Move to Jagran APP

UP Politics: 72 साल बाद पहली बार EVM मे नहीं दिखेगा चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’, बेहद दिलचस्प रहा इस लोकसभा सीट का इतिहास

Lok Sabha Election 2024 ये गठबंधन की ही बलिहारी कही जाए तो बेहतर है कि अब तक हुए 18 आम चुनाव में जिस कांग्रेस पार्टी ने नौ बार जीत हसिल की वही पार्टी इस बार ईवीएम के चुनाव निशान वाले खाने में नजर नहीं आएगी। राजनीति के इतिहास में यह चुनाव हमेशा इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इस आम चुनाव में चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’ गायब रहेगा

By punesh verma Edited By: Abhishek Pandey Published: Tue, 26 Mar 2024 03:31 PM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2024 03:31 PM (IST)
72 साल बाद पहली बार EVM मे नहीं दिखेगा चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’

धर्मेश शुक्ला, लखीमपुर खीरी। ये गठबंधन की ही बलिहारी कही जाए तो बेहतर है कि अब तक हुए 18 आम चुनाव में जिस कांग्रेस पार्टी ने नौ बार जीत हसिल की वही पार्टी इस बार ईवीएम के चुनाव निशान वाले खाने में नजर नहीं आएगी।

loksabha election banner

राजनीति के इतिहास में यह चुनाव हमेशा इसलिए भी याद किया जाएगा क्योंकि इस आम चुनाव में चुनाव चिह्न ‘हाथ का पंजा’ गायब रहेगा, ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि सपा और कांग्रेस गठबंधन के कारण खीरी जिले के दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी की झोली में चली गई है और कांग्रेस का चुनाव चिह्न यहां नज़र नहीं आएगा।

सपा के खाते में गई सीट

आम चुनाव में वोट कम मिलें या ज्यादा लेकिन खीरी सीट पर कांग्रेस ने हर आम चुनाव लड़ा। जिस पार्टी ने देश में 50 साल से ज्यादा राज किया जिले से भी उसके सांसद या तो जीतते रहे या फिर दूसरे नंबर पर रहते रहे लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।

अगर जिले में कांग्रेस के प्रदर्शन पर नजर डालें तो तो पता चलता है कि जिले के इतिहास में कांग्रेस पार्टी के रामेश्वर प्रसाद नेवटिया 1952 में पहले सांसद चुने गए। उसके बाद 1957 में कुंवर खुशवक्त राय 1962 में बाल गोविंद वर्मा 1967 में भी बाल गोविंद वर्मा और 1972 में भी कांग्रेस के बाल गोविंद वर्मा ने जीत हासिल की।

पच्चीस साल बाद जनता पार्टी भी वजूद में आई। ‘कंधे पर हल धरे किसान’ चुनाव निशान को थामकर जनता पार्टी का सांसद भी जिले के आम चुनाव में 1977 को चुना गया। जब सूरथ बहादुर शाह खीरी संसदीय क्षेत्र के पहले गैर कांग्रेसी सांसद निर्वाचित हुए।

लगातार तीन बाद उषा वर्मा ने दर्ज की जीत

पांच साल बाद ही फिर से कांग्रेस ने वापसी की और लगातार तीन बार 1980, 1980, और 1985, 1989 तक लगातार नौ साल लगातार कांग्रेस की उषा वर्मा सांसद चुनकर दिल्ली जाती रहीं। 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी ने खीरी जिले में अपना दायरा बढ़ाया और डा.जी एल कनौजिया 1991 और 1996 में खिलता हुआ कमल का फूल चुनाव निशान पर खीरी जिले के सांसद चुने गए।

यह वही दौर था जब कांग्रेस और भाजपा दो ही दल का आमतौर पर लोकसभा चुनाव में मुकाबला आमने-सामने का हुआ करता था। लंबे समय तक जिस कांग्रेस का खीरी संसदीय क्षेत्र को गढ़ माना जाता था उसी कांग्रेस का जनादेश अब खिसक ने लगा था, कांग्रेस एक दो नहीं पूरे दो दशक तक लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कोशिशें करती रही।

बीस साल बाद इस सीट पर हाथ का पंजा एक बार फिर से चमका और 15 साल तक लगातार फर्राटा भरती रही सपा की साइिकल को बाय-बाय करते हुए हाथ का पंजा चुनाव जीता और कांग्रेस के जफर अली नकवी खीरी के सासंद बने।

बस उसके बाद कांग्रेस लड़ी तो हर चुनाव लेकिन उसे विजयश्री नहीं मिल सकी। अब इस बार तो वह गठबंधन का धर्म निभाने को कांग्रेस मैदान में ही नहीं है, हां... मैदान के बाहर से वह सपा की समर्थक जरूर कही जा रही है।

इसे भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव से पहले सपा-बसपा को बड़ा झटका, 35 से अधिक नेताओं ने थामा भाजपा का दामन


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.