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स्वतंत्रता सेनानियों का त्याग महान आदर्श

कुशीनगर में जागरण की संस्कारशाला में प्राचार्य विवेक पांडेय ने कहा कि आजादी भारत के इतिहास में अंग्रेजी शासन के दो सौ वर्षो का विशिष्ट स्थान है इस कालखंड मं भारतीयों ने विदेशियों का लगातार विरोध किया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Sep 2021 12:46 AM (IST)Updated: Thu, 16 Sep 2021 12:46 AM (IST)
स्वतंत्रता सेनानियों का त्याग महान आदर्श
स्वतंत्रता सेनानियों का त्याग महान आदर्श

कुशीनगर: पीके महाविद्यालय पटखौली के प्राचार्य डा. विवेक पांडेय ने जागरण की संस्कारशाला में कहा कि भारत के हजारों वर्षो के इतिहास में आजादी के लिए किए गए संघर्ष का विशेष महत्व है। अंग्रेजी शासन के लगभग 200 वर्षों के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने निरंतर विदेशी शासन का विरोध किया। वैसे तो आजादी की लड़ाई के कई मोर्चे थे। संघर्ष में कई तरह के उतार-चढ़ाव आए, पर इस पूरे दौर की यह एक ऐसी महान उपलब्धि थी, जिसने हजारों साल के इतिहास में इन वर्षों को सबसे विशिष्ट स्थान दिया। यह उपलब्धि थी एक बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आदर्श रूप में अपने जीवन को समर्पित करने की भावना। देश के हर क्षेत्र से बड़ी संख्या में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने जीवन की तमाम सुख-सुविधाओं को जिस महान आदर्श पर न्यौछावर कर दिया, वह था भारत की आजादी के लिए संघर्ष। हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि हम स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शो का पालन करें। उन आदर्शो का पालन करते हुए देश को उसी रास्ते पर लेकर चलें।

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आजादी की लड़ाई ने देश को अनेक महान नेता दिए। इनमें से तमाम लोग देश-दुनिया में विख्यात हुए। इन नेताओं की सबसे खात बात यह है कि इन लोगों ने आजादी जैसे महान आदर्श के लिए सुख-सुविधा, लोभ-लालसा, धन, संपत्ति का त्याग किया। यह भावना जनसाधारण में भी पहुंची, इससे प्रेरित होकर लाखों लोग आजादी के संघर्ष में सहर्ष कूद पड़े। इस लड़ाई में अधिकांश ऐसे लोग भी शामिल थे, जो आज भी गुमनाम हैं। इन लोगों ने अपने जीवनकाल में भोगे गए कष्टों को ही अपने लिए आजादी का पुरस्कार माना। गरीबी, कठिनाई में भी इस अहसास के साथ जीये कि उनका जीवन एक महान आदर्श के लिए समर्पित रहा है। किसी आदर्श के लिए सब कुछ न्यौछावर करने के लिए जिस समाज में लाखों लोग तैयार हों, उस समाज में ही ऐसे नैतिक बल का सृजन होता है कि देश के लिए सभी सुख-सुविधाओं का त्याग किया जा सकता है। इसी नैतिकता के बल पर ही निहत्थे लोगों ने बार-बार विश्व के सबसे बड़े साम्राज्यवाद को जबरदस्त टक्कर दी। विदेशी शासन को खदेड़ने के बाद ही चैन की सांस लिए। आज आवश्यकता है इन बलिदानियों से देश के कर्णधारों को अवगत कराने की। हमारा विद्यालय आज इन उद्देश्यों को समाहित कर ही संचालित हो रहा है।


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