जागरण के 75 साल पर विशेष: ऐतिहासिक कतकी मेले को दिलाया आस्था का ठौर
दैनिक जागरण ने घाट पर लगे मेला के नाम से चलाया था अभियान।
लखनऊ, जितेंद्र उपाध्याय। हिंदू-मुस्लिम एकता और भाईचारे को अपने आंचल में समेटे नवाबी काल के ऐतिहासिक मेले को पुरानी परंपरा के साथ शुरू करने का अभियान 'दैनिक जागरण' ने चलाया। वर्ष 2016 में डालीगंज पुल से लगने वाले जाम की जद से मेले को आदि गंगा गोमती के किनारे मनकामेश्वर उपवन घाट तक लाने के अभियान को इतनी सफलता मिली कि मेला पिछले वर्ष मनकामेश्वर उपवन घाट पर लग गया। दुकानदारों से लेकर समाज के बुद्धिजीवियों ने भी अभियान के लिए 'दैनिक जागरण' की सराहना की।
'दैनिक जागरण' के प्रयास से गोमती के घाट तक मेला लाने के लिए कतकी मेला आयोजन समिति के नाम से मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्या गिरि की अध्यक्षता में कमेटी बनी। कमेटी के सदस्यों ने मंहत की अगुआई में मेले को घाट तक लाने का अभियान छेड़ा। अभियान में लखनऊ व्यापार मंडल के अध्यक्ष हरिश्चंद्र अग्रवाल के अलावा अमरनाथ मिश्रा, भारत भूषण गुप्ता, ओपी श्रीवास्तव, मनीष गुप्ता, जगदीश गुप्ता व डॉ.अजय गुप्ता समेत कई समाजसेवियों ने हिस्सा लिया। मनकामेश्वर उपवन घाट पर कार्तिक पूर्णिमा मेले को स्थानांतरित करने की 'दैनिक जागरण' की मुहिम के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी खड़े नजर आए।
14 नवंबर 2016 को वह अपराह्न करीब दो बजे मनकामेश्वर उपवन पहुंचे। मनकामेश्वर मंदिर की महंत देव्यागिरि ने सीएम से न केवल आदि गंगा गोमती का पूजन कराया बल्कि अधिकारियों के मेले के लिए पैदा की जाने वाली अड़चनों के बारे में भी मुख्यमंत्री को विस्तार से जानकारी दी। मुख्यमंत्री ने तत्कालीन जिलाधिकारी समेत एलडीए, सिंचाई विभाग, नगर निगम के अधिकारियों को घाट के सौंदर्यीकरण कराने के सख्त निर्देश भी दिए। मुख्यमंत्री के साथ ही तत्कालीन परिवार एवं मातृ शिशु कल्याण मंत्री रविदास मेहरोत्रा ने भी अभियान में भागीदारी की। अभियान के पीछे मंशा थी कि डालीगंज पुल से बांसमंडी तक लगने वाले मेले के दौरान आम लोगों के साथ ही ट्रामा सेंटर, मेडिकल कॉलेज की ओर से गंभीर मरीजों को लेकर जाने वाली एंबुलेंस फंस जाती थी। आम जनमानस को राहत देने के लिए कार्तिक मेले को मनकामेश्वर उपवन घाट पर स्थानांतरित करने का अभियान चलाया गया।
मिट्टी के काले बर्तनों के लिए प्रसिद्ध है मेला
यह ऐसा पहला मेला है जहां मिट्टी के बर्तन मिलते हैं। काले रंग के बर्तन इसी मेले में मिलता है जिसका लोगों को पूरे साल इंतजार रहता है। इसके साथ ही इस मेले में हिंदू के साथ ही मुस्लिम महिलाएं भी खरीदारी करती हैं। दुकानदारों के मुताबिक मेले में हिंदू और मुस्लिम ग्राहकों की संख्या बराबर रहती है। जाम की वजह से परेशानी होती है। आदि गंगा गोमती में स्नान के साथ ही मेले का आगाज होता है तो मेले को गोमती के तट पर लगाने की मुहिम का ही असर है कि इस बार मेला मनकामेश्वर घाट के बजाय झूलेलाल घाट पर भले ही लगा हो, लेकिन यह प्रयास समाजसेवियों और 'दैनिक जागरण' के सहयोग से हो सका है। बीमार सैकड़ों मरीजों की जान यहां मेला लगाकर बचाया जा सका है।
देव्या गिरि, महंत, मनकामेश्वर मंदिर
स रज कुंड मेले का एहसास कराता है मेला
इतिहासकार डॉ.योगेश प्रवीन कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला ऐतिहासिक कार्तिक मेला आदि काल से लग रहा है। सूरज कुंड की तर्ज पर लगने वाले इस मेले में पहले जो मवेशी भी मिलते थे। राजधानी में छह सूरज कुंड बनाए गए थे जिनमे से एक डालीगंज के पास और दूसरा रुदौली के पास है। इसके साथ ही चार अन्य अब इतिहास हो गए हैं। मेले में सुबह महिलाएं ज्यादा जाती थीं। पर्दा प्रथा होने के चलते पुरुष सुबह जगे इससे पहले महिलाएं अपने जरूरी सामानों की खरीदारी कर वापस घर लौट आती थीं। मिट्टी के काले बर्तनों और सिलबट्टे और पत्थर के बने घरेलू सामान इसी मेले में मिलता था तो लोगों को पूरे साल इसका इंतजार रहता है। समय के साथ ही इसमे बदलाव होता गया और अब मेला नदी के किनारे के बजाय सड़क पर आ गया है। मेले को एक बार फिर नदी के किनारे करके इसके वजूद को बचाया जा सकता है।