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मेहनत से लिखी रामधनी ने नई इबारत

डूडा की ऋचा तिवारी ने रामधनी की बेटी राखी ¨सह को महिलाओं के समूह बनाने के लिए जोड़ा है। राखी को भी डूडा की ओर से पारिश्रमिक दिया रहा है। ............ ऐसे बनता है समूह स्वयं सहायता समूह योजना में पहले 10 से 12 लोग अपना एक समूह बनाते हैं और आपस में चंदा जमा करके कुछ धन एकत्र करते हैं। फिर ये लोग उस धन से आपस में कर्ज देते और वसूलते हैं। डूडा तीन माह की गतिविधियों, मासिक बचत व बैठकों का सत्यापन करता है। सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद डूडा फंड देता है। फिर समूह उस धन से आपस में कर्ज बांटता है। बैंक को किस्त अदा करने की जिम्मेदारी समूह की होती है। - राजेश पांडेय, परियोजना अधिकारी

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 10:47 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 10:47 PM (IST)
मेहनत से लिखी रामधनी ने नई इबारत
मेहनत से लिखी रामधनी ने नई इबारत

राकेश मिश्र, लखीमपुर:

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कुछ कर गुजरने का सपना हो तो विपरीत परिस्थितियां भी अनुकूल हो जाती है। कुछ ऐसा ही लखीमपुर के मुहल्ला रामनगर में रहने वाली रामधनी ¨सह के साथ हुआ। परिवार के भरण पोषण पर जब संकट आया तो उन्होंने घर की दहलीज लांघकर खुद स्वावलंबी बनने की ठान ली। रामधनी ने जिला नगरीय विकास अभिकरण (डूडा) से संपर्क साधा। डूडा में समूह बनाने का कार्य कर रही ऋचा तिवारी ने उन्हें समूह बनाने की सलाह दी। रामधनी ने मुहल्ले की दर्जन भर महिलाओं को जोड़कर एक समूह बनाया। डूडा की मदद से उन्होंने निर्भया ई-रिक्शा खरीदा। कुछ दिन उन्होंने खुद रिक्शा चलाया। हर माह औसतन 12 से 14 हजार की आमदनी हो रही है। अब रामधनी के सपनों को पंख लगने के साथ गृहस्थी की गाड़ी भी सरपट दौड़ने लगी है। रामधनी बताती हैं कि उनके पति राम मूर्ति ¨सह प्राइवेट नौकरी करते थे। अचानक उन्हें फालिज मार गई। एक बेटा और चार बेटियों की परवरिश उनके कन्धों पर आ पड़ी। घर की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही थीं। पति बीमार चल रहे थे। उन्होंने समूह के जरिये रिक्शा लेकर चलाने की बात कही। पति ने भी इस काम के लिए अपनी सहमति दे दी। पति की रजामन्दी के बाद रामधनी ने मुहल्ले में संचालित पांच महिलाओं को जोड़ा।

बेटी को भी मिला काम

डूडा की ऋचा तिवारी ने रामधनी की बेटी राखी ¨सह को महिलाओं के समूह बनाने के लिए जोड़ा है। राखी को भी डूडा की ओर से पारिश्रमिक दिया रहा है।

ऐसे बनता है समूह

स्वयं सहायता समूह योजना में पहले 10 से 12 लोग अपना एक समूह बनाते हैं और आपस में चंदा जमा करके कुछ धन एकत्र करते हैं। फिर ये लोग उस धन से आपस में कर्ज देते और वसूलते हैं। डूडा तीन माह की गतिविधियों, मासिक बचत व बैठकों का सत्यापन करता है। सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद डूडा फंड देता है। फिर समूह उस धन से आपस में कर्ज बांटता है। बैंक को किस्त अदा करने की जिम्मेदारी समूह की होती है।

राजेश पांडेय, परियोजना अधिकारी


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