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यहां तो तार-तार हैं बाढ़ कटान के सारे इंतजाम

लखीमपुर एक बार फिर से चुनाव आ चुका है और दरवाजे-दरवाजे नेता मतदाताओं के आगे नतमस्तक होकर उनसे उनका समर्थन मांगने को आने लगे हैं। देश में पांच साल कैसा काम हुआ वोटर ये तो देख रहे हैं लेकिन इस बात का मलाल कहीं न कहीं उनके जहन में सुई चुभो रहा है कि उनके इलाके की सबसे बड़ी समस्या से निजात दिलाने में सरकार कोई अहम भूमिका इसलिए अदा नहीं कर पाई क्योंकि उनके इलाकाई रहनुमा सक्रिय नहीं थे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 10:40 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 10:40 PM (IST)
यहां तो तार-तार हैं बाढ़ कटान के सारे इंतजाम

लखीमपुर: एक बार फिर से चुनाव आ चुका है और दरवाजे-दरवाजे नेता मतदाताओं के आगे नतमस्तक होकर उनसे उनका समर्थन मांगने को आने लगे हैं। देश में पांच साल कैसा काम हुआ वोटर ये तो देख रहे हैं लेकिन इस बात का मलाल कहीं न कहीं उनके जहन में सुई चुभो रहा है कि उनके इलाके की सबसे बड़ी समस्या से निजात दिलाने में सरकार कोई अहम भूमिका इसलिए अदा नहीं कर पाई क्योंकि उनके इलाकाई रहनुमा सक्रिय नहीं थे। बात हो रही है खीरी लोकसभा क्षेत्र के सबसे बड़े मुददे बाढ़ की। जी हां, वही बाढ़ जो इस पूरे लोकसभा क्षेत्र के दो तहाई हिस्से में अपने पांव पसार चुकी है..वही बाढ़ जो हर साल गांव के गांव ही अपनी विनाशकारी लहरों के आगोश में समा लेती है। यहां के पलिया, निघासन और श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र में तो बाढ़ का कहर जारी ही था अब गोला विधानसभा क्षेत्र भी पिछले तीन साल से शारदा नदी की बाढ़ की भीषण चपेट में है। इस इलाके के सत्तर से ज्यादा गांव साल के चार से पांच महीने शारदा की प्रचंड लहरों के आगे इस कदर बेबस होता है कि घर से निकलना दूभर हो जाता है..बच्चे स्कूल नहीं जा पाते और पचास से ज्यादा प्राइमरी स्कूल महीनों तक बंद रहते हैं। वह भड़के और कहने लगे कि सरकारी इंतजाम का हाल ये है कि उनके द्वारा बनवाए गए रपटापुल हर साल कम से कम तीन बलि लेते हैं..उनकी हालत खस्ता है। ये तटबंध कब गिर जाएंगे या बह जाएंगे इसका कोई ठिकाना नहीं। तीन से चार हजार रुपये जो सम्पन्न किसान हैं वह तो चौकीदार को दे रहे हैं लेकिन गरीब किसान क्या करे सिवा खु्द ही अपने खेतों को जानवरों से बचाने के अलावा उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा है। गोला विधानसभा के बाढ़ प्रभावित इलाके से किसानों का दर्द उकेरती धर्मेश शुक्ला की रिपोर्ट।

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नहीं मिला फसलों का मुआवजा

विकास खंड बिजुआ के ग्राम पंचायत पूजागांव अषाढ़ी के मजरा जौहरा में हरसाल बाढ़ ओर शारदा नदी के कटान से ग्रामीण प्रभावित हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ग्रीन कार्ड से हर साल पैसा कटता है लेकिन, देवीय आपदा की स्थिति में इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल पाता है। इस योजना में संशोधन की आवश्यकता है।

निर्मल सिंह, जौहरा

बाढ़ से हर साल नुकसान उठा रहे किसान

पिछले तीन वर्षों से बंधे के अंदर बसे पांच ग्राम पंचायतों की करीब 50 हजार आबादी बाढ़ और कटान से प्रभावित है। शारदा ने अपना रास्ता बदल दिया है। इससे किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बंधे को अधिक ऊंचा बनाने से समस्या बढ़ी है। रपटा पुल बाढ़ के दौरान जानलेवा साबित हो रहे हैं।

नूरुल ह़क - जौहरा

हरसाल फसल बाढ़ में हो रही नष्ट

बाढ़ से प्रभावित होने के कारण यहां के लोगों को गेहूं की फसल ही मिल पाती है। धान की फसल बाढ़ में पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। बंधा से यहां के किसानों को फायदा नहीं नुकसान हुआ है। बिजुआ से शारदानगर तक शारदा नदी अपना प्रभाव डाल रही है। यदि इसके रास्ते को बदल दिया जाए तो किसानों को काफी राहत मिल जाएगी।

कुंदन सिंह, टहोलिया फार्म

बेसहारा पशु भी सबसे बड़ी समस्या

विकास खंड बिजुआ क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या बेसहारा पशु हैं। इनके लिए सरकार ने भले ही अस्थाई पशु सेवा केंद्र बनाए हों आज भी स्थिति यह है कि किसान घर में सोने के बजाय खेतों में रहना अधिक पसंद करते हैं। रात में बेसहारा पशुओं के झुंड के झुंड चर जाते हैं। इनसे अभी तक निजात नहीं मिल सकी है।

बख्तावर सिंह - जौहरा

ओलावृष्टि का नहीं मिला मुआवजा

तीन वर्ष पूर्व हुई बारिश ओर आलावृष्टि से किसानों की बड़ी पैमाने पर गेहूं की फसल नष्ट हुई थी। फसल और जमीन गंवाने के बाद भी शासन स्तर से न ही इन्हें कृषि योग्य भूमि उपलब्ध कराई जा सकी और न ही इन्हें फसल के हुए नुकसान का कोई मुआवजा दिया जा सका।

राज सिंह, पूर्व प्रधान मेंहदी

तीन महीने स्कूलों में भी लग जाते हैं ताले

जौहरा गांव जाने वाले मार्ग पर दो रपटा बनाए गए हैं। सरकार ने यह रपटा लोगों की सुविधा के लिए बनावाए थे। लेकिन यह बारिश के दिनों में लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। इसके बावजूद शासन स्तर स्तर से कोई कदम नहीं उठाए जा सके। शारदा नदी के कटान से अब तक 200 एकड़ से अधिक जमीन कट चुकी है।

करनैल सिंह, जौहरा।


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