चुनाव में बकाया गन्ना भुगतान का मामला भी धीरे-धीरे पकड़ रहा है जोर
पलियाकलां (लखीमपुर) विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद सभी पार्टियां अपने प्रत्याशियों की घोषणा
पलियाकलां (लखीमपुर): विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद सभी पार्टियां अपने प्रत्याशियों की घोषणा करने में लगी हैं। उधर मतदाता भी धीरे-धीरे मुखर होने लगे हैं। जो लोग सामने कुछ नहीं कह पाते हैं वे इंटरनेट मीडिया का सहारा ले रहे हैं। यही कारण है कि रोज कोई न कोई वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें पक्ष व विपक्ष के नेताओं को खरी खोटी सुनाई जा रही हैं। इसमें तो बहुत से वीडियो राजनीतिक दलों की आईटी सेल के होते हैं लेकिन, कुछ मतदाताओं के भी होते हैं।
पलिया विधानसभा सीट पर बाढ़ व स्थानीयता के साथ बकाया गन्ना भुगतान भी एक अहम मुद्दा है। हालांकि यह समस्या पूरे जिले में है बल्कि यह कहें कि जहां-जहां बजाज की चीनी मिले हैं वहां पर यह समस्या बनी हुई है। जिला प्रशासन व शासन स्तर से इस मामले में कुछ खास नहीं किया जा सका है। किसानों को जो भी थोड़ा बहुत भुगतान मिला है वह उनके आंदोलन के चलते मिला है। उसमें किसी और का कोई योगदान नहीं है। मामला उच्चस्तर पर भी न सुलझते देख यहां के विधायक रोमी साहनी ने मुक्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से वीडियो के माध्यम से गुहार लगाई थी। जिसके बाद कुछ तेजी आई थी और प्रशासन ने कड़ा कदम उठाया था और चीनी मिल के अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, लेकिन उसके बाद भी भुगतान सिफर ही रहा था। चुनाव में अब यह मुद्दा उभर सकता है और विपक्षी इसे सरकार की नाकामी के तौर पर पेश कर सकते हैं।
किसानों का एक बड़ा समूह इंटरनेट मीडिया पर किसानों के हालात दिखाते हुए वीडियो अपलोड कर रहा है और माहौल को दूसरी दिशा देने का प्रयास कर रहा है। हालांकि सरकार इस मामले में अंतिम क्षणों में कुछ सक्रिय हुई है और समझा जा रहा है कि मतदान से पहले किसानों का काफी हद तक भुगतान मिल जाएगा। लेकिन वास्तविकता क्या है यह कोई नहीं जान पा रहा है। दरअसल बजाज की पावर यूनिट का करीब 1500 करोड़ से अधिक रुपया सरकार पर बकाया है। इससे कुछ थोड़ा अधिक किसानों का चीनी मिल पर बाकी है। बजाज ग्रुप के कर्ताधर्ता चाहते हैं कि सरकार उनका बकाया वापस कर दे तो वह किसानों का भुगतान कर दें। जिससे दोनों की समस्या हल हो जाएगी। सरकार के स्तर पर इस पर मंथन चल रहा है पर इस मामले में कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं है। न तो प्रशासनिक अधिकारी व और न ही चीनी मिल के अधिकारी इस मामले में कुछ बोलने को तैयार हैं। जाहिर सी बात है कि भुगतान का मामला अभी पाइपलाइन में है इसलिए कोई कुछ कहना नहीं चाहता है कि बाद में किसान उसका गला पकड़ लें। इसीलिए जनप्रतिनिधि भी इस मामले में मुंह खोलने को तैयार नहीं हैं।