कचरे से मुक्ति दिलाने के लिए जनमानस का भी सहयोग जरूरी
शहरी क्षेत्र से हर रोज करीब 57 मीट्रिक टन कचरा निकाला जाता है। इसमें करीब 40 मीट्रिक टन कचरा वह है जो घरों से निकलता है। रिसाइक्लिंग दिला सकता है कचरे से मुक्ति।
लखीमपुर : शहरी क्षेत्र से हर रोज करीब 57 मीट्रिक टन कचरा निकाला जाता है। इसमें करीब 40 मीट्रिक टन कचरा वह है जो घरों से निकलता है। इसमें खाने-पीने का कचरा शामिल है, फलों के छिलके शामिल हैं। इसके अलावा कागज व अन्य चीजें हैं। इन सभी के लिए सुबह के वक्त नगर पालिका परिषद की ओर से सफाई कर्मी ठेलियों के माध्यम से शहर के डलाव घरों तक कचरा साफ करते हैं पर यह कचरा सड़ने से आस पड़ोस में दुर्गंध भी पैदा होती है। कचरा निस्तारण के लिए आठ माह पहले बनाए गए डंपिग ग्राउंड में इसका निस्तारण किया जाता है।
नगर पालिका क्षेत्र से घरों निजी व सरकारी कार्यालयों का जो कचरा निकाला जाता है। उसमें गीला और सूखा दोनों तरह का कचरा होता है। पूरे नगर पालिका क्षेत्र को 30 भागों में बांटा गया है। जहां से लगभग 300 सफाई कर्मी हर रोज काम करके या कचरा निकालते हैं। इसके लिए नगर पालिका के पास कचरा ढोने वाले 30 छोटा हाथी है। चार बड़े ट्रक में चार ही लोडर डंपर भी है।
रिसाइक्लिंग से दूर हो सकती है समस्या रिसाइक्लिग के द्वारा कचरे से मुक्ति पाई जा सकती है लेकिन, अभी यह कार्य शुरू करने में समय लग सकता है। यह कहना है नगर पालिका परिषद के एसएफआई जितेंद्र सिंह का। स्वच्छता संबंधी कार्य देखने वाले जितेंद्र सिंह बताते हैं कि कुल 57 मीट्रिक टन कचरे में से 40 मीट्रिक टन कचरा घरेलू होता है। शहर में जो खाने पीने का कचरा है जैसे बची हुई रोटियों दाल इत्यादि भी सड़ने से रोकी जा सकती है। क्योंकि ये कई बार यहां कचरे में मिलकर उसे खराब कर देती है।सड़े हुए आलू सब्जी वगैरह फेंकने से भी कचरा बढ़ जाता है।इसके लिए बेहतर हो कि शहर वासी खाने-पीने की सामग्री अलग डस्टबिन में इकट्ठा करके गायों को खिला दें या पास पड़ोस में किसी गौशाला में जा कर दे दे। जिससे खाने-पीने की सामग्री कचरे में न शामिल हो न इसके सामने से प्रदूषण हो सड़कों के किनारे जो खाने-पीने के होटल्स हैं उनके यहां से भी खासकर हाईवे पर से भी कई बार रोटियां सब्जी इत्यादि खराब होने के बाद फेंक दी जाती है जो आसपास के वातावरण को दुर्गंधित करती हैं। इसके लिए जरूरी है कि शहरवासी खुद भी इसमें सहयोग करें।