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पत्नियों से परेशान पतियों की मदद करने के लिए बनाई समिति

डॉ.इंदु सुभाष, संस्थापक,पति परिवार कल्याण समिति युवतियां तोड़ेंगी दहेज का तिलिस्म, प्रताड़ित पतियों की आवाज कर रही बुलंद’ पांच हजार से अधिक परिवार की कर चुकी हैं मदद।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 13 Oct 2018 09:45 PM (IST)Updated: Sun, 14 Oct 2018 06:30 AM (IST)
पत्नियों से परेशान पतियों की मदद करने के लिए बनाई समिति

लखनऊ (जितेंद्र उपाध्याय)। मां, बहन, सास और ननद जैसे स्वरूपों को अपने आंचल में छिपाए इन महिलाओं के दर्द को जेहन में लेकर पतियों की आवाज बुलंद करने का बीड़ा के एक महिला ने उठाया तो लोग उसके साथ जुड़ गए। दहेज के नाम पर प्रताड़ित पतियों की आवाज बुलंद कर उनके साथ खड़ी होकर परिवार को जोड़ने में लगी उस महिला का नाम डॉ.इंदु सुभाष है।

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चेहरे पर मुस्कान और दिल में समाज को दहेज प्रथा को दूर करने और बुजुर्गो की सेवा करने का जज्बा उन्हें हर दिन एक नई ऊर्जा देता है। राजधानी ही नहीं प्रदेश व देश के कई राज्यों में पतियों की आवाज को उठा चुकी हैं। उनका सफर उनके भाई के साथ दहेज को लेकर हुई घटना से हुई। बात 2005 की है। भाई की शादी हुई और फिर दोनों के बीच वैचारिक मतभेद रिश्तों की दरार को बढ़ाता रहा और एक दिन पत्‍नी ने दहेज प्रताड़ना का आरोप जड़कर उसे उस समय जेल भेजवा दिया जब वह घटना के दौरान मौके पर था ही नहीं। वह शहर के बाहर नौकरी करता था। फिर जो हुआ वह हृदय विदारक था। बेकसूर भाई को जेल की सलाखों में रहना पड़ा। जिस भाई के संग बचपन बीता उस भाई पर उठे सवाल ने अंदर से डॉ.इंदु को झकझोर दिया। दहेज रूपी इस जहर को समाज से न केवल उखाड़ फेकने की कसम खाई, बल्कि ऐसे बिना अपराध के दहेज के आरोप में प्रताड़ित पतियों के साथ खड़े रहने का संकल्प लिया।

फंसाने की साजिश है ‘मी टू’

पुरुषों की आवाज बुलंद करने वाली डॉ.इंदु सुभाष ‘मी टू’ को पुरुषों के खिलाफ साजिश बता रही हैं। उनका कहना है कि जब आपके साथ र्दुव्‍यवहार हुआ तो आपने आवाज नहीं उठाई और अब उठा रही है। पहले शर्म आ रही थी तो अब बेशर्मी कर हम पार करना अनुचित है। पांच साल की उम्र में सरोजिनी नायडू अपनी कविताओं के माध्यम से आवाज उठा सकती हैं तो आपने क्यों नहीं उठाया। ऐसे में इस अभियान का महिलाओं को भी तिरस्कार करना चाहिए।’

डॉ.इंदु सुभाष खुद के संग यूथ ब्रिगेड बनाई और उनके साथ निकल पड़ी। ब्रिगेड में अधिकतर युवतियां ही है। युवतियों के संग बुजुर्गो को सम्मान देने और उनके अंदर दहेज के लोभ को दूर करने का कार्य कर रही हैं। अब तक पांच हजार से अधिक परिवारों की लड़ाई लड़ चुकी हैं। जीवन के अंतिम पड़ाव में पहुंच चुके बुजरुगों का गोल्डेल क्लब हो या गाइड व दादा दादी क्लब हो। ऐसे क्लबों के माध्यम से वह युवाओं को बुजुर्गो के पास न केवल भेजती हैं बल्कि जीवन के अंतिम पड़ाव के अनुभवों को साझा करती हैं। जानकीपुरम, राजाजीपुरम, जानकीपुरम विस्तार सहित राजधानी के वृद्ध आश्रमों में ऐसे क्लबों का संचालन हो रहा है। उनका मानना है कि युवा व युवतियों पर दहेज के तिलिस्म को तोड़ने का जज्बा है और वही दहेज के अभिशाप से समाज को दूर कर सकती हैं।


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