बाघों की आबादी बढ़ी तो छिना तेंदुओं का आशियाना
घों से जान बचाने के लिए जो तेंदुए घने जंगलों में न रहकर जंगल के बाहरी किनारों बागों और झाड़ियों में रहने लगे थे उनके लिए अब वहां रहना मुश्किल हो गया है क्योंकि आबादी बढ़ने पर अब बाघों के लिए जंगल छोटे पड़ने लगे हैं इसके चलते बाघ जंगल के उन बाहरी किनारों तक अपना बसेरा बना रहे हैं जो कभी तेंदुओं का प्राकृतवास हुआ करते थे।
लखीमपुर: बाघों के संरक्षण और संवर्धन के लिए हो रहे प्रयासों से बाघों की संख्या तो बढ़ी है लेकिन, तेंदुओं पर इसका विपरीत असर पड़ा है। बाघ, तेंदुओं के प्राकृतवास को हथियाते जा रहे हैं। बाघों से जान बचाने के लिए जो तेंदुए घने जंगलों में न रहकर जंगल के बाहरी किनारों, बागों और झाड़ियों में रहने लगे थे, उनके लिए अब वहां रहना मुश्किल हो गया है क्योंकि, आबादी बढ़ने पर अब बाघों के लिए जंगल छोटे पड़ने लगे हैं, इसके चलते बाघ जंगल के उन बाहरी किनारों तक अपना बसेरा बना रहे हैं जो कभी तेंदुओं का प्राकृतवास हुआ करते थे। धीरे-धीरे बाघ जंगल के किनारों से निकल कर गन्ने के खेतों तक में अपनी टेरीटरी बनाने लगे हैं। ऐसे में तेंदुओं के लिए प्राकृतवास की समस्या पैदा हो रही है। बेघर होने के बाद अब वे आबादी की ओर रुख करने लगे हैं। आए दिन तेंदुओं का आबादी में घुस आना और उनके पालतू पशुओं पर हमला करना आम बात हो गई है। दुधवा पार्क, कर्तनिया घाट वन्यजीव विहार और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में मानव वन्यजीव संघर्ष की श्रृंखला में तेंदुए भी एक कड़ी बन चुके हैं।
300 से अधिक तेंदुआ होने का अनुमान
दुधवा टाइगर रिजर्व और दक्षिण खीरी वन प्रभाग को मिला कर 300 से अधिक तेंदुए हैं। सबसे ज्यादा कतर्नियाघाट में हैं, जहां इंसानों से लगातार टकराव बढ़ रहा है। यहां से निकल कर तेंदुए धौरहरा तहसील इलाके तक आ जाते हैं। वर्ष 2008 में तेंदुए ने धौरहरा क्षेत्र में महिलाओं और बच्चों को घायल कर दिया था, इससे गुस्साए ग्रामीणों ने तेंदुए को घेर कर लाठी डंडों से पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। बाद में एक झोपड़ी में बंद कर जला दिया।
आसान है तेंदुए का शिकार करना
बाघों की अपेक्षा तेंदुओं का शिकार ज्यादा आसान है। तेंदुआ, बाघ की अपेक्षा कम ताकतवर होता है, जंगल के बाहर तेंदुए आसानी से मिल जाते हैं। बाघों की तरह तेंदुओं का शिकार भी खाल, हड्डियों, दांत और नाखून के लिए होता है।
बेहतर प्रबंधन से बढ़ रहे बाघ
बाघों के संरक्षण में सभी वन्यजीवों और वनस्पतियों का संरक्षण निहित है। जरूरी है कि खाद्य श्रृंखला मजबूत हो, इसके लिए ग्रासलैंड, वेटलैंड, वुडलैंड सभी को बेहतर बनाने से बाघों की संख्या के साथ साथ तेंदुओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है।
जिम्मेदार की सुनिए
यह गंभीर है कि टेरेटरी के संघर्ष में तेंदुए जंगल से बाहर होते जा रहे हैं। इसके लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है। इस पर मंथन भी किया जा रहा है कि तेंदुओं का संरक्षण किया जा सके।
डॉ. अनिल कुमार पटेल, उपनिदेशक दुधवा पार्क