बांसी नदी में बह गया गांवों का विकास
उप्र-बिहार की सीमा पर स्थित तमकुहीराज तहसील का गांव गौरी जगदीश आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। यह कहने की बात है कि क्षेत्र में विकास की झड़ी लगा दी गई है।
कुशीनगर: उप्र-बिहार की सीमा पर स्थित तमकुहीराज तहसील का गांव गौरी जगदीश आज भी बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर है। यह कहने की बात है कि क्षेत्र में विकास की झड़ी लगा दी गई है, लेकिन तहसील क्षेत्र की बहुसंख्यक आबादी अब भी 20 से 25 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके सरकारी और गैर सरकारी कार्यों के लिये जाने को मजबूर हैं। सेवरही थाना क्षेत्र का ग्राम सभा गौरी जगदीश आठ टोलों में बंटा है। यहां दो टोलों को छोड़ सभी में जरूरी सुविधाएं नहीं है। ग्राम सभा के बीच में बांसी नदी बहती है। नदी उस पार जाने के लिये गौरी घाट है, जहां ग्रामीणों को एक अदद पुल की जरूरत है। जिसकी मांग लंबे अरसे से हो रही है, लेकिन जिम्मेदार चुप्पी साधे हुए हैं। गौरी घाट उस पार स्थित टोलों में बिनटोली, जिसकी 4000 की आबादी है। इसमें चोकट टोला में 500, दलित बस्ती में 300, पश्चिम टोला में 500, सिसवनिया टोला में 1000, अहीर टोली में 1500 शामिल है। गौरी घाट इस पार लाला टोला में 2500, शिव टोला में 2000 की आबादी है। इस घाट से होकर विकास खंड दुदही का ग्रामसभा रामपुर बरहन का नारायण टोला में 4000, मंडुआडीह में 3000, चौबेया पठकौली में 7000, रामपुर पट्टी में 7000 के अतिरिक्त पड़ोसी प्रांत बिहार पश्चिमी चंपारण जिले का भुआल पट्टी 9000, भटहवां, कोयरपट्टी और बेलवारी पट्टी की कुल अनुमानित जनसंख्या लगभग 20 हजार है। इस प्रकार एक अदद पुल बन जाने से लगभग 50 हजार की आबादी मुख्य धारा से जुड़ जाती, लेकिन जिम्मेदार व जनप्रतिनिधियों की उदासीन हैं। दो वर्ष पूर्व स्कूल जा रही छात्राओं की नाव नदी के रामायण कुंड में डूब गई थी। इसके बाद भी प्रशासन ने सक्रियता नहीं दिखाई। गौरी घाट नदी उस पार के लोगों को जब भी तहसील मुख्यालय या जिला मुख्यालय जाना होता है, तो वे जान हथेली पर रख नाव पर सवार होते है। गन्ना के सीजन में यहां के लोग खेतों से गन्ना लाकर नाव पर लादते हैं और फिर उस पार जाकर दोबारा ट्राली पर लादकर मिल पर ले जाते हैं। गांव के निवासी डॉ महातम प्रसाद, मदन किशोर शाही, गो¨वद किशोर शाही ने कहा कि गौरी घाट पर पुल बनाने के लिए कई बार लिखित शिकायत की गई। लेकिन अब तक कोई पहल नहीं हुई। ग्रामीण कहते है वे अपने गांव में आने-जाने के लिए जान जोखिम में डालना पड़ता है।