साल के जंगल बचाएंगे, सागौन नहीं लगाएंगे
वन विभाग अगले 10 वर्षों के लिए तैयार करेगी वर्किंग प्लान। तराई में मुख्यत पाए जाने वाले साल के जंगलों बचाने के लिए वर्किंग प्लान में काफी बदलाव किया जा रहा है।
लखीमपुर : पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण के लिहाज से वर्ष 2020 में बन रहा वर्किंग प्लान अगले 10 वर्षों में बेहद फायदेमंद साबित होने वाला है। तराई में मुख्यत: पाए जाने वाले साल के जंगलों बचाने के लिए वर्किंग प्लान में काफी बदलाव किया जा रहा है। जिसके मुताबिक, अब साल के जंगल में सागौन प्रजाति का रोपण नहीं किया जाएगा। जहां पर सागौन का जंगल है, वहीं पर इस प्रजाति के पौधों को रोपित किया जाएगा।
अधिकारियों के मुताबिक, सागौन विदेशी प्रजाति है। वर्ष 2010 से लेकर वर्ष 2020 तक के वर्किंग प्लान में तराई में साल के जंगलों के बीच सागौन के पौधों का रोपण किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि सागौन ने अपने नीचे किसी अन्य प्रजाति के पौधों को उगने दिया नहीं दिया। इस वजह से जंगल में झाड़ियां लगभग गायब हो गईं। वन्यजीवों के संरक्षण के लिहाज से जंगल में झाड़ियां बेहद उपयोगी मानी जाती हैं। साल के जंगलों को संरक्षित करने के उद्देश्य से वन विभाग अगले एक दशक तराई में आसानी से उगने वाली स्थानीय प्रजातियों जैसे अर्जुन, जामुन, गुटेल, आंवला आदि प्रजातियों को महत्व देगा। खीरी जिले के साउथ डिवीजन के महेशपुर रेंज में सागौन के जंगल विकसित किए गए हैं। जबकि मोहम्मदी और गोला में साल के जंगल पाए जाते हैं। ..आबादी में न आए बाघ-तेंदुआ इस बार वर्किंग प्लान में सबसे ज्यादा जलाशयों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। जंगलों में ये जलाशय अगले 10 सालों में इस तरह विकसित किए जाएंगे, जिससे बाघ-तेंदुआ सहित अन्य वन्यजीवों को जंगल में पानी की कमी न हो और वे आबादी में न पहुंच सकें। जिम्मेदार की सुनिए
एसडीओ रविशंकर शुक्ला कहते हैं कि वर्ष 2010 से 2020 तक वर्किंग प्लान का कार्य हो चुका है। अब अगले 10 वर्षों के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। इसी आधार पर जंगल और वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में कार्य किया जाएगा। वर्किंग प्लान में हर बिदु पर फोकस किया जा रहा है।