की यह मुहिम अंजाम तक पहुंचे, पर सियासत के कानों पर भी जूं रेंगे और आम बाशिंदों को भी उस ‘पाप’ का अहसास हो जिसे रोज नालों के जरिये गोमती निगलती है। इन हालात में सियासत से मुखातिब असदउल्ला खां ‘गालिब’ का यह शेर गोमती पर मौजू उतरता है-
हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन
खाक हो जाएंगे हम तुमको खबर होने तक।