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तराई में मानव-हाथी संघर्ष की दस्तक

व-हाथी संघर्ष की दस्तक भी सुनाई देने लगी है। कुछ वर्षों में ऐसे हालात बने हैं जिससे यह संघर्ष और अधिक बढ़ने की आशंका है क्योंकि नेपाल से हाथियों के दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में आने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 10:25 PM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 10:25 PM (IST)
तराई में मानव-हाथी संघर्ष की दस्तक
तराई में मानव-हाथी संघर्ष की दस्तक

लखीमपुर : तराई में मानव-बाघ टकराव के बाद अब मानव-हाथी संघर्ष ने दस्तक दे दी है। यह संघर्ष बढ़ने की संभावना है क्योंकि नेपाल से हाथियों के दुधवा टाइगर रिजर्व और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में आने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है।

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दुधवा नेशनल पार्क, बहराइच के कतर्नियाघाट और पीलीभीत टाइगर रिजर्व में नेपाल से हाथी पांच कारीडोर से आते हैं। इन दिनों नेपाल के शुक्लाफांटा से निकलकर पीलीभीत होते हुए जंगली हाथियों के दो झुंडों ने भीरा जंगल, किशनपुर सेंक्च्युरी और बफरजोन की मैलानी रेंज में डेरा डाल दिया है। वैसे तो नेपाल से हाथियों का यहा ठिकाना बनाना खुशी की बात है क्योंकि, यह समृद्ध हो रही जैव विविधता और स्वस्थ पारिस्थितिकी का परिचायक है। लेकिन जंगल के आसपास फसलें और झोपड़ियों के रौंदने से दहशत फैल गई है। ऐसे में मानव और हाथियों में टकराव होना तय है।

दो किसानों की मौत, सात हुए थे जख्मी :

जंगल के चारों तरफ लगा गन्ना हाथियों को काफी पसंद है। इसलिए हाथी खेतों में आते हैं। दिसंबर 2018 में लूधौरी के तकिया जंगल से निकले हाथियों के हमले में सात किसान जख्मी हो गए थे। इसी माह तकिया गांव में घास काट रहे 60 वर्षीय किसान को हाथियों ने मार डाला था। ग्राम सूरतनगर निवासी एक युवक की हाथियों के हमले में मौत हो गई थी।

छह साल में आठ हाथियों की मौत

बीते छह साल के अंदर आठ हाथियों की मौत करंट लगने से हो चुकी है। अब तक हाथियों की मौत के मामले में जहर देने और बिजली के करंट की बात सामने आई है।

नेपाल के हाथियों का आना नई बात नहीं है लेकिन, कुछ वर्षो से ये हाथी दुधवा में ही रह जा रहे हैं। जंगल से बाहर निकलने पर ग्रामीणों का नुकसान होता है। अब बेहद सतर्क रहने की जरूरत है।

संजय पाठक, फील्ड डायरेक्टर, दुधवा नेशनल पार्क


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