10-10 लाख देकर बचाएंगे बाघों की सल्तनत
श्वेतांक शंकर उपाध्याय, लखीमपुर : मानसून पेट्रो¨लग में वन्यजीवों की सुरक्षा को कुछ हद तक म
श्वेतांक शंकर उपाध्याय, लखीमपुर : मानसून पेट्रो¨लग में वन्यजीवों की सुरक्षा को कुछ हद तक मुकाम पर पहुंचाने के बाद दुधवा टाइगर रिजर्व के अधिकारियों ने अब सोशल सेक्टर के लिए ठंडे बस्ते में पड़े प्रस्तावों पर काम करना शुरू कर दिया है। दुधवा पार्क और कतर्निया घाट वन्यजीव विहार के कुल 15 गांवों को जंगल से बाहर बफरजोन में विस्थापित करने का निर्णय लिया गया है। जंगल से विस्थापन के बदले 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके प्रत्येक व्यक्ति को 10-10 लाख रुपये दिए जाएंगे। सोशल सेक्टर के लिए दुधवा अधिकारियों का यह प्रस्ताव शासन की अनुमति के बाद लागू कर दिया जाएगा।
दुधवा नेशनल पार्क में सूरमा, गोलबोझी, चल्तुआ, महराजनगर, कांप, किशनपुर सहित आठ गांव तथा बहराइच के कतरनिया घाट के घने जंगल में बसे भरतापुरवा, भवानीगंज, बिछिया, ढकिया, टेड़ी सहित सात ऐसे हैं, जो वर्षों से बाघों के कोरजोन में बसे हुए हैं। जंगल के बीचोंबीच इंसानी दखल के कारण आए दिन टकराव की स्थिति बनती है। कभी बाघ इंसानों पर भारी पड़ते हैं तो कभी इंसानों के हाथों बाघ मारे जाते हैं। कई बार बाघों के शिकार की घटनाओं में इन गांवों के लोगों की संलिप्तता भी पाई गई है। एफडी रमेश पांडेय ने गांव वालों को विस्थापित करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है। एफडी के मुताबिक बाघों को कोर एरिया में एकांतवास चाहिए। इंसानों की दखल से वह परेशान होते हैं। एनटीसीए की गाइड लाइन के मुताबिक गांव वालों का विस्थापन उनकी सहमति के बाद ही अमल में लाया जाएगा। दुधवा और कतरनिया घाट को नया जीवन देने के लिए गांव वालों का विस्थापन जरूरी है।