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हरि प्रबोधिनी एकादशी कल, बन रहा दुर्लभ योग

कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को हरि प्रबोधिनी व देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष सोमवार के दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी होने के साथ ही अचला नामक योग बना है, जिससे इस एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाएगा।

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 10:51 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 10:51 PM (IST)
हरि प्रबोधिनी एकादशी कल, बन रहा दुर्लभ योग
हरि प्रबोधिनी एकादशी कल, बन रहा दुर्लभ योग

कुशीनगर : कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को हरि प्रबोधिनी व देवोत्थान एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष सोमवार के दिन कार्तिक शुक्ल एकादशी होने के साथ ही अचला नामक योग बना है, जिससे इस एकादशी को अचला एकादशी भी कहा जाएगा। इस योग में किए गए समस्त कार्य अचल होंगे। महर्षि पाराशर ज्योतिष संस्थान के ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश पाण्डेय के अनुसार एकादशी व्रत रहने वाले को चाहिए की दशमी के दिन एकाहार करें। उस दिन तेल की जगह घी का प्रयोग करें। नमक में सेंधा, अन्न में गेंहू का आटा व साग में बहुबिजी का परित्याग करें। रात्रि काल में आहार लेने के पश्चात शेषसायी भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए शयन करें। एकादशी के दिन प्रात: स्नानोपरांत शालिग्राम की मूर्ति या भगवान विष्णु की धातु या पत्थर की मूर्ति के समक्ष बैठकर उनका ध्यान करते हुए इस मंत्र उतिष्ठ, उतिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रा जगतपते.त्वैसुप्ते जगत्सुप्तम जाग्रति त्वै जाग्रितं जगत.मंत्र का पाठ कर मूर्ति के समक्ष घण्टा व शंख बजाएं। कारण कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर का वध कर के शयन किया था, पुन: कार्तिक शुक्ल एकादशी को वह जागृत हुए थे। उक्त शयन काल में मांगलिक कार्य या नववधू, बालक का प्रथम गमन आदि कार्य नहीं होते। पुन: भगवान को जल से स्नान कराकर पंचामृत स्नान कराकर पीत चंदन, गंधाक्षत (अक्षत की जगह सफ़ेद तिल का प्रयोग करें) पुष्प, धूप, दीप आदि से षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन कर उन्हें वस्त्रादि अलंकार से विभूषित करें। मिष्ठान या तुलसी पत्र युक्त प†चामृत का भोग लगावें व अपने भी प्रसाद ग्रहण करें। यथा संभव ॐ नमो नारायणाय''मन्त्र का जप भी करें। सायंकाल फलाहार करें। रात्रि जागरण का भी विधान है। उस दिन अपनी चित्त वृत्ति को सांसारिक विषयों से हटाकर भगवान का कीर्तन करें। तीसरे दिन ब्राह्मण या विष्णु भक्त को पारणा कराने के पश्चात स्वयं भी पारणा करें। पारणा का समय मंगलवार को प्रात:10:30 तक उत्तम है। द्वादशी को एक बार एक ही अन्न का आहार करें। पूरे दिन पुन: कोई अन्न ग्रहण न करें। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को यमराज के दूत स्पर्श नहीं कर सकते हैं। मानसिक व आर्थिक कष्ट दूर होता है, रोगों का भी शमन होता है।

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