जहर देकर मारे जा रहे बाघ
संवादसूत्र लखीमपुर सरकारी सिस्टम में भ्रष्टाचार से पर्दा उठाने के लिए दिखाई गई तेजी और उसके बाद जांच रिपोर्टों पर पर्दा डालने की कोशिश के मामले खीरी जिले में बढ़ते जा रहे हैं। एनआरएलएम की जांच रिपोर्ट प्रधानमंत्री आवास आवंटन में धोखाधड़ी में सेक्रेटरी पर कार्रवाई बीएसए की गड़बड़ियों की जांच में हीलाहवाली जलनिगम में टेंडर प्रक्रिया के बंद होने और कोटेशन के जरिए काम कराने जैसे गंभीर मामले फाइलों में कैद हो गए हैं।
लखीमपुर : तराई के जंगल में लगातार हो रही बाघों की मौत का सच सामने आया है। अक्सर पानी में बहते हुए उनके शव देखकर डूबकर मरने की आशंका जो आशंका जताई जाती है, वह सरासर गलत है। इन बाघों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताती है कि हर बार शिकारी उन्हें जहर देते हैं। बेचैनी के बाद वे पानी की तलाश में नदी-नहर की तरफ भागते हैं। अधिकांश मामलों में वहीं उसकी सांसें थम जाती हैं और पानी में बह जाते हैं।
जन्मजात तैराक होते हैं बाघ
एक्सपर्ट भी सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर कैसे एक हष्ट-पुष्ट बाघ बिना किसी चोट के मौत के मुंह में समा जाता है? उसपर भी डूबकर मरना चौंकाता है। वो इसलिए क्योंकि बाघों के अंदर नदियों और नहरों को तैरकर पार करने की क्षमता जन्मजात होती है। दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में रायल बंगाल टाइगर की प्रजाति है, जो तैराकी में माहिर होते हैं।
नहरों में मिले बाघ के शव
2008- खीरी ब्रांच नहर में बांकेगंज के पास बाघ के शव को ग्रामीणों ने देखा
2012-परसपुर के पास सुतिया नाले में बाघ का शव वनकर्मियों को कांबिग में मिला
2012-पीलीभीत के दलौल में टूटे पुल के निकट मिला बाघ का शव
2014-फरधान के पास खीरी ब्रांच नहर में बाघ का शव तेज धार में बहता पाया गया
2015 अप्रैल में पीलीभीत के पूरनपुर में नहर में मिला बाघ का शव
2017 जुलाई-हरदोई ब्रांच नहर में एक बाघिन का शव उतराता मिला
2018 मार्च-शारदा सागर डैम में मिला बाघ का शव
2019-खीरी जिले में फरधान के पास हष्ट-पुष्ट बाघ का शव मिला
2019 मार्च- माधोटांडा के डांग गांव के पास हरदोई ब्रांच में तेंदुए का शव बरामद हुआ
2019, 14 सितंबर- हरदोई ब्रांच नहर में कई दिन पुराना बाघिन का शव मिला
क्या कहते है विशेषज्ञ
विश्व प्रकृति निधि के प्रदेश संयोजक मुदित गुप्ता कहते हैं कि अगर बाघ को जहर दे दिया जाए तो उसके शरीर में भीषण गर्मी बढ़ जाती है। कई बार वह पानी में कूद जाता है। ऐसे मामलों में तीन-चार माह में विस्तृत रिपोर्ट आती है, उसमें जहर की पुष्टि होती है। जबकि उससे पहले जांच के नाम पर वन अधिकारी महीनों सिर्फ भाग-दौड़ करते हैं। नाकामी छिपाने के लिए सच पर पर्दा डालते हैं। अंत में बाघ की मौत एक रहस्य बन जाती है।