चुनावी चौपाल : शिक्षाविदों ने नेताओं को दिखाया आइना
कक्षा छह से लेकर 12 तक बेटियों को विज्ञान वर्ग में पढने के लिए राजकीय कन्या इंटर कालेज के अलावा दूसरा कोई सरकारी स्कूल नहीं है।
लखीमपुरखीरी, जेएनएन। लोकसभा का चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में खीरी लोकसभा क्षेत्र के सबसे बड़े मुददे शिक्षा की लचर व्यवस्था पर दैनिक जागरण की चौपाल शहर के कंपनी बाग में लगी। बात शुरू करने से पहले ये बताना होगा कि लगभग 18 लाख वोटरों वाली खीरी लोकसभा के मुख्यालय लखीमपुर में ही जब शिक्षा की व्यवस्था लचर है तो बाकी जिले का अंदाजा लगाना आसान है।
कक्षा छह से लेकर 12 तक बेटियों को विज्ञान वर्ग में पढने के लिए राजकीय कन्या इंटर कालेज के अलावा दूसरा कोई सरकारी स्कूल नहीं है। यहां भी न तो लैब है, न टीचर पूरे हैं और न ही अन्य कोई संसाधन। अगर बारहवीं पास हो गए तो बीएससी में पढ़ने को केवल एक विकल्प है वाइडी डिग्री कालेज। यहां भी सीमित सीटें ही हैं जिनमें प्रवेश पाना दूर की कौड़ी है। इस इकलौते डिग्री कालेज की खासियत भी जानना जरूरी है कि यहां मुठठी भर टीचर हजारों संस्थागत छात्रों को पढ़ते हैं। कई संकायों में एक भी प्रवक्ता नहीं।
इतना ही नहीं एमएसी के लिए इस डिग्री कालेज में केवल बीस सीटें हैं वह भी सेल्फ फाइनेंस। शिक्षा की इस हीनता की कहानी लखीमपुर में यहीं पर खत्म नहीं होती। पलिया में बने राजकीय महाविद्यालय में केवल तीन टीचर हैं और छात्र हजारों। अब बात तकनीकी शिक्षण संस्थाओं की करें तो उनकी सांसें भी फूलती नजर आ रहीं हैं। यहां लखीमपुर के पालीटेक्निक कालेज में 280 सीटें हैं। यहां इंजीनियरिंग ट्रेड में 60 की जगह अब 45 ही रह गई। आइटीआई कालेज छह सरकारी व तीन प्राइवेट हैं लेकिन यहां भी सीटों की खासी कमी है। यहां एक और बात अहम है कि लगभग हर नेता के अपने स्कूल हैं जहां शिक्षा जगमगा रही है और ज्ञान ताख पर रखा है।
आखिर ऐसा क्यों है? क्यों माननीय और सरकारें लखीमपुर के युवाओं व नौनिहालों की इस बड़ी जरूरत को मुददा नहीं मानती? तब भी जब चुनाव सर पर है पहली बार वोट डालने वाले युवकों की संख्या 13 हजार से ज्यादा है और 19 साल से 34 साल के बीच के वोटरों की संख्या कई लाख है। ये आंकड़े भी नेताओं को आइना नहीं दिखाते वजह क्या है? इस पर दैनिक जागरण की चौपाल में शिक्षाविदों ने अपनी राय रखी।
चौपाल की वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें: https://youtu.be/q-SV98oRJU4
माननीय खुद को शिक्षा व्यवस्था से करें दूर
वाइडी कालेज के प्रवक्ता डॉ. जेएन सिंह ने कहा, मेरा स्पष्ट मत है कि माननीय राजनीति करेंदेश और प्रदेश का भला करें और अपने क्षेत्र का विकास करें पर भगवान के लिए शिक्षा से खुद को दूर कर लें। हमारे जिले में ६८ सेल्फ फाइनेंस के कालेज हैं। किसके हैं? यहां क्या पढ़ाई होती है? इसे कौन देखेगा? कोई सीमेंट बेंच रहा, कोई कपड़ा बेंच रहा, कोई किताबें बेंच रहा है लेकिन पढ़ाने का ज्ञान उनको है या नहीं ये कोई नहीं देख रहा। शिक्षा को शिक्षकों के पास ही रहने दें और नेता जी इससे अपना नाता तोड़ें तभी संसाधन मिलेंगे और लखीमपुर में हांफ-हांफ कर दम तोड़ रहे शिक्षा के संसाधनों को आक्सीजन मिलेगी।
गुणवत्तापरक शिक्षा और इंतजाम पर जागें माननीय
आर्यकन्या डिग्री कालेज की प्राचार्या डॉ. सुरचना त्रिवेदी ने कहा,हमारा मामना है कि कालेज कोई खोले लेकिन ये भी तय करे कि उसमें पढ़ाया क्या जा रहा है? पढ़ा कौन रहा है? क्या सारी व्यवस्थाएं पूरी हैं। जिला मुख्यालय के लिए सरकारी शैक्षिक व्यवस्थाओं के दम तोड़ने को सरकार अकेली ही नहीं यहां के नेता भी बराबर के जिम्मेदार हैं। वह उसमें भी व्यापार तलाश रहे हैं जो कोढ़ में खाज का काम कर रहा है। यहां डिग्री दी नहीं बेंची जा रही है। ये इनको सोचना होगा और वोटरों को भी जिम्मेदारी से अपना वोट देना होगा।
कर्नाटक, तमिलनाडु ही क्यों यूपी या खीरी क्यों नहीं
वाइडी कालेज के पूर्व प्रवक्ता डॉ. एससी मिश्रा ने कहा,मेरा स्प्ष्ट मत है कि खीरी जिले के बच्चे भी तमिलनाडु और कर्नाटक की बराबरी कर सकते हैं पर उनको साधन मिलना चाहिए। उनको उनकी प्रतिभा को परखने वाले लोग व स्कूल कालेज मिलने चाहिए और नेताओं को शिक्षा की इस बदहाली पर गंभीरता से सोचना चाहिए। अगर जिला मुख्यालय पर ये हाल है तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है? कहीं न कहीं जनमानस भी क्योंकि अपने ही हाथों और अपने ही वोट से सांसद या विधायक बनने वालों से हमें भी इस व्यवस्था पर सवाल पूछना चाहिए। इस तस्वीर को बदलना होगा वरना आने वाली पीढ़ी को हम क्या जवाब देंगे।
सरकारी कालेजों को निधि से पैसा दें माननीय
गांधी इंटर कालेज पूर्व प्राचार्य नारायण सिंह चौहान ने कहा, मुझे लगता है कि नेताओं को अपने स्कूल कालेजों की जगह सरकारी कालेजों को बदहाली व बदइंतजामी से उबारने के लिए अपनी-अपनी निधि से पैसा देना चाहिए। अगर सरकार नहीं देख पा रही तो सरकार के अंग भी तो हैं इनको इस ओर सोचना चाहिए। सरकारी कालेजों के गिरताऊ भवनों को संकट से उबारने के लिए ये आगे क्यों नहीं आते? नए सांसद से हमारा पहला सवाल और मांग भी यही होनी चाहिए। साथ ही शिक्षा पर प्रयोग बंद होना चाहिए।
शिक्षा के दायित्व से मुंह मोड़ रही सरकारें
वाइडी कालेज के प्राचार्य डॉ. डीएन मालपानी ने कहा, पिछले तीन दशक से ऐसा देखने में आ रहा है कि सरकार चाहे किसी भी दल की हो वह शिक्षा के प्रति अपने दायित्वों से मुंह मोड़ रही है। अशासकीय सहायता प्राप्त कालेजों को खत्म किया जा रहा है और राजनैतिक दबाव में स्ववित्त्पोषित कालेजों की भरमार हो रही है। जिसमें गुणवत्ता कहीं भी नजर नहीं आ रही और सरकारी कालेजों की हालत गंभीर बीमारी जैसी हो चली है। नेताओं को दलगत राजनीति से उठकर इस अहम समस्या जो उनके एजेंडे में कोई मुददा नहीं है पर सोचना ही होगा।