RMLNLU ने मनवाया लोहा, उत्तर प्रदेश को इस साल दिए 150 न्यायाधीश Lucknow News
कानून की बेमिसाल पढ़ाई में निजी संस्थानों को पीछे छोड़ा। डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले करीब 150 छात्र बने जज।
लखनऊ [पुलक त्रिपाठी] । जैसा नाम, डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (RMLNLU) ने वैसा ही काम करके दिखाया है। सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं पर लगने वाली लापरवाही की तोहमत को पीछे छोड़ते न केवल हुनर का लोहा मनवाया, बल्कि कायम कर दी मिसाल। इस साल पीसीएस-जे के नतीजों में अकेले प्रदेश को 150 न्यायाधीश चुनकर दिए हैं। जबकि कुल सफल छात्रों की संख्या ही 610 है। अनुपात देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है- इच्छा शक्ति हो तो निजी क्षेत्र के सुपर-30 ही नहीं, हमारे सरकारी संस्थान भी सफलता की बेमिसाल कहानियां गढ़ सकते हैं।
राजधानी के आशियाना स्थिति डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय देश के कुल 11 विधि विवि में एक है। 2006 में स्थापित हुआ। प्रखर समाजवादी डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम इसको मिला। संसाधनों के लिए पूरी तरह सरकार पर निर्भर है। बाकी विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों में आने वाली दिक्कतों के लिहाज से यहां के हालात को भी समझ सकते हैं। यही कारण है, प्रदेश की सबसे बड़ी न्यायिक परीक्षा में सफलता को लेकर इसकी भागीदारी सामान्य हरगिज नहीं कही जा सकती।
एनआइआरएफ रैंकिंग में भी मारी बाजी
मानव संसाधन विकास मंत्रलय की ओर से शैक्षिक संस्थानों की एनआइआरएफ रैंकिंग में भी आरएमएलयू आगे रहा है। वर्ष 2018 में देशभर के विधि संस्थानों में आरएमएलयू ने आठवां स्थान हासिल करने में सफलता हासिल की है।
क्लैट के बाद ही दाखिले
आरएमएलयू समेत देश भर के सभी विधि विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (क्लैट) क्वालीफाई करना अनिवार्य है। क्लैट क्वालीफाई करने के बाद टॉप विधि विश्वविद्यालय के तहत आरएमएलयू में दाखिला होता है।
तीन साल में 350 सफलताएं
आरएमएलयू की सफलता इस बात को और भी पुख्ता करती है कि संसाधनों की कमी का ठीकरा फोडऩे से कुछ नहीं होगा। इतिहास तो इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प से ही बनते रहे हैं, आगे भी बनेंगे। आरएमएलयू की तरह बाकी शैक्षिक संस्थानों की योग्य फैकल्टी ठान लें तो क्वालिटी एजूकेशन का रोना भी खत्म हो जाएगा। अपने इसी हुनर के दम पर आरएमएलयू तीन साल के भीतर करीब 350 जज प्रदेश को दे चुका है। पिछले दो साल में संस्थान की सफलता का ग्राफ करीब 60 और 65 रहा।