संवादी के दर्शक सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे अपने अनुभव
30 नवंबर से 2 दिसंबर तक संगीत नाटक अकादमी के लॉन में अस्सी के करीब लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी और नेता लेंगे हिस्सा। बिना पास के भी प्रवेश संभव।
लखनऊ, (प्रियम वर्मा)। असीमित उत्साह और अद्भुत मनोस्मृतियों का गवाह नहीं बन सका लेकिन सतरंगी प्रवाह मुझसे होकर ही गुजरा है। विस्तृत आकार वाली इस इमारत (संगीत नाटक अकादमी) ने कई दिन आबाद और शामें गुलजार की हैं। हम सब (मुख्य हॉल के सामने लॉन) एक ही इमारत का हिस्सा हैं लेकिन खुशनसीब किस्से सिर्फ उसी मुख्य हॉल में लिखे जाते हैं। इसकी सफलता की इबारत लिखने वाले अतिथियों के सत्कार नहीं, बस गुजरते वक्त सिर्फ उनके दीदार का मौका ही मिल पाता है। चार बातें करने को मन तरस जाता है। वाहनों की सुरक्षा में ही समय बीत जाता है।
मैंने तमाम गूंजते दिन देखे हैं, कई सुबकती शामें बिताई हैं। खाली पड़ी कुर्सियां और लॉन में टूटी टहनियां सिर्फ धूप सेकने या वक्त बिताने के काम ही आ पाईं हैं। बीते दिनों खबर मिली कि विचारों के एक उत्सव के आयोजन की तैयारी है। उसका नाम संवादी है और मुझ पर संपन्न होने की जिम्मेदारी है। खुशी और चुनौती दोनों हैं कि दो बड़े आयोजन यही एक ही जगह होने हैं। सफलता से ज्यादा सार्थकता पर जोर है। देखते हैं साहित्यिक सुर रमणीय हैं या जीतता सामाजिक शोर है। बड़े दिन बाद मन मुस्कराया है। शुक्रगुजार हूं संवादी का कि वो इस बार मेरे हिस्से आया है।
ये हैं तैयार, आपका इंतजार
जब दिनों के बाद घंटों का हिसाब हो। अपने साथ दूसरों के लिए भी मन बेताब हों। तैयारी पूरी हो फिर भी तैयारी करें। हर वर्ग इसमें भागीदारी करे। आयोजन को लेकर हम ही नहीं कई और हैं बेकरार तो समझिए ऐसे साथियों का सूरत-ए-इंतजार। संवादी का हिस्से बने या बनने को तैयार कई दर्शक सोशल मीडिया पर अपने अपने तरीकों से इंतजार की कहानियां कह रहे हैं। कोई फेसबुक और ट्विटर पर लिख रहा है तो कोई गाकर सुना रहा है। वायरल होकर हम तक पहुंचा ऐसा ही संदेश आप भी पढ़िए।
लखनऊ अउर आसपास के लोगन से एक ठौ निवेदन बा..
वइसे तौ देश भरे मा कइव ठौ साहित्यिक उत्सव हुवत बाटै..लेकिन दैनिक जागरण के संवादी कै बतियै कुछ अउर बा। आपन अभिव्यक्ति कै इ उत्सव 30 नवंबर से दुई दिसंबर तक नखलऊ (लखनऊ) के संगीत नाटक अकादमी के लॉन मा आयोजित होति बाटय। सिनेमा, खेल, कला, राजनीति, साहित्य, धर्म, पत्रकारिता अउर बहुत सारे विषय कै महारथी लखनऊ मा डेरा डारय वाले हैं। सबके जियरा मा जवन विचारन अउर अभिव्यक्ति कै आगि लागि बा वा उ यह सर्द मौसम का गरम न कर दे तौ कौनो बात नाहीं। तो भाई हमार राय है कि शूक (शुक्रवार) कै मिलाय कै अगिली हफ्ता कै अंत का सबही जन यहीं के ताइ धय लेव। काहे से ये से बड़ा आनंद कहूं न पउबो। लखनऊ हमार लखनऊ। शिक्षिका डॉ. नीलम ओझा की आवाज में यह संदेश वॉट्सएप ग्रुप पर है तो अजय पांडेय की फेसबुक वॉल पर लिखे इस संदेश को कई लाइक मिल चुके हैं और काफी लोग शेयर कर चुके हैं।
सुरुचिपूर्ण आयोजन की उत्सुकता से प्रतीक्षा
आप शहर से हैं या शहर आपसे है
सिर्फ इमारतों का शहर नहीं है लखनऊ। यहां मिलने का अंदाज सबसे अलग है तो भाषा बेहद सरल और सहज। ये शहर हस्तकला के लिए जाना जाता है तो खान-पान और पहनावे से देश से लेकर विदेश तक में पहचाना जाता है। ऐसे लखनऊ से कौन नाता नहीं चाहता, संबंध नहीं है तो भी यहां की संस्कृति में रम जाता है क्योंकि यह लखनऊ आपका लखनऊ है। लखनऊ की पहचान किससे और क्यों हैं, आप शहर से हैं या शहर आपसे है। मैं तो लखनऊ और सत्र के बारे में यही कहूंगा। बाकी राजधानी से जुड़े ऐसे ही तमाम पहलुओं पर जानने और समझने खुद शामिल होइए। हमारे अनुभवों को अपने विचारों से समृद्ध करिए।
मुजफ्फर अली, फिल्म निर्देशक
मिथक और यथार्थ पर बात
‘इस्लाम के द्वंद्व’ विषय पर बात करने के लिए लखनऊ कल्बे जव्वाद और फरंगी महली साहब हिस्सा लेंगे, जिनसे बातचीत करेंगे इंकलाब के संपादक शकील शम्सी। परंपरा और मूल्यों के अलावा साहित्य में मिथक और यथार्थ को लेकर युवा पीढ़ी के मन में बहुधा सवाल अंकुरित होते हैं। इन सवालों से भी मंच पर मुठभेड़ होगी जिसमें अलग-अलग राय रखनेवाले विद्वान अपना अपना पक्ष रखेंगे।
झलकेगी अवध की संस्कृति
लखनऊ में कार्यक्रम हो और अवध की संस्कृति की झलक न दिखे ये तो संभव ही नहीं है। अवध की संस्कृति से लेकर वहां के गीत संगीत और खान-पान पर अलग-अलग सत्र में इन क्षेत्रों के दिग्गज अपने अनुभवों को साझा करेंगे। अवध के लोकगीतों और अन्य धाराओं के साथ उसके संबंध पर मशहूर गायिका मालिनी अवस्थी और विद्या शाह के साथ संवाद करेंगे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त लेखक और संगीत के अध्येता यतीन्द्र मिश्र।
दलित विमर्श की क्या होगी राह
दलित विमर्श ने पिछले तीन दशकों में लंबा रास्ता तय किया है, दलित साहित्य अब किस राह पर चलेगा, इस पर मराठी के विख्यात दलित लेखक लक्ष्मण गायकवाड़ के साथ हिंदी के दलित लेखक अजय नावरिया और प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन अपना मत रखेंगे। यहां इस बात पर भी चर्चा संभव है कि क्या दलित विमर्श भी ब्राह्मणवाद का शिकार हो गया है।