इनका तो वजूद ही मिट गया नक्शे से
लखीमपुर : बाढ़ क कटान से प्रभावित इलाकों में बीते एक दशक में नदियों ने कई गांवों का नक्
लखीमपुर : बाढ़ क कटान से प्रभावित इलाकों में बीते एक दशक में नदियों ने कई गांवों का नक्शे से वजूद ही मिटा दिया है। जहां कभी लोगों के हंसते-खेलते परिवार घरों में रहते थे और खेतों में हरी-भरी फसलें लहलहाती थीं, वहां अब कभी नदी की उफनाती लहरें तो कभी रेत के मैदान नजर आते हैं। फूलबेहड़ व ईसानगर क्षेत्र में भी बहुत से ये पीड़ा झेल रहे हैं।
फूलबेहडड़ संवादसूत्र के मुताबिक यहां वर्षों पहले नदी कटान व बाढ़ में अपना गांव व घर गंवाने वाले पीड़ितों को अभी तक छत नसीब नहीं हुई है। क्षेत्र में हर साल शारदा नदी तबाही मचाती है। एक दशक में नदी ने कई गांवों का वजूद मिटा दिया है। तमाम लोग अपने परिवार को लेकर सुरक्षित स्थानों पर पलायन कर गए। बीते साल नदी ने बेड़हा सुतिया व बैजनाथ पुरवा गांव का नामों निशान मिटा दिया। मोतीलाल, राजबहादुर, असलम आदि लोगों का कहना है कि वह लोग बेड़हा सुतिया गांव में कभी हंसी-खुशी रहते थे। गांव तक रोड थी, आवागमन में कोई परेशानी नहीं होती थी। सब लोग एक साथ रहकर हंसी-खुशी से सारे त्योहार मिलकर मनाते थे और बच्चे भी पहले साथ-साथ में खेला करते थे। जब से नदी ने गांव को काट दिया है, सब लोग अलग-अलग बस गए हैं। बहुत ही दुख होता है जब कोई त्योहार आता है। या कोई शादी होती है तो सभी लोगों की बहुत याद आती है। सर्वा शिवपुरी के नईम, सलील, जान हुसैन, कलीम, अब्दुल रहमान का कहना है कि उनका गांव तीन साल पहले कट गया था। तब से वह लोग सड़क के किनारे गूम के पास और कुछ लोग बांध पर रहे हैं। ईद, बकरीद में भी वह सब लोग एक साथ नहीं मिल पाते हैं। त्योहारों में न मिलने पर बहुत ही दुख होता है। शासन-प्रशासन ने अभी तक इन लोगों के लिए कोई जमीन मुहैया नहीं कराई, जिससे ये सब लोग साथ-साथ रह सकें।ईसानगर संवादसूत्र के मुताबिक जनप्रतिनिधियों व सरकारी मशीनरी की उदासीनता के चलते एक दशक से कई गांव राजस्व मानचित्र से गायब हो चुके हैं। इन गांवों के बारे में जब तक प्रशासन चेता सब कुछ खत्म हो चुका था। इन गांवों के लोग ईसानगर-कटौली मार्ग पर बंजारों जैसी ¨जदगी बिता रहे हैं। दो साल पहले नदी में समाए भदईपुरवा, मोचनापुर, झबरा, हटवा, बंजरिया, दुबेपुरवा, कबिरहा, राजापुर, हुलासपुरवा सहित करीब एक दर्जन गांवों के लोगों को सड़कों पर ¨जदगी बितानी पड़ रही है। पीड़ितों को सरकार की से अभी तक कुछ नहीं मिल सका है। भदईपुरवा निवासी बलमोहन वर्मा की 25 बीघा जमीन काटने के बाद एक एकड़ में बने उनके पक्के दो मंजिला मकान को निगल चुकी है घाघरा नदी। वह नदी की उफनती लहरों को सूनी आंखों से देखते हुए कहते हैं कि अब मात्र 12 बीघा जमीन बची है, अगर कटान जारी रहा तो बचने की उम्मीद कम ही है। अपने रिश्तेदार के मकान में ग्राम अख्तियारपुर में श्रीराम वर्मा शरण लिये हुए हैं। भदईपुरवा जमींदोज हो जाने के बाद गांव के ही निवासी मुंशीलाल गुप्ता का भी दर्द कुछ कम नहीं है। एक कच्चे और एक पक्के मकान के मालिक थे। गांव में छोटी सी दुकान चलाकर गुजर बसर कर लेते थे, लेकिन नदी की तबाही ने इन्हें भी बेघर कर दिया था। भदईपुरवा के 70 वर्षीय अब्दुल मजीद आंखों पर मोटे शीशे का चश्मा लगाये अपनी डबडबाई आंखों से कहते हैं कि इस साल जैसे बचाव पिछले साल कर लिए गये होते तो कुछ रोकथाम होती, अब तो ऊपर वाले का ही सहारा है। मुन्ना अंसारी का कच्चा मकान गांव के बीच में था, लेकिन नदी ने अब अपने बीच में कर लिया है।