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बाढ़ पीड़ितों पर भारी पड़ रही पूस की सर्द रातें

बाढ़ व कटान के चलते अपना आशियाना खो चुके और बांध पर शरण लिए बाढ़ पीड़ितों के लिए पूस का महीना भारी पड़ रहा है। हालांकि धूप के कारण दिन तो गुजर जाता है तो शाम ढलते ही नदी के लहरों को छूकर आने वाली पछुआ हवाएं कहर बरपाती है। विस्थापन की आस में टकटकी लगाए बाढ़ पीड़ितों पर पूस की सर्द रातें भारी पड़ने लगी हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 20 Dec 2019 11:19 PM (IST)Updated: Fri, 20 Dec 2019 11:19 PM (IST)
बाढ़ पीड़ितों पर भारी पड़ रही पूस की सर्द रातें
बाढ़ पीड़ितों पर भारी पड़ रही पूस की सर्द रातें

कुशीनगर : बाढ़ व कटान के चलते अपना आशियाना खो चुके और बांध पर शरण लिए बाढ़ पीड़ितों के लिए पूस का महीना भारी पड़ रहा है। हालांकि धूप के कारण दिन तो गुजर जाता है, तो शाम ढलते ही नदी के लहरों को छूकर आने वाली पछुआ हवाएं कहर बरपाती है। विस्थापन की आस में टकटकी लगाए बाढ़ पीड़ितों पर पूस की सर्द रातें भारी पड़ने लगी हैं।

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बाढ़ व कटान की मार झेल चुके बाढ़ पीड़ितों के सामने ठंड के मौसम में बांध ही एक मात्र सहारा बना हुआ है। यहां पर झुग्गी-झोपड़ी डालकर बाढ़ पीड़ित न सिर्फ अपना गुजर-बसर कर रहे है बल्कि इनके मवेशियों के लिए भी बांध ही एक मात्र ठिकाना है। ग्रामीणों की यहां निवास करने की सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि या तो किसान के रूप में इनकी खेती नदी के उस पार है या खेतिहर मजदूर के रूप में इन्हें कार्य का अवसर यही प्राप्त होता है।

नदी में जब पानी कम रहता है, तो नदी के करीब अपना ठिकाना बना नाव के सहारे जीवन-यापन की जुगाड़ में जुटे रहते है। यहीं इनके मवेशियों को चारा मिलता है। जाड़े में नदी की लहरों को छू कर आने वाली ठंडी हवाएं बांध पर शरण लिए लोगों के लिए जीना मुहाल कर देती है। बांध इनके स्थाई ठिकाने के रूप में तब्दील हो गया है।

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बाढ़ पीड़ितों का होगा पुनर्वास : डीएम

सेवरही : डीएम डॉ. अनिल कुमार सिंह ने कहा कि बाढ़ पीड़ितों को विस्थापित कराने के लिए योजना बनाई जा रही है। इसके लिए शासन को भी प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है। वहां से अनुमति मिलते ही प्रक्रिया पूरी की जाएगी।


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