मानसून की आमद होते ही नदियां दिखाने लगीं तेवर
कोसो दूर बहने वाली नदियां कटान के कारण कई गांवों के करीब पहुंचीं। तराई के लोगों में बाढ़ की आशंका को लेकर चिता। प्रशासन को योजनाओं का खाका तैयार करने में लगा है।
लखीमपुर: मानसून की आमद होते ही क्षेत्र से गुजरने वाली पहाड़ी नदियों ने आंखे दिखाना शुरू कर दिया है। बादलों की आवाजाही तथा बढ़ते नदियों के जलस्तर से ही तराई के लोगों की धड़कनें बढ़ने लगी हैं और वह बाढ़ के पानी से होने वाली तबाही की आशंका को याद कर लोगों के माथे चिता की लकीरें भी उभरना शुरू हो गई हैं। उधर प्रशासन को बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए करोड़ों की धनराशि जुटाने के अलावा बचाव की बड़ी-बड़ी योजनाओं का खाका तैयार करने में लगा है। गत वर्षों की तरह कोई चूक न हो सोशल मीडिया से लेकर गांव-गांव से संपर्क नंबर एकत्र कर हर सूचना नजर रखने पर जोर दिया है।
शारदा, सुहेली, सरयू, जौराहा, कर्णाली, मुहाना सहित आधा दर्जन प्रमुख नदियां निघासन तहसील के क्षेत्रफल से गुजरती है जो कि प्रति वर्ष अपने पानी के तेज प्रवाह प्रभाव से क्षेत्र का भूगोल बदलने का भरकस प्रयास भी करती है। जिसकी जद में फस खेतिहर जमीने सहित बड़ी तादात में आशियाने भी बह जाते है। घरों से लेकर गावों तक पानी भर जाने से जान बचाकर अपने गंतव्य स्थान से पलायन कर सड़कों के किनारे रहने विवश होना भी पड़ता है। उधर नदियां धीरे-धीरे कर आबादी की ओर बढ़ती ही जाती है। कोसो दूर बहने वाली नदियां कटान के बलबूते कई गांवों को अपने आगोश में लेने के लिए आबादी के करीब तक पहुंच गई है। तबाही का इतिहास लिखने वाली नदियों के कटान के जद में फंसे गांवों की जिदगी उजड़ने और बसने के चक्कर में बर्बाद होती जा रही है। बीते वर्षों की कल्पना कर ग्रामीण अपनी बदनसीबी को मानसून की पहली बारिश होते ही कोसने लगा है। क्या कहते हैं जिम्मेदार
तहसीलदार डॉ. धर्मेंद्र पांडेय ने बताया कि क्षेत्र का अधिकांश क्षेत्रफल विभिन्न बड़ी नदियों से घिरा है जिससे बड़े पैमाने पर आबादी सहित मैदानी क्षेत्र प्रभावित होता है। इसलिए बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए हरसंभव प्रयास कर पर्याप्त नावों व बाढ़ चौकियां बनाई जाती हैं, हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है।