कस्तूरबा गांधी विद्यालय ने दिलाई मरूआ पश्चिम को पहचान
पलिया कलां (लखीमपुर): किसी इलाके में अगर एक विद्यालय की स्थापना होती है तो उसका मूल काम तो
पलिया कलां (लखीमपुर): किसी इलाके में अगर एक विद्यालय की स्थापना होती है तो उसका मूल काम तो बच्चों को ही शिक्षित करना रहता है, लेकिन वास्तव में ये विद्यालय उस इलाके में बा¨शदों को जागरूक करने, उन्हें नई दिशा देने का भी काम करते हैं। इसी परिभाषा को सार्थक कर रहा है कि मरूआ पश्चिम स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय। यह विद्यालय इस गांव की पहचान बन गया है। यहां पर गांव की भी तमाम बालिकाएं शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। इतना ही नहीं समय-समय पर विद्यालय स्टाफ द्वारा शासन की मंशानुरूप जागरूकता कार्यक्रम जैसे नुक्कड़ नाटक आदि भी किए जाते हैं।
यह है खूबी
ग्राम पंचायत मरूआ पश्चिम यूं तो ज्यादा बड़ी नहीं है, लेकिन इस छोटी पंचायत में भी बा¨शदों के लिए मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। यहां की अधिकांश सड़कें पक्की हैं, प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर के विद्यालय भी हैं। पलिया से इस गांव की दूरी भी करीब पांच किमी है ऐसे में लोगों को जरूरी चीजों के लिए ज्यादा लंबा सफर तय नहीं करना पड़ता है। अधिकांश लोग खेती से जुड़े हैं, यहां हर साल बाढ़ फसलों को नुकसान पहुंचाती हैं हालांकि इस बार यहां बाढ नहीं आई। बाढ़ से बचाव के लिए यहां पर रपटा पुल का निर्माण किया गया था जो बड़ी राहत प्रदान करता है।
आधारभूत ढांचा
गांव में प्राथमिक विद्यालय छेदनीपुरवा, प्राथमिक विद्यालय सरखना पूरब, उच्च प्राथमिक विद्यालय मरूआ पश्चिम हैं। बच्चों की प्राथमिक शिक्षा के इंतजाम बढि़या हैं। यह गांव 2012-13 में डॉ. राम मनोहर लोहिया समग्र ग्राम के रूप में भी चयनित हुआ था, जिस वजह से यहां बढिया काम हुआ है। यहां पर सरखना पूरब, सरखना पश्चिम, बोझवा, छेनीपुरवा, इटैया, रानीपुरवा, शम्भूरवा मजरे हैं। हर मजरे में पक्की सड़क मिलेगी। यहां पेयजल के लिए 30 हैंडपंप है। हैंडपंप से दूषित पानी निकलता है इसके समाधान के तौर पर यहां ओवरहेड टैंक बना है और टंकी कनेक्शन अधिकांश लोगों के पास है। यहां की आबादी 5621 है, लेकिन अब यहां पर करीब नौ हजार लोग निवासी करते हैं। मतदाता संख्या 41सौ है।
यह हो तो बने बात
गांव में एक अदद उप स्वास्थ्य केंद्र नहीं बन सका है। हालांकि पड़ोसी ग्राम पंचायत का उप स्वास्थ्य केंद्र यहां से पास में ही है, लेकिन फिर भी पंचायत के बा¨शदों के लिए अलग उप स्वास्थ्य केंद्र की जरूरत महसूस हो रही है। वहीं दूषित पानी की समस्या के लिए एक टंकी है सडक के पार रहने वालों के लिए एक टंकी की आवश्यकता है। प्रधान ने बताया कि उप स्वास्थ्य केंद्र के लिए प्रस्ताव भेजा गया है।
उपलब्धि
गांव में स्वच्छ भारत मिशन के तहत 100 शौचालयों का निर्माण करवाया गया है। गांव ओडीएफ हो चुका है, हालांकि तकनीकी तौर पर अभी ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि सत्यापन होना शेष है। इस ग्राम पंचायत में स्थित कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय यहां की पहचान है। मरूआ पश्चिम सरकारी स्कूल को मॉडल विद्यालय का दर्जा प्राप्त है, जहां पर आने के बाद हर अधिकारी उसकी तारीफ करता है।
²ष्टिकोण
मौजूदा प्रधान नागेश कुमार का कहना है कि गांव में बेहतर विकास कार्य करवाने का प्रयास रहता है। 100 शौचालय निर्माण करवाने के साथ इसे ओडीएफ की श्रेणी में लाया गया है। 20 गरीबों को आवास आवंटित किए गए। इंटर लॉ¨कग सड़कों का जाल यहां बिछाया गया है। हर जरूरतमंद की मदद होती है, सरकारी योजनाओं का लाभ हर पात्र को दिया जाता है। शिक्षा के लिए यहां पर्याप्त विद्यालय हैं।
पूर्व प्रधान और वर्तमान जिला पंचायत सदस्य सोमवती ने बताया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में यहां आवास बनवाए, हर मजरे तक सीसी रोड पहुंचाई। विकास का सिलसिला आज भी जारी है।
गांव की पहचान कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय की वार्डेन ललित कुमारी ने बताया कि गांव की तमाम छात्राएं उनके यहां अध्ययनरत हैं। गांव के लोगों को जागरूक करने, साफ सफाई के प्रति सचेत करने के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित होते हैं। यहां के लोग बच्चियों की पढ़ाई को लेकर फिक्रमंद हैं।
इन पर नाज है
गांव के पहले प्रधान रघुनाथ प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। 1952 में वे पहली बार यहां के प्रधान बने थे और उसके बाद लगातार 40 वर्षों तक वे ही प्रधान रहे। वे नौ बार यहां के प्रधान बने थे। उन्होंने ही अपने समय में यहां पंचायत भवन का निर्माण कराया था।
गांव में रहने वाले मैकूलाल राणा शिक्षक हैं। वे पलिया के बलदेव वैदिक इंटर कॉलेज में पढ़ाते थे। वे खुद बल्देव वैदिक कॉलेज में ही पढ़े थे। उन्हें ललित कला एकेडमी दिल्ली से भी बुलावा आया था। इसके बाद बलदेव वैदिक इंटर कॉलेज में शिक्षक के तौर पर अपनी नई पारी शुरू की।
डॉ. महेश कुमार राणा इसी गांव के हैं और पलिया में क्लीनिक चलाते हैं। उन पर भी गांव के लोगों को नाज है।
गांव के योगेंद्र कुमार राणा को परिवार की स्थिति और पिताजी के खराब स्वास्थ्य ने वापस गांव आने पर विवश कर दिया। दवा के बड़े व्यवसाई हैं। बलदेव वैदिक से इंटर करने के पश्चात उन्होंने लखीमपुर से स्नातक और गोला से एमए करने के पश्चात अपना दवा का व्यवसाय शुरू किया जो काफी अच्छा चल रहा है।