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शर्मनाक : एक और जच्चा-बच्चा की मौत

जानलेवा बना जिला महिला चिकित्सालय मृत शिशु को प्रसूता के गर्भ से 16 घण्टे बाद निकाला ललितपुर ब्य

By Edited By: Published: Wed, 19 Nov 2014 01:27 AM (IST)Updated: Wed, 19 Nov 2014 01:27 AM (IST)

जानलेवा बना जिला महिला चिकित्सालय

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मृत शिशु को प्रसूता के गर्भ से 16 घण्टे बाद निकाला

ललितपुर ब्यूरो :जिला महिला चिकित्सालय में कुप्रशासन का खामियाजा मरीजों को लगातार भुगतना पड़ रहा है। स्टाफ की चिर-परिचित लापरवाही के चलते मंगलवार को एक और जच्चा-बच्चा की मौत हो गयी। अब फिर पहले जैसी लीपापोती की तैयारी शुरू हो गयी है।

इससे पूर्व हाल ही में एक और जच्चा-बच्चा की मौत हो गयी थी। उसमें मुख्य चिकित्सा अधीक्षक द्वारा 'मैटरनल-डैथ ऑडिट' स्वयं अपने स्तर पर करवाकर मामले को रफादफा कर दिया था। आडिट टीम में वे चिकित्सक भी शामिल किये गये थे, जिनपर आरोप था। इस बार भी कुछ ऐसा ही करने की तैयारी चल रही है।

जिला चिकित्सालय में फैली अव्यवस्थाओं का खामियाजा मरीजों को अपनी जान से हाथ धोकर चुकाना पड़ रहा है। कुछ दिन पूर्व एक के बाद एक सड़क पर प्रसव होने के दो मामले प्रकाश में आये। इसके पूर्व ही सहरिया जाति की एक महिला के प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हुयी थी, जिसमें चिकित्सकीय लापरवाही के आरोप लगे थे। पर महिला में खून की कमी बताकर लीपापोती कर ली गयी थी। इस सवाल का जबाव खोजने की कोशिश नहीं की गयी कि ग्रामीण स्तर पर इतनी जाँच और पोषण की सुविधायें होने के बावजूद भी महिला में खून की ऐसी कमी क्यों हुयी, और उसे दूर करने के क्या उपाय किये गये थे। मंगलवार को फिर ऐसे ही एक मामले ने सब को चौका दिया है। स्पष्ट है कि लापरवाही को प्रश्रय देने की परम्परा के चलते ऐसी घटनायें रुकना सम्भव नहीं लगता।

ग्राम धौजरी निवासिनी लाड़ो पत्‍‌नी गोपी सहरिया को बीते रोज शाम 4 बजे जिला महिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। वह प्रसव पीड़ा से ग्रस्त थी। चिकित्सक ने अपनी जाँच में अंकित किया है कि उस समय उसके गर्भ में मौजूद बच्चा मर चुका था। लेकिन चिकित्सकों ने उस गरीब प्रसूता के गर्भ से तत्काल मृत नवजात को निकालने का कोई प्रयास नहीं किया। जिससे संक्रमण फैल गया। मंगलवार सुबह 8.30 बजे जब मृत नवजात का सामान्य प्रसव कराया गया, तब बच्चे के साथ माँ लाड़ो की भी मौत हो गयी। चिकित्सकों ने यह भी बताया कि मृतका के पास कोई जाँच रिपोर्ट नहीं थी। उसके अन्दर भी खून की कमी थी। लेकिन महिला चिकित्सालय प्रशासन के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि मृत बच्चे को सोमवार शाम को ही ऑपरेशन करके तत्काल क्यों नही निकाला गया? क्यों गरीब प्रसूता को उसके हाल पर छोड़ दिया। यदि मरीज को रक्त की आवश्यकता थी, तो ब्लड बैंक से रक्त क्यों नहीं मँगाया गया? जबकि जननी सुरक्षा योजना में यह स्पष्ट आदेश है कि प्रसव के दौरान खून की कमी होने पर ब्लड बैंक से निशुल्क रक्त प्रदान किया जाये। अगर, प्रसूता के साथ रक्तदाता नहीं है, तो भी उसे जितनी आवश्यकता हो, उतना ब्लड उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिये थी। परन्तु न ही ब्लड बैंक में माँग पत्र भेजा गया और न ही प्रसूता के परिजनों को इस सम्बन्ध में कोई जानकारी दी गयी। बल्कि उन्होंने यह दर्शाने का प्रयास किया कि प्रसूता के साथ कोई भी पढ़ा-लिखा व्यक्ति नहीं था, जिसे जानकारी दी जा सके। कुल मिलाकर प्रसूता को बचाने का महिला चिकित्सालय में कोई प्रयास नहीं किया गया। हाँ यह जरूर है कि छुटकारा पाने के लिये उसे हायर सेंटर भेजने की चर्चा रही। एक मामले में तो पहले ही उपजिलाधिकारी सदर पूनम निगम जाँच कर चुकी है। अब देखना यह है कि प्रशासन द्वारा महिला चिकित्सालय में व्यवस्थायें सुधारने के लिए कितना प्रयास किया जाता है। या फिर आगे भी मरीजों को अव्यवस्था खामियाजा भुगतना होगा।

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इनका कहना है-

मामला संज्ञान में है, इसकी सूचना मुख्य चिकित्साधिकारी को दे दी गयी है। मैटरनल-डैथ ऑडिट के लिए स्थानीय टीम गठित की जा रही है।

-डॉ.हरेन्द्र चौहान

मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, जिला महिला चिकित्सालय, ललितपुर।


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