भुखमरी की कगार पर है शहीद का परिवार
गोलागोकर्णनाथ (लखीमपुर खीरी), आजादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले अमर शहीद राजनारायण मिश्र का परिवार आज भुखमरी की कगार पर है। आजादी के 65 वर्ष बाद देश के लिए अपनी कुर्बानी देने वालों के प्रति मौजूदा सरकारों की यह लापरवाही अपनी हदें पार करती प्रतीत हो रही है। आलम ये है कि स्वतंत्रता सेनानी राजनारायण मिश्र के पुत्र को खुद अपने पिता के नाम से बने अस्पताल से ही चिकित्सा सुविधा नहीं मिल रही है। पोते को मृतक आश्रित की नौकरी के लिए बारह साल से भटकना पड़ रहा है। आर्थिक स्थितियां इतनी खराब हो चुकी है कि दो जून की रोटी भी जुटा पाना मुश्किल हो चुका है।
देश की आजादी के लिए अपना जीवन बलिदान करने वाले, हंसकर फांसी के फंदे को चूमने वाले अमर शहीद राजनरायण का परिवार अब पेट की खातिर दर-दर भटकने को मजबूर हैं। बीते 65 वर्षो में आजाद भारत की सरकारों में किसी ने इस शहीद के परिवार की स्थितियों पर ध्यान नहीं दिया। परिणाम स्वरूप आजादी की लड़ाई के इस शहीद का परिवार अब भुखमरी की कगार पर है। इस अमर शहीद के इकलौते पुत्र बनारसी लाल मिश्र हालातों से लड़ते हुए पूरी तरह टूट चुके हैं। बनारसी लाल मिश्र बताते हैं कि पिता को फांसी होने के वक्त वे सिर्फ छह माह के थे, शहीद राजनरायण मिश्र की पत्नी व बनारसी लाल मिश्र की मां विद्या देवी का स्वर्गवास सत्रह वर्ष पहले गोलागोकर्णनाथ में एक किराए के मकान में रहते हुए हुआ था, क्योंकि पैतृक निवास भीखमपुर की जमीन ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली थी। मां को मजदूरी करके उनका पालन-पोषण करना पड़ा था। बनारसी लाल मिश्र ने बताया कि काफी प्रयासों के बाद तत्कालीन राजस्व मंत्री रामनरेश शुक्ला की मौजूदगी में सब्जी मंडी के पास कुछ जमीन मंजूर की गई थी, लेकिन वहां पर अब एक दफ्तर है। बनारसी लाल मिश्र बताते हैं कि उनकी पत्नी सावित्री देवी ग्राम बिलहरी के प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका के पद पर थी। उनका स्वर्गवास 1999 में हो गया। पुत्र असीम जिसकी उम्र अब 38 वर्ष तक पहुंच चुकी है। मां की जगह पर मृतक आश्रित की नौकरी के लिए असीम 1999 से भटक रहा है। अभी तक नौकरी नहीं मिली है। बनारसी लाल की एक ग्रेजुएट पुत्री भी है, जिसका अभी तक विवाह नहीं हो सका है। आंखों से लाचार हो चुके बनारसी लाल मिश्र कहते हैं कि देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने के बावजूद परिवार को क्या मिला? कहने को उनके पिता राज नारायण मिश्र के नाम पर रेलवे स्टेशन, सिकंद्राबाद कस्बे में एक इंटर कॉलेज व जिला मुख्यालय पर एक नेत्र चिकित्सालय भी बनवाया गया है, लेकिन अपने ही पिता के नाम पर बने इस अस्पताल में कई बार वे इलाज कराने आए, पर उनका इलाज महज इसलिए नहीं किया गया कि उनके पास पैसे नहीं थे।
हर साल स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को शॉल ओढ़ाकर अपने कार्यो की इति श्री करने वाले प्रशासन ने भी एक बार भी इस परिवार की सुध लेने की जरूरत नहीं समझी। इस बारे में जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश से बात करने पर उन्होंने कहा कि इस बात की जानकारी उन्हें बिल्कुल नहीं थी, लेकिन यदि इस शहीद के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब है तो यह दुखद है। वे शीघ्र ही इस मामले को अपने स्तर से दिखवाएंगे तथा जो सुविधाएं हो सकती हैं, वे जरूर उपलब्ध कराएंगे।
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