बूढ़ों को जंगल की टेरेटरी से खदेड़ रहे युवा बाघ
लखीमपुर: उम्रदराजों पर रौब गांठने की फितरत सिर्फ इंसानों के अंदर ही नहीं होती है, वन्
लखीमपुर: उम्रदराजों पर रौब गांठने की फितरत सिर्फ इंसानों के अंदर ही नहीं होती है, वन्यजीव भी इस प्रवृत्ति से ग्रसित हैं। टेरेटरी पर कब्जा करने की चाह में युवा बाघ अपने ही बुजुर्गों को जंगल से खदेड़ रहे हैं। तराई में इसके कई उदाहरण सामने हैं। जानकारों का मानना है कि युवा बाघों के हाथों जंगल से बेदखल होने वाले कमजोर बाघ ही आसान शिकार के चक्कर में इंसानों को टारगेट कर रहे हैं।
बफरजोन के मैलानी रेंज के छेदीपुर गांव में वर्ष 2017 में जंगल से निकलकर खेतों को अपना बसेरा बनाने वाले कमजोर बाघ ने दो महीने के अंदर पांच लोगों को अपना निवाला बना लिया। बाघ के आतंक से दहशतजदा ग्रामीणों की भीड़ ने आंदोलन शुरू करते हुए हाईवे जाम किया तो बाघ को ट्रैंकुलाइज किया गया। पता चला कि बूढ़ा बाघ शिकार करने में अक्षम है और भूख मिटाने के लिए आसान शिकार की ताक में रहता है। इसी पलिया में करीब एक साल पहले शारीरिक रूप से कमजोर एक बाघिन को ट्रैंकुलाइज कर लखनऊ चिड़ियाघर भेजा गया। भूख से बेहाल यह बाघिन भी जंगल से भागकर गन्ने के खेतों में आसरा लिए हुए थी। वर्ष 2012 में महेशपुर रेंज में दो तेंदुओं का आपसी संघर्ष भी वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा था, जिसमें एक उम्रदराज तेंदुए को युवा तेंदुए के हाथों अपनी जान गंवानी पड़ी थी। दुधवा पार्क के अंदर गैंडा प्रजाति के पितामह कहे जाने वाले बांके को आपसी प्रभुत्व के संघर्ष में दूसरे गैंडे ने मार डाला था। यह घटनाएं बताने को काफी हैं कि इंसानों की तरह ही वन्यजीवों के अंदर भी वर्चस्व की जंग होती रहती है और कमजोर बाघ या गैंडा को तगड़े प्रतिद्वंदी से हार मानकर अपना इलाका छोड़ना पड़ता है।
जिम्मेदार की सुनिए
बाघ की टेरेटरी फिक्स होती है। इसी टेरेटरी पर कब्जा करने के लिए ताकतवर बाघ कमजोर बाघों को उनके इलाके से भगा देते हैं। इंसानों की बस्तियों की तरह ही कई बार जंगल में बाघों के बीच भी टेरेटरी या मादा बाघ को लेकर द्वंद होता है, आखिर में कमजोर बाघ जंगल छोड़कर बाहर आता है और आसान शिकार की ताक में रहता है।
डॉ. अनिल पटेल, डीडी बफरजोन