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तराई के जंगल से सरकार को 'ऑक्सीजन'

-लाखों रुपये में नीलाम हो रही जंगल की घास जड़ी-बूटी और शहद-मोम संवादसूत्र लखीमपुर वन्यजीवों के लिए बेहद सुरक्षित ठिकाना माने जाने वाले दुधवा नेशनल पार्क के बफरजोन के जंगल बेहद फायदेमंद साबित हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 11:21 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 11:21 PM (IST)
तराई के जंगल से सरकार को 'ऑक्सीजन'

लखीमपुर : वन्यजीवों के लिए बेहद सुरक्षित ठिकाना माना जाने वाला दुधवा नेशनल पार्क का बफरजोन का जंगल सरकार को राजस्व का 'ऑक्सीजन' दे रहा है। जंगल से सिर्फ पर्यावरण ही नहीं शुद्ध हो रहा, बल्कि घास-फूस, जड़ी-बूटी, शहद-मोम और बेंत लाखों रुपये में नीलाम हो रही है। खास बात है कि साल-दर-साल नीलामी से वन विभाग के राजस्व में बढ़ोतरी हो रही है। इसलिए अधिकारी भी जंगल को लेकर संजीदा हैं।

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दुधवा पार्क को बाघों का स्वर्ग कहा जाता है, क्योंकि यहां सैकड़ों प्रजातियों के शाकाहारी तथा मांसाहारी वन्यजीव प्रवास करते हैं। आबादी से मिश्रित बफरजोन का एरिया राजस्व के लिहाज से महत्वपूर्ण है। घास-फूस, खस, मछली और नौका-फेरी घाटों से मिलने वाले राजस्व का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। बफरजोन में 2016-17 में 72.19 लाख रुपये राजस्व मिला। 2017-18 में राजस्व 1.14 करोड़ तथा 2018-19 में 1.21 करोड़ रुपये पहुंच गया। यानी पिछले तीन वर्षों में जंगल से कमाई भी बढ़ी है। इस वर्ष भी जंगल के गैर प्रकोष्ठ की 26 लाटों की नीलामी से वन विभाग को 72 लाख रुपये की आय हो चुकी है, जबकि अभी 14 लाटों की नीलामी शेष है। अनुमान है कि इस बार नीलामी से करीब डेढ़ करोड़ रुपये राजस्व मिलेगा।

जंगल से ईको सिस्टम दुरुस्त हो रहा है। साथ ही राजस्व में हर साल बढ़ोतरी सुखद संकेत है। यही कारण है कि जंगल बचाने पर सरकार का सबसे ज्यादा जोर है।

डॉ. अनिल कुमार पटेल, उपनिदेशक, बफरजोन।


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