Move to Jagran APP

बिगड़े हालात के चलते बेकाबू हो रहे हैं गजराज

संवादसूत्र पलियाकलां (लखीमपुर) सिमटते जंगल और भोजन की कमी के कारण बेकाबू हो रहे गजराज से लोगों में दहशत बढ़ रही है। फसलों को लगातार नुकसान पहुंचाने के कारण थारू वाशिदे उसे पसंद नहीं करते हैं। पूरे देश में हाथियों को लेकर संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत का तराई का यह क्षेत्र व इससे जुड़ा नेपाल का इलाका इस मामले में भाग्यशाली है कि यह हाथियों का प्राकृतिक वास स्थल है जहां हाथियों की संख्या प्राकृतिक रूप से बढ़ रही है। हालांकि उनकी संख्या के साथ ही उनका उत्पात भी बढ़ रहा है। हाथी जंगल से निकल कर ग्रामीणों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं जिससे उनकी जीविका पर संकट बढ़ने लगा है। ----------------------------------------------------- बढ़ रही हाथियों की आक्रमकता गर्मी आते ही हाथियों का खौफ बढ़ने लगता है। इसके कई कारण हैं। एक तो

By JagranEdited By: Published: Mon, 20 May 2019 09:52 PM (IST)Updated: Mon, 20 May 2019 09:52 PM (IST)
बिगड़े हालात के चलते बेकाबू हो रहे हैं गजराज
बिगड़े हालात के चलते बेकाबू हो रहे हैं गजराज

लखीमपुर: सिमटते जंगल और भोजन की कमी के कारण बेकाबू हो रहे गजराज से लोगों में दहशत बढ़ रही है। फसलों को लगातार नुकसान पहुंचाने के कारण थारू वाशिदे उसे पसंद नहीं करते हैं। पूरे देश में हाथियों को लेकर संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। भारत का तराई का यह क्षेत्र व इससे जुड़ा नेपाल का इलाका इस मामले में भाग्यशाली है कि यह हाथियों का प्राकृतिक वास स्थल है जहां हाथियों की संख्या प्राकृतिक रूप से बढ़ रही है। हालांकि उनकी संख्या के साथ ही उनका उत्पात भी बढ़ रहा है। हाथी जंगल से निकल कर ग्रामीणों की फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं जिससे उनकी जीविका पर संकट बढ़ने लगा है।

loksabha election banner

बढ़ रही हाथियों की आक्रमकता

गर्मी आते ही हाथियों का खौफ बढ़ने लगता है। इसके कई कारण हैं। एक तो जंगल में पानी की कमी हो जाती है उसके साथ ही गर्मी के कारण हाथियों को भोजन के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। प्राकृतिक संसाधनों के सिमटने से भूखा-प्यासा हाथी आक्रामक हो जाता है।

हाथियों के संरक्षण में भारत आगे

दुनियाभर में हाथियों को संरक्षित करने के लिए गठित आठ देशों के समूह में भारत भी शामिल है। भारत में इसे राष्ट्रीय धरोहर पशु घोषित किया गया है। इसके बावजूद भारत में बीते दो दशकों के दौरान हाथियों की संख्या लगभग स्थिर हो गई है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

दुधवा में लगभग 40 साल तक हाथियों को करीब से देखने व उनके साथ रहने का अनुभव रखने वाले महावत इदरीश का कहना है कि हाथियों को 100 लीटर पानी और 200 किलो पत्ते, पेड़ की छाल आदि की खुराक जुटाने के लिए हर रोज कई घंटे तक भटकना पड़ता है। हाथी दिखने में भले ही भारी भरकम होता है लेकिन उसका मिजाज नाजुक और संवेदनशील होता है। थोड़ी थकान या भूख उसे परेशान कर देती है। ऐसे में थके जानवर के प्राकृतिक घर यानि जंगल को जब नुकसान पहुंचाया जाता है तो मनुष्य से उसकी भिडंत होती है।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.